Vishwakarma Jayanti 2022 Today : कब है विश्वकर्मा जयंती, क्यों की जाती है इनकी पूजा, जानिए कथा और विधि

Vishwakarma Puja 2022 Date Today : ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा हस्तशिल्पी कलाकार थे। हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं।

Update:2022-09-17 06:45 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Vishwakarma Puja 2022  Date Today


विश्‍वकर्मा पूजा आज है 2022

 हिन्दू धर्म में सम्पूर्ण विश्व के रचयिता भगवान विश्‍वकर्मा को सृजन का देवता माना जाता है।  ऋग्वेद के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को ही देव शिल्पी के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही की गई थी।पौराणिक युग के सभी अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाए थे। वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। 

विश्‍वकर्मा जयंती क्यों मनाई जाती है  

विश्वकर्मा हस्तशिल्पी कलाकार थे। हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं। इस साल विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 को शनिवार के दिन मनाई जाएगी।भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए अस्त्रों, शस्त्रों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया था। उन्होंने सृष्टि की रचना में भगवान ब्रह्मा की सहायता इसके बाद उन्हें दुनिया का पहला शिल्पकार माना जाता है। शिल्पकार खासकर इंजीनियरिंग काम में लगे लोग उन्हें अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।पौराणिक युग के सभी अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाए थे। वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था। इस दिन भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

विश्‍वकर्मा जयंती शुभ मुहूर्त

विश्‍वकर्मा जयंती 17 सितंबर शनिवार के दिन सुबह 7.38 मिनट से शुभ योग है उस समय पूजा करें लाभ मिलेगा। इसके बाद 11.57 मिनट से 13. 38 तक का समय बेहद ही शुभ रहेगा।इस दिन सिद्धि योग रहेगा।

भगवान विश्वकर्मा पूजा विधि

इस दिन स्नानादि करने के बाद अच्छे कपड़े पहनकर भगवान विश्कर्मा की मूर्ति या तस्वीर सामने बैठ जाएं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा आरती करने के बाद पूजा सामग्री जैसे- अक्षत, हल्दी, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, धूप दीप और रक्षासूत्र आदि से विधिवत पूजा करें। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के बाद सभी हथियारों को हल्दी चावल लगाएं। इसके बाद कलश को हल्दी चावल व रक्षासूत्र चढ़ाएं। इसके बाद पूजा मंत्रों का उच्चारण करें। पूजा संपन्न होने के बाद कार्यालय के सभी कर्मचारियों या पड़ोस के लोगों को प्रसाद वितरण करें। मान्यता है कि हर साल मशीनों और औजारों की पूजा करने से वे जल्दी खराब नहीं होते। मशीने अच्छा चलती हैं क्योंकि भगवान विश्वकर्मा की कृपा उन पर बनी रहती है।

भगवान विश्वकर्मा की कथा

विष्णु पुराण में तो भगवान विश्‍वकर्मा को देव बढ़ई कहा गया है। भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है, उन्हें दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर भी कहा जाता है। विद्वानों केे अनुसार इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें पुत्र के रुप में जन्म लिया था। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। विश्वकर्मा हस्तशिल्पी कलाकार थे। हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं। इस साल विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 शनिवार के दिन मनाई जायेगी। भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए अस्त्रों, शस्त्रों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया था। उन्होंने सृष्टि की रचना में भगवान ब्रह्मा की सहायता इसके बाद उन्हें दुनिया का पहला शिल्पकार माना जाता है। शिल्पकार खासकर इंजीनियरिंग काम में लगे लोग उन्हें अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

इस तिथि को हर साल विश्वकर्मा जयंती धूमधाम से विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर में होती है। इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं।

माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने को भगवान विश्वकर्मा को कहा तभी विश्वकर्मा जी ने इस महल को बना दिया। इस महल के गृह प्रवेश के दौरान भगवान शिव ने रावण को बुलाया। रावण महल देखकर मंत्रमुग्ध हो गया।

फिर जब शिव ने रावण को दक्षिणा में कुछ लेने कहा, तब उसने महल ही मांग लिया। जिसके बाद भगवान शिव ने महल दे दिया और वापस पर्वत पर चले गए। महाभारत में पांडव जहां रहते थे उस जगह को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, इसे भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। कौरव के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण की द्वारका का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था।

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