दशहरा क्यों मनाया जाता है Dussehra Aur VijayaDashmi में क्या अंतर है, जानिए इस दिन शस्त्र-पूजन और शमी के पौधा महत्व

VijayaDashmi Aur Dussehra Kyu Manaya jata hai: बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन है विजयादशमी और दशहरा। इस दिन अहंकार का खात्मा होता है। जिसे देवी शक्ति और उनके आशीर्वाद से श्रीराम ने खत्म कर जनमानस को संदेश दिया है कि अंहकार पर जीत के लिए धैर्य और संतोष का होना जरूरी है और यही हमारे विजय के मार्ग को प्रशस्त करता है।

Update:2022-10-04 07:56 IST

सांकेतिक तस्वीर सौ.से सोशल मीडिया

VijayaDashmi Aur Dussehra Kyu Manya jata hai

विजयादशमी  और दशहरा  क्यों मनाया जाता है।

हिंदू धर्म में दशहरा  यानि रावण दहन का बहुत अधिक महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों के बाद अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन किया जाता हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त इसी दिन महिषासुर नामक राक्षस पर विजय प्राप्त की थी। दशहरा को असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।

दशहरा और विजयादशमी दोनों ही हिन्दुओं के बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। चूँकि दोनों ही त्यौहार एक ही दिन पड़ते हैं अतः कई लोग इन्हें एक ही समझ बैठते हैं। शायद ऐसा इस लिए भी है कि दोनों ही त्यौहार दस दिनों तक मनाये जाते हैं और दसवें दिन इनका समापन होता है और दोनों ही त्यौहार एक ही साथ पड़ते हैं। दशहरा और विजयादशमी भले ही एक साथ पड़ते हैं किन्तु दोनों के मनाने की वजह एकदम अलग अलग है और दोनों के मनाने के तरीके भी अलग अलग हैं।

दशहरा क्यों मनाया जाता है

 मान्यता है कि भगवान राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करते हुए चौदह वर्षों के लिए वनवास को स्वीकार किया। वन जाते समय उनके साथ उनकी पत्नी सीता और उनके भाई लक्षमण भी उनके साथ गए। वनवास के दौरान राम कई स्थानों का भ्रमण किये और फिर एक जगह कुटिया बना कर रहने लगे। इसी बीच लंकापति रावण छल से माता सीता को वहां से अपहरण करके अपने महल में स्थित अशोक वाटिका में ले गया। राम ने सीता को बहुत खोजा। कई लोगों से सहायता ली। अंत में हनुमान ने सीता का पता लगाया। फिर राम ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पूल बनाया और लंका पर आक्रमण कर दिया। नौ दिन भयंकर युद्ध हुआ। फिर राम ने आश्विन मास की दसवीं तिथि को अधर्मी रावण को पराजित कर दिया और उसे मार डाला। कहते हैं इस जीत के उपलक्ष्य में हर साल दशहरा मनाया जाता है। दशहरा दस दिनों तक चलने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार में जगह जगह रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। दसवें दिन कई स्थानों पर रावण और मेघनाथ के विशाल पुतले बनाये जाते हैं। इन पुतलों को अंत में जलाया जाता है। जगह जगह मेलों का आयोजन किया जाता है।


विजयादशमी  क्यों मनाया जाता है

 विजयादशमी हरउसी दिन पड़ता है जिस दिन दशहरा होता है विजय दशमी को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। यह भी दस दिनों तक चलने वाला त्यौहार है। इसमें शुरू के नौ दिनों को नवरात्रि दसवें दिन को विजयादशमी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक  असुर राजा था जिसका नाम महिषासुर था। उसने ब्रह्मा से वरदान पा लिया था जिसकी वजह से देवता समेत कोई भी उसे मार नहीं सकता था। अपनी इसी क्षमता और शक्तियों के बल पर उसने देवताओं को हराकर इंद्रलोक पर अपना अधिपत्य हासिल कर लिया था। यही नहीं समस्त पृथ्वीलोक पर भी उसी का अधिकार चलता था। महिषासुर अत्यंत ही अत्याचारी राजा था। लोग उसके अत्याचार से त्राहि त्राहि कर रहे थे। आख़िरकार ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ने अन्य देवताओं की सहायता से अत्याचारी महिषासुर का अंत करने के लिए एक शक्ति की रचना की। इसी शक्ति का नाम देवी दुर्गा पड़ा। देवी दुर्गा में सभी देवताओं की शक्तियां समाहित थी। देवी और महिषासुर में भयंकर युद्ध हुआ। नौ दिन तक लगातार युद्ध होने के पश्चात् दसवें दिन देवी ने महिषासुर का वध किया और संसार को उसके आतंक और अत्याचार से मुक्ति दिलाई। इसी जीत के उपलक्ष्य में हर साल देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और इस त्यौहार को विजयादशमी कहा जाता है।

विजयादशमी और दशहरा में अंतर क्या है

विजयादशमी में पूरे दस दिनों तक त्यौहार मनाया जाता है जिसमे शुरू के नौ दिनों तक देवी की पूजा अर्चना की जाती है। कई जगह दुर्गा माता की मूर्तियां रख कर पूजा की जाती है। दसवें दिन उन मूर्तियों का किसी नदी में विसर्जन कर दिया जाता है। कई लोग नौ दिनों तक व्रत रखते हैं। विजयादशमी को शक्ति पूजा भी कहते हैं। इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है। कहा जाता है कि प्रभु राम ने भी रावण वध करने के पहले शक्ति की पूजा की थी और उनसे आशीर्वाद लिया था।

  • दशहरा राम द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जबकि विजयादशमी देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर की हत्या करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • दशहरा में रावण और मेघनाथ के पुतले का दहन किया जाता है । विजयादशमी में नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा करने के पश्चात् उनकी मूर्तियों का किसी नदी में विसर्जन किया जाता है।
  •  दशहरा में दस दिनों तक रामलीलाएं आयोजित की जाती हैं। विजयादशमी में नौ दिनों तक देवी दुर्गा की जगह जगह प्रतिमाएं रखकर पूजा की जाती है।
  • दशहरा में राम के द्वारा देवी दुर्गा की शक्ति पूजा की जाती है जबकि विजयादशमी में ऐसा नहीं किया जाता है।
  • दशहरा में राम, लक्ष्मण, हनुमान पूजनीय हैं । विजयादशमी में देवी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश और कार्तिकेय पूजनीय हैं।
  • दशहरा और विजयादशमी दोनों ही त्योहारों का उद्द्येश्य बुराई पर अच्छाई की जीत या असत्य पर सत्य की विजय है। 

अहंकार पर विजय का पर्व दशहरा शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन आता है।  इस बार 2022 में दशहरा या विजयादशमी का पर्व 5 अक्टूबर मनाया जाएगा।

दशहरा पर अस्त्र-शस्त्र की पूजा की परंपरा

पौराणिक कथाओं के अनुसार दशहरे के दिन ही भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था। इसी की खुशी में दशमी तिथि को विजयादशमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। युद्ध में विजय के कारण और पांडवों से जुड़ी एक कथा के कारण विजयदशमी को हथियार (अस्त्र-शस्त्र) पूजने की परंपरा भी है। दशहरे के दिन अगर किसी को नीलकंठ पक्षी दिख जाए तो काफी शुभ होता है। नीलकंठ भगवान शिव का प्रतीक है जिसके दर्शन से सौभाग्य और पुण्य की प्राप्ति होती है। दशहरे के दिन गंगा स्नान करने को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। दशहरे के दिन गंगा स्नान करने का शुभ फल कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए दशहरे दिन लोग गंगा या अपने इलाके की पास किसी नदी में स्नान करने जाते हैं।

दशहरा पर शमी का पूजन

हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवोंं ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत मिली थी। विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने भी अपने बृहतसंहिता नामक ग्रंथ के कुसुमलता अध्याय में शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख किया है। वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है, उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदा का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवालेे संकट का सामना कर सकता है।


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