Laxami Ganesh Pujan: दिवाली पर भगवान विष्णु के बिना क्यों होती है लक्ष्मी की पूजा गणेश जी के साथ, जानिए छिपा धार्मिक-मार्मिक रहस्य

Laxami Ganesh Puja in Diwali: दिवाली के दिन युग युगांतर से लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा होती है. लेकिन ऐसे क्यों होता है क्या आप जानते हैं. नहीं यहां जानिए इसके पीछे का धार्मिक रहस्य..

Update:2024-10-31 10:10 IST

Laxami Ganesh Pujan: दिवाली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है फिर ये सवाल जरूर मन में आता होगा कि लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? इस दिन मां  लक्ष्मी  के साथ गणेश जी की पूजा होती है, न कि विष्णु भगवान की ? लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दिवाली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है ।

दीपावली  दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है । सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है । भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है ।

 गणेश जी के दाहिनी ओर विराजती हैं मां लक्ष्मी क्यों

धार्मिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी को  अभिमान हो गया कि धन प्राप्ति के लिए सारा संसार उनकी पूजा करता है और उन्हें पाने के लिए परेशान रहता है। भगवान विष्णु उनकी यह भावना को जान गए थे। मां लक्ष्मी का अंहकार दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि ‘देवी भले ही सारा संसार आपकी पूजन करता है और आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है आप अभी तक अपूर्ण हैं।मां लक्ष्मी ने जिज्ञासावश विष्णु जी से अपनी कमी के बारे में पूछा, तब विष्णु जी ने उनसे कहा कि ‘जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती तब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं करती। आप नि:सन्तान होने के कारण अपूर्ण है। मां लक्ष्मी कोल इस बात से अत्यंत दु:ख हुआ और उन्होंने अपनी सखी पार्वती को अपनी पीड़ा बताई। जिसके बाद माता लक्ष्मी का दु:ख दूर करने के उद्देश्य से पार्वती जी ने अपने पुत्र गणेश को उन्हें गोद दे दिया।

तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के ‘दत्तक-पुत्र कहलाए। गणेश जी को पुत्र रूप में प्राप्त करके माता लक्ष्मी अतिप्रसन्न हुई और उन्होंने गणेश जी को यह वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा मैं उसके यहां वास करूंगी, धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसलिए सदैव लक्ष्मी जी के साथ उनके ‘दत्तक-पुत्र भगवान गणेश की पूजा की जाती है। क्योंकि मां सदैव अपने पुत्र के दाहिनी ओर विराजती है। यही कारण है कि मां लक्ष्मी गणेश जी के दाहिनी ओर विराजती हैं।

मां लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहेगी। इसलिए दिवाली पूजन में माता लक्ष्मी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

दिवाली पर लक्ष्मी -गणेश पूजन क्यों

दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा दिवाली- लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया । लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा । कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे । वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए । माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी । उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई । भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो । माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा ।

लक्ष्मी -गणेश पूजन का रहस्य

तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी । माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया । गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान । वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं । माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी ।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे । कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए । गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहे ।

दिवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को । माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दिवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में । इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को ।इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है ।: इस पर्व के दो नाम है एक लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूसरा दीपावली जो त्रेता युग के प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है ।

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 दिवाली पर लक्ष्मी की पूजा भगवान विष्णु के बिना होती है 

 भगवान विष्णु दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली देवउठनी एकादशी को उठते हैं। दिवाली का पावन पर्व चातुर्मास के बीच पड़ता है और इस समय भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन रहते हैं। ऐसे में किसी धार्मिक कार्य में उनकी अनुपस्थिति स्वाभाविक है। इसलिए नहीं होती है भगवान विष्णु की पूजा।


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