Vat Savitri Vrat 2023:वट सावित्री व्रत धर्म क्या कहता है, जानिए इसमे व्रत में क्या खाया जाता है?

Vat Savitri Vrat 2023: वट सावित्री के दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास रहता है। वट वृक्ष कभी ना क्षय होने वाला पेड़ है जो सदियों तक रहता है।

Update:2023-05-18 20:56 IST
सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

वट सावित्री का व्रत 2023

Vat Savitri Ka Vrat 2023

वट सावित्री का व्रत कुछ जगहों पर ज्येष्ठ की अमावस्या और ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस व्रत की शुरुआत सावित्री ने की थी। अपने मृत पति को वट वृक्ष के नीचे तब तक लेकर बैठी रही जब तक कि यमराज ने उनके पति सत्यवान के प्राण वापस नहीं कर दिए।

वट सावित्री व्रत धर्म क्या कहता है

हिंदू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी बरगद के पेड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। भविष्य पुराण, स्कंदपुराण के अनुसार इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन माना जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की स्त्रियां ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत करती हैं। वट वृक्ष के ब्रह्मा,विष्णु और शिव का रूप माना गया है तो दूसरी ओर पद्म पुराण में इसे भगवान विष्णु का अवतार कहते हैं। अतः सौभाग्यवती महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा और अमावस्या को व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे वट सावित्री व्रत कहते हैं। इस दिन महिलाएं वट की पूजा-अर्चना तथा परिक्रमा पुत्र कामना तथा सुख-शांति के लिए भी करती हैं। इस दिन वट वृक्ष को जल से सींचकर उसमें सूत लपेटते हुए उसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है।

वट सावित्री के दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास रहता है। वट वृक्ष कभी ना क्षय होने वाला पेड़ है जो सदियों तक रहता है। इस वृक्ष के नीचे सबसे अधिक ऑक्सीजन मिलता है। सावित्री ने इस वृक्ष के नीचे अपने मृत पति सत्यवान को लिटाया था और अपने सूझबूझ और धैर्य से यमराज से सुहाग की रक्षा की थी और जान बचाई थी। कहते हैं कि जब सत्यवान को यमराज ने जीवित कर दिया तब सावित्री ने बरगद के पेड का फल खाकर इस दिन जल से व्रत तोड़ा था, तभी से यह व्रत मनाया जाता है और वट की पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ के पत्ते में भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिए थे।

वट सावित्री व्रत अखंड सुहाग सुहागिन महिलाएं रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे। कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे। इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी। सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए।

उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा। इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी। इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए। हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा।

वट सावित्री व्रत के दिन सूर्योदय से पहले प्रात:काल पूरे घर की सफाई करके स्नान के बाद सम्पूर्ण घर को गंगाजल का छिड़काव करने से सकारात्मकता बढ़ती है। उसके बाद एक बांस की टोकरी में वट सावित्री व्रत की पूजा की सामग्री (सत्यवान – सावित्री की तस्वीर या मूर्ति, बॉस का पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, चना, रोली, कपडा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र) को व्यवस्थित कर लें। उसके बाद वट वृक्ष के आस – पास भी सफाई कर लें, फिर वट सावित्री व्रत की पूजा शुरू कर दें। पहले पूजा स्थल पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, रोली, सिंदूर व दीप जलाकर पूजा करें।

लाल रंग का कपडा सावित्री और सत्यवान को अर्पित करें और फूल समर्पित करें। बांस के पंखे से सावित्री और सत्यवान को हवा करें। पंखा करने के बाद वट वृक्ष के तने पर कच्चा धागा लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें । परिक्रमा करेने के पश्चात वट सावित्री व्रत की कथा सुने।

वट सावित्री व्रत में क्या खाया जाता है?

सावित्री ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सुध-बुध छोड़ दी थी और यमराज से प्राणों की रक्षा की थी। वैसे ही आज कलयुग में भी महिलाएं अपने पति और परिवार की रक्षा के लिए व्रत उपवास करती हैं। वट सावित्री के दिन व्रत रखकर माता सावित्री से अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती है। पौराणिक कथा के माध्यम से पता चलता है कि सावित्री ने कैसे पति के प्राणों की रक्षा की, लेकिन आज के समय में इस व्रत में उपवास और पूजा के साथ किन चीजों का सेवन करना चाहिए जानते हैं।

वट सावित्री का व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा अलग है। इस व्रत में पूरे दिन व्रत नहीं रखा जाता है। लेकिन कहीं-कहीं लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं। खासकर यूपी , पंजाब हरियाणा और राजस्थान में इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखा जाता है।इस दिन पूजा में जो चढ़ाया जाता है,उसे ही खाया जाता है।

आम,चना, खरबूजा, पुरी , गुलगुला पुआ से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। व्रत के संपन्न होने के बाद इन्ही चीजों को प्रसाद के रुप में खाते हैं।

व्रत के दौरान और पूजा के बाद चने को सीधे निगला जाता है और बाद में चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है। इसी तरह आम और आम का मुरब्बा, खरबूजा की पूजा करते हैं और प्रसाद खाते हैं। आम को चढ़ाकर उसका मुरब्बा बनाकर खाया जाता है। खरबूजे को भी व्रत के दौरान खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री के व्रत के दौरान सत्यवान-सावित्री की कथा महात्मय को सुनकर जो विधि-विधान से पूजा करता है। फिर उपरोक्त चीजों का सेवन करता है।उनका सुहाग अमर हो जाता है।

वट सावित्री व्रत कहां कैसे मनाते हैंं

बिहार, मध्यप्रदेश ,उत्तर प्रदेश और झारखंड में वट सावित्री व्रत से जुड़ा एक जैसा नियम है। यहां महिलाएँ ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखती है और पति और संतान के दीर्घायु की कामना करती है। इस दिन यहां वट वृक्ष की 12 या 108 बार परिक्रमा करने का विधान है। व्रत सामग्री में मीठा पुआ, आटा से बनाया वर, पुड़ी , चना, खरबूजा, आम, खीरा और हाथ से बने बांस के पंखे को रखकर पूजा की जाती है और व्रत रखकर कथा सुनती है। वट वृक्ष के फल से पानी के साथ व्रत को तोड़ती है।

राजस्थान में वट सावित्री व्रत

राजस्थान में भी अमावस्या तिथि का बहुत महत्व है। यहां भी सुहाग की रक्षा के लिए सुहागिनें व्रत रखती है। मिठाई , फल और चुरमा से पूजा करती है। साथ में 108 परिक्रमा भी वट वृक्ष की करके सदा सुहाग रहने की कामना करती है। इस दिन राजस्थान में दाल बाटी और चूरमा बनाकर व्रत तोड़ा जाता है।

महाराष्ट्र-गुजरात में वट सावित्री व्रत

ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को महाराष्ट्र-गुजरात में वट सावित्री का व्रत रखा जाता है जो 24 जून को है और वट सावित्री की पूजा के साथ वट वृक्ष की 108 परिक्रमा की जाती है। महाराष्ट्र में इस दिन पोरणपोली बनाया जाता है। सुहागिनें एक-दूसरे को सुहाग देती है।

उड़ीसा में वट सावित्री व्रत

उड़ीसा में भी सावित्री व्रत रख कर सुहाग की रक्षा के लिए सुहागिने कामना करती है और पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है। वट वृक्ष में धागा बांधकर 108 परिक्रमा करती है। पुराणो में कहा गया है कि वट सावित्री व्रत करने से एक साथ त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है। इस वृक्ष में ब्रह्मा विष्णु महेश का वास होता है

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