B'DAY: मजरूह सुल्तानपुरी ऐसे बने थे शायर, गरीबी के दिनों में इस एक्टर ने की थी मदद

Update: 2016-09-29 12:13 GMT

लखनऊ: इक दिन बिक जाएगा मिट्टी मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल, ये पंक्तियां मजरूह सुल्तानपुरी की है जो उनके ऊपर पूरी तरह से सटीक बैठती है। मजरूह सुल्तानपुरी 50-60 दशक में के हिंदी संगीत की रूह थे। उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों में दिल को छूने वाले सदा बहार गाने दिए जो आज भी मूड फ्रेश कर देते है। 1 अक्टूबर 1919 को जन्में मजरूह सुल्तानपुरी के बारे में कुछ रोचक बातें....

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असरार उल हसन खान से बने मजरूह

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले का निजामाबाद गांव में उनका जन्म हुआ था । यहां उनके अब्बा(पिता) पुलिस महकमे में तैनात थे। पुरखों की असल जमीन सुल्तानपुर में थी। पहले उनका नाम असरार उल हसन खान था। मगर दुनिया ने मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जाना। नौशाद से लेकर अनु मलिक और जतिन ललित, एआर रहमान और लेस्ली लेविस तक के साथ सुल्तानपुरी ने काम किया है।

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वालिद ने नहीं सीखने दी अंग्रेजी

मजरूह सुल्तापुरी जी ऊंची से ऊंची शिक्षा पाने चाहते थे, लेकिन उनके वालिद नहीं चाहते थे कि उनका बेटा अंग्रेजी सीखे-पढ़ें। इसलिए उन्हें मदरसे में भेज दिया। यहां उन्होंने अरबी और फारसी जुबान सीखी। वे यूनानी चिकित्सा पद्धति सीखे और लखनऊ पहुंचे। फिर एक दिन इस असफल हकीम की किस्मत ने करवट ली। वह सुल्तानपुर के एक मुशायरे में अपनी गजल सुना बैठे। लोगों की दाद उन्हें इतनी सच्ची और हौसलाबख्श लगी कि उन्होंने तय कर लिया कि बहुत हुआ नाड़ी जांचने और हाकिम का काम। उन्होंने मुशायरों में आमद बढ़ा दी। जिगर मुरादाबादी की शागिर्दी भी शुरू कर दी। 'मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।'

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जिगर मुरादाबादी के कहने पर किया फिल्मों का रुख

1945 में मजरूह एक मुशायरे में शामिल होने के लिए बॉम्बे आए। उनकी गजलों और नज्मों को लोगों ने खूब पसंद किया। सुनने वालों में एक थे प्रॉड्यूसर एआर कारदार। मजरूह के बोल सुनकर कारदार पहुंच गए उनके गुरु जिगर मुरादाबादी के पास। सिफारिश के लिए। मगर मजरूह ने फिल्मों के लिए लिखने से इनकार कर दिया। अदबी तबके में उन दिनों इस तरह के काम को हल्का माना जाता था। फिर जिगर ने समझाया। इसमें पैसा अच्छा है। परिवार को मदद हो जाएगी।

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फिल्म शाहजहां के लिए लिखा

फिर कारदार मजरूह को नौशाद के पास ले गए। उन्होंने मजरूह को एक ट्यून सुनाई और कहा, इसके मीटर पर कुछ लिखो। मजरूह ने लिखा, 'जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के.' नौशाद को ये लफ्ज पसंद आए और उन्हें फिल्म 'शाहजहां' के लिए बतौर गीतकार रख लिया गया। इसी में केएल सहगल ने गाया, 'जब दिल ही टूट गया'। सहगल चाहते थे कि उनकी आखिरी यात्रा में यही गाना बजे।

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जेल भी गए और गरीबी में राजकपूर ने की मदद

मजरूह का फिल्मी सफर शुरू हो गया। महबूब का अंदाज, शाहिद लतीफ की आरजू पर तरक्की पसंद खेमे के साथ उनका जुड़ाव उनके बागी तेवरों में नज1949 में उन्हें बलराज साहनी जैसे कई वामपंथियों के साथ जेल में डाल दिया गया। उनसे कहा गया कि माफी मांगो, वर्ना दो साल की जेल होगी। जेल में रहने के दौरान ही उनकी बड़ी बेटी हुई। परिवार पर आर्थिक संकट आ गई। तब राज कपूर ने मजरूह का लिखा 'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई' खरीदा और परिवार को उस वक्त हजार रुपये दिए इसके ऐवज में।

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पहले गीतकार दादासाहेब अवॉर्ड पाने वाले

1965 में उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड फिल्म 'दोस्ती' के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए मिला। 1993 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजे गए। पहले गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला। 24 मई, 2000 को उनका निधन हो गया। वजह बना न्यूमोनिया का अटैक। उस वक्त उनकी उम्र 80 साल की थी।

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