Vat Savitri Vrat 2024 Date: वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त कब है, जानिए महत्व और सामग्री क्या है

Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री पूजा के दिन खास मुहूर्त और नक्षत्र में महिलाएं पूजा करें तो उनका सुहाग अखंड बना रहता है।

Update: 2024-02-14 03:00 GMT

वट सावित्री व्रत 2024 कब है ?

इस साल वट सावित्री पूजा उत्तर भारत में 06 जून 2024 को मनाई जाएगी। कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat ) किया जाता है। इस दिन महिला अपने अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। वट के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं इस दिन रक्षा सूत्र बांधते हुए पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं।वट सावित्री पूजा भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखती है।

इस दिन महिलाएं अपने पति के लम्बे जीवन की कामना करती हैं और उनके साथ खुशियों भरा जीवन बिताने की प्रार्थना करती हैं। इस त्योहार को याद करके हम अपने प्रेमी जीवनसाथी के प्रति अपने प्रेम का बयान कर सकते हैं और उन्हें अपना साथी बनाने के लिए प्रतिबद्ध रह सकते हैं। मान्यता है कि वट के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। वट सावित्री के दिन ही सावित्री ने यमराज से लड़कर अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी।

वट सावित्री शुभ मुहूर्त कब है

इस साल वट सावित्री पूजा उत्तर भारत में 06 जून 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन इस बीच वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है।साल 2024 में वट सावित्री व्रत 6 जून गुरुवार को रखा जाएगा|

अमावस्या तिथि -प्रारम्भ से 5 जून सायंकाल 07:54 मिनट पर

अमावस्या तिथि -समाप्त से 6 जून सायंकाल 06:07 मिनट पर

लाभ-उन्न्नति मुहूर्त से दोपहर 12:20 मिनट से दोपहर 02:04 मिनट

अमृत – सर्वोत्तम मुहूर्त से दोपहर 02:04 मिनट से दोपहर 03:49 मिनट

अमृत काल -08:09 AM से 09:57 AM, 04:42 AM

अभिजीत मुहूर्त- 11:30 AM से 12:25 PM

विजय मुहूर्त- 02:14 PM से 03:09 PM

ब्रह्म मुहूर्त- 03:44 AM

वट सावित्री व्रत की विधि

अमावस्या के दिन रोहिणी नक्षत्र में इस व्रत को करने से ईश्वर की कृपा बरसती है। व्रत रखने वाली महिलाओं इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इसके लिए खरबूज, खीरा, पंखा, मीठा पुआ कच्चा सूत और बांस की टोकरी में 7 अनाज लिये जाते हैं। साथ ही भीगा चना और गुड़ भी रहता है, जिसका प्रसाद बनाया जाता है और वट वृक्ष में चढ़ाकर पूजा की जाती है।

इस दिन वट वृक्ष की परिक्रमा का बहुत महत्व है। 11, 21 या 108 बार परिक्रमा से ईश्वर की कृपा बरसती हैं और पति के ऊपर आने वाला हर संकट दूर हो जाता है। अंत में कथा सुनकर और आरती के साथ व्रत पूरा किया जाता है।

वट सावित्री व्रत महत्व-सामग्री

वट सावित्री व्रत की पूजा में कुछ विशेष सामग्री की आवस्यकता होती है जिसमे सावित्री सत्यवान की प्रतिमा, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप, दीप, घी, फल-फूल रोली, सुहाग का सामान, पूरियां, चना, बरगद के फल, सिंदूर, जल से भरा कलश और रोली आदि।वट सावित्री व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प ले और सबसे पहले पूजास्थल पर धूप-दीप जलाकर सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर ले. एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज और दूसरी टोकरी में देवी सावित्री सत्यवान की प्रतिमा रखे. अब वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान की प्रतिमा रखे सबसे पहले वट वृक्ष पर जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत, रोली, पूरियां और बरगद का फल वृक्ष को अर्पित करें। इसके बाद सूत के धागे को वट वृक्ष के पांच, सात या बारह चक्कर लगाते हुए बांध ले. हर परिक्रमा पर एक-एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं।इसके बाद हाथ में काला चना लेकर व्रत कथा पढ़े अथवा सुने. पूजा के बाद भीगे हुए चनों का बायना निकले उसमे दक्षिणा, श्रृंगार का सामान, वस्त्र आदि रखकर सास को भेंट करे. पूजा के बाद ब्राह्मणों को भी वस्त्र, फल आदि दान करना चाहिए. पौराणिक कथाओ के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास होता है। वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को जीवित किया था इसीलिए इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन और व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Tags:    

Similar News