वरुथिनी एकादशी: शुभ मुहूर्त में इस विधि से करें पूजा, भगवान विष्णु की बरसेगी कृपा

आज यानि 7 मई 2021, शुक्रवार को वरुथिनी एकादशी है।एकादशी के दिन वैधृति योग के साथ विष्कुंभ योग भी बन रहा है।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2021-05-07 01:26 GMT

सांकेतिक तस्वीर, (साभार-सोशल मीडिया)

लखनऊ: वैशाख मास(Vaisakh month) के कृष्ण पक्ष( Krishna Paksh) की एकादशी ( Ekadashi) का नाम वरुथिनी एकादशी है। आज यानि 7 मई 2021, शुक्रवार को यह एकादशी है। इस दिन एकादशी सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।

आज एकादशी के दिन वैधृति योग के साथ विष्कुंभ योग भी बन रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस योग में पूजा-पाठ व किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करने से जातक को हानि होती है। इसलिए एकादशी के दिन इन शुभ मुहूर्त में पूजा करना श्रेयष्कर होगा।

वरुथिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

* एकादशी तिथि आरंभ- 06 मई 2021 को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से, एकादशी तिथि समाप्त- 07 मई 2021 को शाम 03 बजकर 32 मिनट तक।

*द्वादशी तिथि समाप्त- 08 मई को शाम 05 बजकर 35 मिनट पर।

*वरुथिनी एकादशी व्रत पारण समय- 08 मई को प्रातः 05 बजकर 35 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक पारण की कुल अवधि - 2 घंटे 41 मिनट।

सांकेतिक तस्वीर, (साभार-सोशल मीडिया)

पौराणिक व्रत कथा

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ। उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।'

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गया था। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

सांकेतिक तस्वीर, (साभार-सोशल मीडिया)

पूजा-विधि

सबसे पहले सुबह स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनकर वेदी बनाएं। वेदी पर भगवान विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर रखें। इसके बाद भगवान विष्‍णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें। फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें। शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।

जानिए महत्व

ऐसी मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है। यदि पूर्व जन्म में भी कोई पाप किए हो तो वह भी समाप्त होता है। मान्यताओं के मुताबिक इस व्रत को रखने से एक कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है। साथ ही साथ सालों तक किए गए तपस्या के बराबर फल भी मिलता है। जातक के जीवन में सुख-शांति व समृद्धि का वास होता है। वहीं, मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

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