Vijaya Ekadashi 2022 Kab Hai Date: कब है हर मनोरथ पूर्ण करने वाली विजया एकादशी, जानिए पूजा-विधि मुहूर्त,योग व कथा

Vijaya Ekadashi 2022 Kab Hai Date: विजया एकादशी के दिन विष्णु पुराण, व गीता के अनुसार विजया एकादशी करने से समस्त भय और पापों से मुक्ति और मधुसुधन की कृपा बरसती है। हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्‍नान करने के बाद शुद्ध वस्‍त्र पहनें और एकादशी व्रत का संकल्‍प लें।एकादशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव (पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट) रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update:2022-02-08 08:42 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Vijaya Ekadashi 2022 Kab hai Date  :

2022 विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi 2022) कब है?

एकादशी ( ekadashi) तिथि का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।हर महीने दो एकादशी दो पक्ष में पड़ती है। हर एकादशी की अपनी महिमा है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी  कहते हैं। इस साल 2022 में विजया एकादशी व्रत 27 फरवरी को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिनुसार व्रत रखने , पूजा करने से विजय की प्राप्ति होती है। युग-युगांतर तक शौर्य का बखान होता है।


फरवरी में विजया एकादशी कब है 2022 

  • 27 फरवरी 2022, रविवार फाल्गुन माह, कृष्ण पक्ष एकादशी
  • विजया एकादशी  आरंभ - 26 फरवरी, 2022 को सुबह 10:39 बजे
  • विजया एकादशी समाप्त - 27 फरवरी, 2022 को सुबह 08:12 बजे

विजया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

  • फाल्गुन मास की विजया एकादशी
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ : 26 फरवरी, 2022 को सुबह 10:39 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त :27 फरवरी, 2022 को सुबह 08:12 बजे
  • अभिजीत मुहूर्त - 12:16 PM से 01:02 PM
  • अमृत काल – 01:06 AM से 02:35 AM
  • ब्रह्म मुहूर्त – 04:52 AM से 05:43 AM
  • विजय मुहूर्त- 02:07 PM से 02:53 PM
  • गोधूलि बेला- 05:47 PM से 06:11 PM
  • त्रिपुष्कर योग – 06:35 AM से 06:38 AM
    • सर्वार्थ सिद्धि योग-08:49 AM से 06:22 AM, Feb 28
  • विजया एकादशी 2022 पारण समय-  28 फरवरी, सुबह 06:50 बजे से 09:10 बजे तक

विजया एकादशी की पूजा विधि

किसी भाी एकादशी के दिन पद्मपुराण और भागवतपुराण के अनुसार इस विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । क्योंकि मान्यता है कि भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने और फलाहार से इस दिन परमार्थ का प्राप्ति होती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। अपने नाम के अनुसार ही एकादशी का यह व्रत विधि-विधान से रखने वाला व्यक्ति सदा अपने शत्रुओं और विरोधियों पर विजयी रहता है। प्राचीन काल में कई राजा-महाराजा इस व्रत के प्रभाव से भीषण युद्ध में जीत हासिल की है। विजया एकादशी व्रत के बारे में पुराणों में भी वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि जब जातक शत्रुओं से घिरा हो तब विकट परिस्थिति में भी विजया एकादशी के व्रत से जीत हासिल की जा सकती है। कहा जाता है कि विजया एकादशी का व्रत करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है।

इस दिन सुबह उठकर मिटटी के लेप और कुशा से स्नान करना चाहिए। उसके बाद विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, कथा महात्मय सुनने के साथ दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन पूरे समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,पान-सुपारी चढ़ाकर करनी चाहिए। इससे श्रीहरि की कृपा बरसती है।

विष्णु पुराण, व गीता के अनुसार विजया एकादशी करने से समस्त भय और पापों से मुक्ति और मधुसुधन की कृपा बरसती है। हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है।  एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्‍नान करने के बाद शुद्ध वस्‍त्र पहनें और एकादशी व्रत का संकल्‍प लें।एकादशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव (पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट) रखकर श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से विष्णु भगवान का पूजन करें। भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करना चाहिए। रात्रि में कलश के सामने बैठकर जागरण करें। द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें। द्वादशी के दिन सात्विक भोजन के साथ एकादशी व्रत का पारण करें।

विजया एकादशी की कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने फाल्गुन एकादशी के महत्व व कथा के बारे में बताते हुए कहा कि हे पांडव! सबसे पहले नारद मुनि ने ब्रह्मा से फाल्गुन कृष्ण एकादशी व्रत की कथा व महत्व के बारे में जाना था, उनके बाद इसके बारे में जानने वाले तुम्हीं हो। बात त्रेता युग की है, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता के हरण के पश्चात रावण से युद्ध करने लिये सुग्रीव की सेना को साथ लेकर लंका की ओर प्रस्थान किया तो लंका से पहले विशाल समुद्र ने उनका रास्ता रोक लिया। समुद्र में बहुत ही खतरनाक समुद्री जीव थे जो वानर सेना को हानि पंहुचा सकते थे। चूंकि श्री राम मानव रूप में थे इसलिये वह इस समस्या को उसी रूप में सुलझाना चाहते थे। उन्होंने लक्ष्मण से समुद्र पार करने का उपाय जानना चाहा तो लक्ष्मण ने कहा कि हे प्रभु! यहां से आधा योजन की दूरी पर वकदालभ्य मुनिवर निवास करते हैं, उनके पास इसका उपाय अवश्य मिल सकता है। भगवान श्री राम उनके पास पहुँचें, उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या उनके सामने रखी। तब मुनि ने उन्हें बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यदि आप समस्त सेना सहित उपवास रखें तो आप समुद्र पार करने में तो कामयाब होंगे ही साथ ही इस उपवास के प्रताप से आप लंका पर भी विजय प्राप्त करेंगें। समय आने पर मुनि वकदालभ्य द्वारा बतायी गई विधिनुसार भगवान श्रीराम सहित पूरी सेना ने एकादशी का उपवास रखा और रामसेतु बनाकर पूरी रामसेना के साथ लंका पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान श्री राम एक साधारण मनुष्य के अवतार में थे लेकिन फिर भी इस एकादशी व्रत के प्रभाव से उन्होंने रावण की इतनी बड़ी सेना को हराकर लंका पर विजय हासिल की और सीता माता को मुक्त कराया।

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