लखनऊ : नक्सलियों और बिहार के नामी अपराधियों को यूपी से असलहा सप्लाई होता था। यूपी एटीएस ने फर्जी शस्त्र लाइसेंस के जरिये असलहे खरीद कर बिहार में बेचने वाले ठग उपेंद्र सिंह को गिरफ्तार करते हुए इस का खुलासा किया। उपेन्द्र बिहार से जारी असलहा लाइसेंस लेकर कानपुर से असलहे खरीद नक्सलियों और अपराधियों को महंगे दाम पर बेच दिया करता था। आईजी एटीएस यूपी असीम अरुण ने उपेन्द्र की गिरफ्तारी को यूपी एटीएस के लिए बड़ी कामयाबी बताया है।
मुंगेर से एटीएस ने किया गिरफ्तार
उत्तर प्रदेश एन्टी टेरारिसस्ट स्कवायड ने पोलो मैदान मुंगेर, बिहार से उपेंद्र सिंह को गिरफ्तार किया है। एटीएस की टीम उपेंद्र को पिछले 6 महीने से तलाश रही थी। उस के खिलाफ एटीएस थाना गोमतीनगर में फर्जी लाइसेंस के जरिये कानपुर से असलहा खरीद नक्सलियों और शातिर अपराधियों को मोटी रकम लेकर बेचने का मामला दर्ज था। एटीएस की जांच में अब तक 29 असलहे, फर्जी लाइसेंस पर खरीद कर बेचने की बात सामने आई है।
कानपुर से गिरफ्तार हुए थे शस्त्र विक्रेता
यूपी एटीएस ने इस मामले में पर्दाफाश करते हुए, खन्ना आरमरी के मालिक विजय खन्ना, एके नियोगी एंड कंपनी के मालिक अमरजीत नियोगी, पूर्वांचल गन हाउज के मालिक ज़ैनुल आब्दीन और जय जवान आर्म्स डीलर के मैनेजर राजीव शुक्ला को गिरफ्तार किया गया था। जबकि उपेन्द्र फरार चल रहा था।
कैसे खरीदते थे फर्जी लाइसेंस पर असलहे
यूपी एटीएस ने जो खुलासा किया है, उस के अनुसार उपेंद्र सिंह अपने साथी राजकिशोर राय के साथ मिल कर बिहार के पते पर शस्त्र लाइसेंस बनवाता था। उस के बाद कानपुर में खन्ना आरमरी, एके नियोगी एंड कंपनी, पूर्वांचल गन हाउज और जय जवान आर्म्स डीलर की मिली भगत से कानपुर शस्त्र कार्यालय से टीएल यानी ट्रांसिट लाइसेंस बनवाते थे या फिर फर्जी एनओसी तैयार कर असलहा लेकर बिहार में नक्सलियों को बेच दिया करते थे।
यूपी से पुराने असलहे पड़ते हैं सस्ते
यूं तो बिहार की मुंगेरी पिस्टल अपराधियों की पहली पसन्द रही है। लेकिन अब नक्सलियों और बिहार के अपराधियों को कानपुर के असलहों पर भरोसा होने लगा है। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद शस्त्र लाइसेंस जारी होने में कठिनाई हो रही है। अफसरों ने शौकिया असलहा लाइसेंस लेने वालों पर नकेल कसी है ऐसे में सिर्फ जरुरतमंदो को ही शस्त्र लाइसेंस लंबी जद्दोजहद के बाद जारी हो रहा है। यही वजह है, कि शौकिया असलहे रखने वाले लोग पुराने असलहे दुकानों पर बेच कर नया असलहा ले रहे हैं। जबकि नया लाइसेंस जारी नहीं होने की वजह से पुराने असलहे नहीं बिक पा रहे है। यही असलहे दुकानदार नक्सलियों और बिहार के अपराधियों को फर्जी शस्त्र लाइसेंस के जरिए बेच दे रहे हैं।