Kaun hi Satsangi: सत्संगी कौन ?

Kaun hi Satsangi: आखिर क्यों ? क्या वो जो लोग सत्संग में नहीं आते है मालिक के प्यारे नहीं है या वो लोग मालिक के घर से नहीं आये। जब वो मालिक खुद किसी के साथ भेदभाव नहीं करता तो हमे ये हक किसने दिया कि मालिक के और लोगो को हम अलग समझे।

Update:2023-07-16 22:26 IST
Kaun hi Satsangi (Pic: Newstrack)

Kaun hi Satsangi: मालिक ने सत्संगी उन्हें कहा जो लाेग मालिक की रजा में रहे मालिक की याद में रहें जो पल-पल उस मालिक के नाम का सिमरन करें। जिसके दिल में मालिक की जगह हों। और जो दिन रात मालिक के प्यार के लिए तडपतें है। लेकिन मालिक की दी इतनी प्यारी सौगात काे हमने फिर एक टैग का नाम दे दिया और एक बार फिर हमने मालिक के दूसरें प्यारे लोगो को नॉन-सत्संगी का टैग लगा दिया।

आखिर क्यों ? क्या वो जो लोग सत्संग में नहीं आते है मालिक के प्यारे नहीं है या वो लोग मालिक के घर से नहीं आये। जब वो मालिक खुद किसी के साथ भेदभाव नहीं करता तो हमे ये हक किसने दिया कि मालिक के और लोगो को हम अलग समझे। क्यों हम खुद में और उनमें फर्क करतें है। फर्क तो सिर्फ इतना है कि कुछ लोग अपनी गाडी का ड्राइवर खुद को समझते है। और कुछ लोगो की गाडी का ड्राइवर वो सतगुरू खुद बना है। पहले हम खुद से पूछे की क्या वाकई हम लोग सत्संगी है फिर और को ये लफज इस्तेमाल करें। समझने की बात है!

मंदिर में बहुत भीड़ थी, एक लड़का दर्शन के लिए लगी लम्बी लाइन को कुतुहल से देखरहा था। तभी पास में एक पंडित जी आ गए और बोले-"आज बहुत लम्बी कतार है, यूँ दर्शन न हो पाएंगे, विशिष्ट व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्था है, रु 501 दो में सीधे दर्शन करवा दूँगा ! "लड़का बोला-" रु 5100 दूंगा, भगवान से कहो बाहर आकर मिल लें, कहना- मैं आया हूँ ! "पंडितजी बोले-" मजाक करते हो, भगवान भी कभी मंदिर से बाहर आते हैं क्या ? तुम हो कौन ?" लड़का फिर बोला-" रु 51000 दूंगा, उनसे कहो मुझ से मेरे घर पर आकर मिल ले ! " "पंडितजी (सकपका गए और) बोले-"तुमने भगवान को समझ क्या रखा रखा है?"

लड़का बोला-" वही तो मैं बताना चाहता हूँ कि आपने भगवान को क्या समझ रखा है ???

सिमरन करो

जब हम किसी बैंक या संस्था से कर्ज लेते है तो वो बैंक या संस्था हमसे दो ऐसे व्यक्ति की पहचान मांगते है जिनकी वहां इज्जत हो। तभी हमे कर्ज मिलता है। ठीक उसी प्रकार सतगुरु जब हमे नाम दान देते है तो सत्पुरुष भी गैरंटी मांगते है। तब सतगुरु हमारी जवाबदारी अपने सर लेते है और परमात्मा से कहते है की ये बन्दा आपकी बंदगी करेगा। हमेशा आपका सिमरन करेगा। सदैव आपका नाम जपेगा। निर्धनो की सेवा करेगा। आपकी आज्ञा में रहेगा। और जब हम कर्ज वापस नहीं देते तो जिसने हमारी गैरंटी ली थी कर्ज उसे चुकाना होता है। ठीक उसी प्रकार यदि हम भी सेवा सिमरन भजन नहीं करते तो तकलीफ हमारे सतगुरु जी को होती है। इस लिए हर सतसंगी के लिए यह अति जरूरी है कि उसे नियम से व भाव से सेवा, सिमरन-भजन करते रहना चाहिए।

सत्संग का फायदा

अगर हमारी नाव तूफान की लपेट मे आ गयी हो और सौभाग्य से उसे किनारा मिल जाये तो हम कितनी राहत महसूस करते है। हम सब मन के द्वारा उठाये तूफान मे फँसे हुए है। जब हम संतों महात्माओं के सत्संग मे जाते है,हमे किनारा मिल जाता है। उस समय हमे कितनी राहत मिलती है। सत्संग हमारे लिये बहुत बड़ा सहारा है। हम जैसी संगति करते है,हम पर हमेशा उस का प्रभाव पड़ता है!

(संतमत विचार फेसबुक पेज से साभार)

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