गुरु-शिष्य परम्परा की एक और मिसाल,कथक के क्षेत्र में ये है चिरपरिचित नाम
लखनऊ के कण में कला है।ये बात हम नहीं कह रहे, कथक के क्षेत्र में चिरपरिचित नाम बन गई आरती शुक्ला का कहना है ये।आरती इस बात को भी स्वीकार करतीं है कि अगली पीढ़ी के लिए उनका भी कुछ दायित्व बनता है।कला जगत में गुरू शिष्य परम्परा को शतशत नमन करते हुए कथक में निपुण आरती कहती हैं कि कला को शिखर पर पहुंचाने में अपने देश में गुरु शिष्य परम्परा का रिवाज रहा है।
लखनऊ के कण में कला है।ये बात हम नहीं कह रहे, कथक के क्षेत्र में चिरपरिचित नाम बन गई आरती शुक्ला का कहना है ये।आरती इस बात को भी स्वीकार करतीं है कि अगली पीढ़ी के लिए उनका भी कुछ दायित्व बनता है।कला जगत में गुरू शिष्य परम्परा को शतशत नमन करते हुए कथक में निपुण आरती कहती हैं कि कला को शिखर पर पहुंचाने में अपने देश में गुरु शिष्य परम्परा का रिवाज रहा है। कला के क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण केंद्रों में नवांकुरों की प्रतिभा को तराशनें में गुरु की ही अहम भूमिका रहती है। कलाकार की कला गुरु की मेहनत का नतीजा होती है।
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कथक के क्षेत्र में आरती शुक्ला आज चिरपरिचित नाम
सात वर्ष की अवस्था से ही कथक की बारीकियां सीखते हुए आरती शुक्ला ने नृत्य की इस विधा में वो मुकाम हासिल किया जहां से वे एक दशक में तीन हजार से अधिक कथक नृत्य की प्रतिभाओं तराश कर दक्ष किया। कथक के क्षेत्र में आरती शुक्ला आज चिरपरिचित नाम है। अपनी कथक य़ात्रा के विभिन्न् पड़ावों का जिक्र करती हुई आरती कहतीं है कि मन में चाह हो तो राह खुद ब खुद बन जाती है। अपने कथक गुरु कपिला राज के बारे में बात करते हुए आरती कहतीं है कि कथक कौशल में उन्होंने ही मुझे तराशा है। बाद में गुरु सुरेंद्र सैकिया जी के मार्गदर्शन में कथा सीखा।
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कला को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना हर कलाकार का दायित्व
आरती भारतखंडे संगीत विद्यापीठ से कथक में विशारद (2006) और कथक केंद्र से जूनियर (2004)और सीनियर (2006) डिप्लोमा किया।इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खौरागढ़ से 2014 में कथक से मास्टर्स डिग्री पूरी की।संगीत नाटक अकादमी में कथक टीचर के रूप में काम करने का अनुभव मिला। आरती बहुत जिम्मेदारी से कहतीं है कि अपने गुरूओं से सीखी कला को दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाना हर कलाकार का दायित्व होता है। मै तो बस उसी परंपरा का निर्वाह कर रही हूं।
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महोत्सव में प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोहा है
दर्शकों से खचाखच भरे लखनउ महोत्सव के अलांवा ताज, झांसी, व्यास के महोत्सव में आरती अपनी प्रस्तुति दर्शकों का मन मोहा है। विभिन्न कथाओं के माध्यम से आरती ने नृत्य में रचनात्मकता का निर्देशन किया है।मां दुर्गा, कालिया मर्दन,सीता हरण,अहिल्या उद्धार, सूफी और तराना आदि नृत्य प्रस्तुतियों में रचनात्मकता विशेष रही है।