जन्मदिवस-कमाल अमरोही: ऐसी शख्सियत जिसके लिखे डॉयलाग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं

वो क्लासिक फिल्म ‘महल’ ही थी जिसने कमाल अमरोही को वो मंजिल दी जिसे तलाशने में वो अमरोहा से कलकत्ता फिर मुम्बई की गलियों की खाक छान रहे थे।मुंबई पहुंचने पर कमाल अमरोही को मिनर्वा मूवीटोन निर्मित कुछ फिल्मों में संवाद लेखन का काम तो मिला लेकिन वो मुकाम न मिला जिसकी उन्हें तलाश थी।

Update: 2019-01-17 10:52 GMT

वो क्लासिक फिल्म ‘महल’ ही थी जिसने कमाल अमरोही को वो मंजिल दी जिसे तलाशने में वो अमरोहा से कलकत्ता फिर मुम्बई की गलियों की खाक छान रहे थे।मुंबई पहुंचने पर कमाल अमरोही को मिनर्वा मूवीटोन निर्मित कुछ फिल्मों में संवाद लेखन का काम तो मिला लेकिन वो मुकाम न मिला जिसकी उन्हें तलाश थी।फिल्म ‘महल’ ने कमाल अमरोही को उनके सपनों के महल में पहुंचा दिया।अशोक कुमार ने कमाल अमरोही को फिल्म महल के निर्देशन का जिम्मा दिया।महल की की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने कमाल पिक्चर्स और कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की।

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कमाल के सफर में जेलर, पुकार, भरोसा जैसी फिल्में शामिल रही लेकिन इन सबके बावजूद उन्हें वह पहचान नहीं मिल पायी जिसके लिये वह मुंबई आये थे।अपना वजूद तलाशते कमाल को अपनी पहचान बनाने के लिये लगभग 10 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री मे संघर्ष करना पड़ा।

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बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक

बॉलीवुड में कमाल अमरोही का नाम एक ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने न सिर्फ पार्श्वगायिका लता मंगेश्कर के सिने करियर को सही दिशा दी बल्कि फिल्म की नायिका मधुबाला को ‘स्टार’ के रूप में स्थापित कर दिया।आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।वर्ष 1952 में कमाल अमरोही ने फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी से शादी कर ली।उस समय कमाल अमरोही और मीना कुमारी की उम्र में काफी अंतर था।वह 34 वर्ष के थे जबकि मीना कुमारी महज 19 वर्ष की थी।

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सैयद आमिर हैदर कमाल

यूपी के अमरोहा में 17 जनवरी 1918 को एक जमींदार परिवार में जन्मे कमाल अमरोही (मूल नाम सैयद आमिर हैदर कमाल) शुरुआती दौर में एक उर्दू समाचार पत्र में नियमित रूप से स्तम्भ लिखा करते थे।अखबार में कुछ समय तक काम करने के बाद वह ऊबने लगे और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गये। कलकत्ता से कुछ समय बाद वह मुम्बई आ गये।

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दायरा

कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीना कुमारी को लेकर ‘दायरा’ फिल्म का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म टिकट खिड़की पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी।

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फिल्म फेयर पुरस्कार मुगले आजम

इसी दौरान कमाल अमरोही को के. आसिफ की वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगले आजम में संवाद लिखने का अवसर मिला। इस फिल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन के.आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की जरूरत है। जिसके लिखे डॉयलाग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्होंने कमाल को अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया।इस फिल्म के लिए कमाल को सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया ।

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पाकीजा

वर्ष 1964 में कमाल अमरोही और मीना कुमारी की विवाहित जिंदगी में दरार आ गयी और दोनो अलग-अलग रहने लगे। इस बीच वह अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म पाकीजा के निर्माण में व्यस्त रहें।कमाल की फिल्म ‘पाकीजा’ के निर्माण में लगभग चौदह वर्ष लग गये। कमाल अमरोही और मीना कुमारी अलग-अलग हो गये थे फिर भी उन्होंने फिल्म की शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि पाकीजा जैसी फिल्मों के निर्माण का मौका बार-बार नहीं मिल पाता है।

वर्ष 1972 में जब पाकीजा प्रदर्शित हुयी तो फिल्म में कमाल अमरोही के निर्देशन क्षमता और मीना कुमारी के अभिनय को देख दर्शक मुग्ध हो गये।फिल्म ‘पाकीजा’ आज भी कालजयी फिल्मों में शुमार की जाती है ।

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रजिया सुल्तान

वर्ष 1972 में मीना कुमारी की मौत के बाद कमाल अमरोही टूट से गये और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया।

वर्ष 1983 में कमाल ने खुद को स्थापित करने के उद्देश्य से एक बार फिर से फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया और फिल्म ‘रजिया सुल्तान’ का निर्देशन किया।

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भव्य पैमाने पर बनी इस फिल्म में कमाल अमरोही ने एक बार फिर से अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया लेकिन दर्शकों को यह फिल्म पसंद नही आयी और बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गयी।

नब्बे के दशक में कमाल अमरोही ‘अंतिम मुगल’ नाम से एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन उनका यह ख्वाब हकीकत में नहीं बदल पाया।

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अपने दम पर दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार कमाल अमरोही 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।

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