Vidur Niti In Hindi: पंडित और पांडित्या क्या है, जानिए इससे जुड़ी खास बातें क्या कहती है विदुर नीति

Vidur Niti In Hindi: महात्मा विदुर ने पंडित और पांडित्य के बारे में बताया है कि आखिर कौन होता है पंडित । जन्म से या कर्म से, पंडित की विस्तृत विवेचना जानिए...

Update:2023-12-07 19:13 IST

Vidur Niti In Hindi: नीति शास्त्र के ज्ञाता भविष्य के जानकार महात्मा विदुर महाभारत  ऐसे पात्र हैं जिन्होंने महाभारत के युद्ध के परिणाम को पहले ही भांप लिया था,  विदुर अपनी कुशल बुद्धि, नीति ज्ञान के लिए ही जाने जाते थे। महात्मा विदुर राज्य के कार्यपालन मंत्री होने के बाद भी अत्यंत ही विनम्र स्वभाव के थे और अपने द्वारा कही जाने वाली हर एक बात को समझा कर सही तरह से प्रकट करना ही उनका स्वभाव था। इन्होंने कई बार महाराज धृतराष्ट्र को नीति के मार्ग का पालन करने की सलाह दी है। उन्होंने पहले ही अपने महाराज को महाभारत के युद्ध का  परिणाम समझा दिया था। उन्होंने महाराज धृतराष्ट्र को पंडित और पांडित्य का ज्ञान कराया था, जानते हैं....विदुर के अनुसार कौन है पंडित

पंडित और पांडित्य से जुड़ी बातें

पण्डित (पंडित) का अर्थ है विद्वान या अध्यापक से है, विशेषकर वह जो संस्कृत और हिन्दू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में सक्षम हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द का तात्पर्य हमेशा उस हिन्दू से लिया जाता है जिसने वेदों का कोई एक मुख्य भाग उसके उच्चारण और गायन के लय व ताल सहित कण्ठस्थ कर लिया हो। लेकिन ऐसा नहीं हैं पंडित का अर्थ व्यापक है जानते हैं विदुर के अनुसार

कहते है कि  महाभारत के समय महाराज धृतराष्ट्र ने आधी रात में जब विदुर को बुलवाया और अपने अंदर की विचलित परिस्थितियों से अवगत कराया तब महात्मा विदुर ने उन्हें बुद्धिमान व पंडित होने की कुछ खास बातों से अवगत कराया था।

कहा कि पंडित वही है जिसमे अपनी शक्ति और स्वरूप का ज्ञान है, जो सामर्थ्य के अनुसार कार्य करता है, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता है तथा धर्म पर अडिग रहने का गुण है, जिसे दुनिया का कोई भी आकर्षण लुभा ना पाए, वही पंडित है।

आत्मज्ञानं समारभ्स्तितिक्षा धर्मानित्यता।

यमर्थान्नपकर्षिन्ति स वै पण्डित उच्यते।। २०।।

अर्थात- अपने वास्तविक स्वरूप ज्ञान उद्योग ,दुख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता - ये गुण जिस मनुष्य को पुरूषार्थ च्युत नहीं करते , वही पण्डित कहलाता है।।।

निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।

अनास्तिक ; श्रददधान एतत पण्डितलक्षणम ।।२१।।

अर्थात- अच्छे कर्मो का सेवन करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है साथ ही आस्तिक और श्रद्धालु है , उसके वे सद्गुण पण्डित होने के लक्षण है ।२१।।

क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्री: स्तम्भो मान्यमानिता ।

यमर्थान्नपकर्षिन्ति स वै पण्डित उच्यते।। २२।।

अर्थात - क्रोध , हर्ष गर्व , लज्जा उद्दंडता तथा अपने को पूज्य समझना ये भाव जिसको पुरूषार्थ भ्रष्ट नही करते , वही पण्डित कहलाते हैं ।

यस्य कृत्यं न जानन्ति मत्रं वह मन्त्रितं परे ।

कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्चते ।। २३।।

अर्थात - दूसरे लोग जिसके कर्तव्य , सलाह और पहले से किए हुए विचार को नहीं जानते , बल्कि काम पूरा होने पर जानतें हैं , वही पण्डित कहलाता है।

यस्य कृत्य न विघ्नन्ति शीतमुष्णा भयं रति ।

समृद्धिरसमृद्विर्वा स वै पण्डित उच्यते ।।२४।

अर्थात - सर्दी गर्मी भय अनुराग सम्पत्ति अथवा दरिद्रता - ये जिसके कार्य विघ्न नहीं डालते , वही पण्डित कहलाता है ।।२४।।

यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुर्तते ।

कामादर्थ वृणीते य: स वै पण्डित उच्यते ।।२५।।

अर्थात - जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का ही अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरूषार्थ ही वरण करता है , वही पण्डित कहलाता है।

यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते ।

न किंचिवमन्यन्ते नरा:। पण्डितबुद्वय ।। २६।

अर्थात - विवेकपूर्ण बुद्विवाले पुरूष शक्ति के अनुसार काम करने की इच्छा रखते हैं और करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं ।

क्षिप्रं विजानाति चिरं श्रृणोति

विज्ञान चार्थं भजते न कामात ।

नाससम्पृष्टो व्युपयुड्क्ते परार्थें

तत्व प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ।।२७।।

अर्थात - विद्वान पुरुष किसी विषयों को देर तक सुनता है : किंतु शीघ्र ही समझ लेता है , समझकर कर्तव्यबुद्विसे पुरूषार्थ प्रवृत्त होता है - कामनासे नहीं : बिना पूछे दूसरे के विषय में व्यर्थ कोई बात नहीं कहता है। उसका स्वाभाव पण्डित की मुख्य पहचान है । 

नाप्रप्यभिवाञ्छन्ति नष्टं नेच्छति शोचितुम।

आपत्सु च मुह्रान्ति नया: पण्डातबुद्वय: ।।२८।।

अर्थात -पण्डितो की बुद्धि रखनेवाले मनुष्य दुर्लभ वस्तु की कामना नहीं करते ,खोयी हुई वस्तु के विषय में शोक करना चाहते हैं और विपत्ति में पड़कर घबराते नहीं है ।।

निश्चितत्य य: प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणा ।

अबन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते ।। २१।।

अर्थात जो पहले निश्चय करके फिर कार्य का आरंभ करता है ,कार्य के बीच में नहीं रुकता है , समय को व्यर्थ जाने देता और चित्त को वश में रखता है, वही पण्डित कहलाता है ।। २९।।

आर्यकर्मिणि रच्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते।

हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिता भरतर्षभ ।। ३०।।

अर्थात - भारत कुल भूषण ! पण्डितजन श्रेष्ठ रूचि रखते हैं , उन्नति के कार्य करते हैं , तथा भलाई करने वालो में दोष नहीं निकलते हैं ।। ३०।।

न ह्षत्यात्मसम्माने नावमानने तप्यते।

गांगो ह्रद इवाक्षोभ्यो य: स पण्डित उच्यते।। ३१।

अर्थात जो अपना आदर होने पर हर्ष के मारे फूल नहीं उठता , आनदर से संतप्त नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्डके समान जिसके चित को क्षोभ नहीं होता ,वह पण्डित कहलाता है।। ३१।।

तत्वज्ञ: सर्वभूतानां योगज्ञ: सर्वकर्मणाम् ।

उपायज्ञो मनुष्याणां नर: पण्डित उच्यते।। ३२।।

अर्थात- संपूर्ण भौतिक पदार्थ की असलियत ज्ञान रखने वाला , सब कार्यो के करने का ढंग जानने वाला तथा मनुष्यो में सबसे बढ़कर उपाय का जानकार हैं, वही मनुष्य पण्डित कहलाता है । पवृतवाक्चित्रकथ उहवान प्रतिभावान ।

आशु ग्रन्थस्य वक्ता च य: स पण्डित उच्चते ।।३३।।

अर्थात - जिसकी वाणी कही रूकती नहीं ,जो विचित्र ढंग से बातचीत करता है , तर्क में निपुण और प्रतिभाशाली हैं जो ग्रंथ के तात्पर्य को शीघ्र बता सकता है , वही पण्डित कहलाता है । ३३।।

श्रुतं प्रज्ञानुग यस्य प्रज्ञा चैव श्रुतानुगा।

असभ्भिन्नर्यमर्याद : पण्डिताख्यां लभते स : ।। ३४।।

अर्थात- जिसकी विद्या बुद्धि का अनुसरण करती है और बुद्धि विद्या का तथा शिष्ट पुरुष की मर्यादा का उलंघन नहीं करता , वही पण्डित की पदवी पा सकता है ।३४ ।।


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