Vat Savitri Vrat 2022: जानें कब है वट सावित्री व्रत का शुभ मुहर्त, क्या होती है पूजन सामग्री और व्रत कथा
Vat Savitri Vrat 2022: हिन्दू पौरणिकताओं के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए पूजा-अर्चना करती हैं।
Vat Savitri Vrat 2022: हिन्दू पौरणिकताओं के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस दिन सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए व्रत रखकर वट वृक्ष (बरगद) की पूजा-अर्चना करती हैं। बता दें कि इस वर्ष वट सावित्री व्रत के दिन काफी ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है। क्योंकि इस साल सोमवार 29 मई को अमावस्या पड़ रही है जिसे सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें भी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए व्रत रखकर बरगद के वृक्ष की पूजा-अर्चना करते हुए 108 बार फेरे भी लगाती हैं। इसके अलावा इसी दिन शनि जयंती भी पड़ रही है। तीनों ख़ास दिन एक साथ पड़ने के कारण इस साल वट सावित्री का व्रत बेहद ख़ास हो जाता है।
वट सावित्री व्रत पूजा (Vat Savitri Vrat puja)
उल्लेखनीय है कि सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखकर बरगद की पेड़ की पूजा करती हैं। अधिकतर महिलाएं पूजा के उपरांत व्रत खोल देती है। नयी नवेली दुल्हनों के लिए इस व्रत को लेकर उल्लास खास रहता है। अगर आप भी पहली बार ही ये वट सावित्री का व्रत रख रही हैं तो पूजन-सामग्री वगैरह पहले से ही रख लें, जिससे पूजा करते वक्त किसी भी चीज की कमी महसूस ना हो ।
तो आईये जान लेते हैं वट सावित्री व्रत की पूजन-सामग्रियों को (Vat Savitri Vrat pujan samagri list)
वट सावित्री व्रत के पूजन के लिए बांस का पंखा, खरबूज, लाल कलावा, कच्चा सूत, मिट्टी का दीपक, घी, धूप-अगरबत्ती, फूल, रोली, 14 गेहूं के आटे से बनी हुई पूड़ियां,14 गेहूं के आटे से बने हुए गुलगुले, सोलह श्रृंगार की चीजें, पान, सुपारी, नारियल, थोड़े से भीगे हुए चने, जल का लोटा, बरगद की कोपल, फल, कपड़ा सवा मीटर, स्टील की थाली, मिठाई, चावल और हल्दी, हल्दी के पेस्ट में थोड़ा सा पानी मिलाकर थापा के लिए और गाय का गोबर (सावित्री और मां पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए) इन सामग्रियों की जरुरत होती है।
वट सावित्री व्रत के पूजन के लिए शुभ मुहूर्त देखना बेहद जरुरी होता है। इस वर्ष इस व्रत का शुभ मुहर्त (Vat Savitri Vrat Shubh Muhurta) इस प्रकार है।
- ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ: 29 मई को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से शुरू
- अमावस्या तिथि का समापन: 30 मई को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर
- सर्वार्थ सिद्धि योग: 30 मई को सुबह 7 बजकर 12 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू होकर 31 मई सुबह 5 बजकर 8 मिनट तक
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन आने वाले सावित्री व्रत की कथा निम्न प्रकार से है-
भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि: राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।
ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए।
सावित्री-सत्यवान की कहानी (Story of Savitri-Satyavan)
सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया।
नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं।
जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं। सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।
- सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।
लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।
- सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।
यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।
- इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।
सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।
अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, प्रथम अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।
इस कथा को सुनने के बाद जय गणेश, जय गणेश देवा और जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी की आरती की जाती है।