किसी भी शुभ काम जैसे कि शादी, त्यौहार, हवन, यज्ञ में एक धागा बांधा जाता है जिसे मौली का धागा कहते हैं। ये किसी भी शुभ कार्य से पहले बांधा जाता है। रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं, यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही हैं, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में बांधे जाने की वजह भी है और पौराणिक संबंध भी है।
माना जाता है कि असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था. इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता हैं, देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था। मौली का शाब्दिक अर्थ होता हैं सबसे ऊपर मौली का तात्पर्य सिर से भी हैं, मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं, इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी हैं, शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
मौली कच्चे धागे से बनाई जाती हैं, इसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी ये 5 धागों की भी बनती है , जिसमें नीला और सफेद भी होता है. 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव. मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध कहते हैं. हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं, भाग्य और जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही हैं, इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु और ब्रह्मा हैं. इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता हैं, जब कलावा का मंत्र रक्षा के लिए पढकर कलाई में बांधते हैं तो ये तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों और त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता हैं, जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती हैं इसलिए भारतीय परम्परा में सबसे ज्यादा बांधे जाते है।