Karma Yoga: मनुष्य निःस्वार्थ भाव कर्म करता है, तब वह कर्मयोग हो जाता
Karma Yoga: जब मनुष्य क्रिया से सम्बन्ध जोड़कर कर्ता बन जाता है, तब वह क्रिया फलजनक कर्म बन जाती है कर्म से बन्धन होता है
Karma Yoga: एक क्रिया होती है, एक कर्म होता है और एक कर्मयोग होता है। शरीर बालक से जवान तथा जवान से बूढ़ा होता है- यह क्रिया है । क्रिया से न पाप होता है, न पुण्य होता है, न बन्धन होता है, न मुक्ति होती है ।जैसे, गंगाजी का बहना क्रिया है । अतः कोई डूबकर मर जाय अथवा खेती आदि कोई परोपकार हो जाय तो गंगाजी को पाप-पुण्य नहीं लगता, जब मनुष्य क्रिया से सम्बन्ध जोड़कर कर्ता बन जाता है, तब वह क्रिया फलजनक कर्म बन जाती है कर्म से बन्धन होता है , कर्म बन्धन से छूटने के लिये जब मनुष्य निःस्वार्थ भाव से केवल दूसरों के हित के लिये ही कर्म करता है, तब वह कर्मयोग हो जाता है ।
कर्मयोग से बन्धन मिटता है और मुक्ति होती है -
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।
( गीता ४ | २३ ),
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
( गीता ३ | ९ )