BSP News: परेशान हैं मायावती, मिल रही है दोहरी चुनौती

BSP News: बसपा को अपनी हार से ज्यादा चिंता दलित राजनीति में तेजी से उभर रहे चन्द्रशेखर रावण के बढ़ते राजनीतिक कद की है। रावण पहली बार नगीना से अपनी ही पार्टी से चुनकर संसद पहुंचे है।

Report :  Jyotsna Singh
Update:2024-07-02 15:39 IST

BSP Cheif Mayawati (Pic: Social Media)

BSP News: 18वीं लोकसभा चुनाव परिणामों से हताश बसपा एक फिर पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए फिक्रमंद हो गयी है। उसे जहां एक तरफ चिंता एक भी सीट न पाने और दलित राजनीति अगुवाकार बनते चन्द्रशेखर रावण के बढ़ते राजनीतिक कद को लेकर है वहीं मायावती को इस बात की भी चिंता सता रही है कि कहीं चुनाव आयोग पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा न छीन ले।बसपा को अपनी हार से ज्यादा चिंता दलित राजनीति में तेजी से उभर रहे चन्द्रशेखर रावण के बढ़ते राजनीतिक कद की है। रावण पहली बार नगीना से अपनी ही पार्टी से चुनकर संसद पहुंचे है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी बढ़ती स्वीकार्यता ने मायावती की पेशानी पर बल डाल दिया है।

इसी गरज से उन्होंने एक बार फिर अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डीनेटर की जिम्मेदारी देने के साथ ही उत्तराधिकारी घोषित करते हुए उसे दूसरे राज्यों के होने वाले उपचुनावों के लिए स्टार कैम्पेनर घोषित कर दिया है। लोकसभा चुनाव के दौरान ही आकाश आनंद को उत्तराधिकारी पद से हटाया गया था और मात्र 47 दिन बाद ही उन्हे यह जिम्मेदारी दूसरी बार दी गयी है। इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा अकेले मैदान में थी जिसका परिणाम यह रहा कि वह शून्य पर पहुंच गयी है। बसपा 2022 का विधानसभा और इस बार लोकसभा अकेले दम पर लड़ी परिणाम यह रहा कि सदन से सडक़ तक सबसे निचली पायदान पर पहुंच गयी।


पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिनमें 290 की जमानत जब्त हो गयी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा शून्य पर थी। दस साल बाद एक बार फिर संसद में बसपा शून्य पर है। यूपी विधानमंडल दल के दोनों में सदनों में विधानपरिषद मे बसपा शून्य पर पहुंच गयी है। विधानसभा में बसपा का केवल एक सदस्य है। एक के बाद मिल रहे झटको से हताश बसपा ने यूं ही नहीं आकाश की दुबारा रीलांचिग की है। लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश द्वारा दिए गए भाषणों पर आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज होने के बाद उन्हे सारी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था लेकिन नगीना में चन्द्रशेखर की जीत और काग्रेंस में दलित नेतृत्व के रूप में मल्लिार्नुजन खरगे के आने के बाद बसपा को अपना वजूद बचाने के लिए नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब मायावती को सारी उम्मीदे आकाश आनंद से ही है।


वही पार्टी को खोया वजूद वापस दिला पायेगे। मायावती चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रही है। वे संसद और विधानमंडल के दोनो सदनो की भी मेंबर रही है। आज स्थिति यह कि लोकसभा और विधानपरिषद में बसपा शून्य पर खड़ी है। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अब बसपा आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गयी है। यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होना है। 2022-2024 के बाद पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव भी अकेले लडऩे का एलान किया है। मायावती तीन बार भाजपा के समर्थन से सरकार में रही एक बार कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ी लेकिन अब वे अकेले दम पर राजनीति में अपना खोया वजूद पाने में लगी है। राजनीतिक जानकार बसपा की इस स्थिति के लिए उसकी मुखिया मायावती को ही जिम्मेदार मानते है। पिछले चार चुनाव से उसका वोट का प्रतिशत लगातार कम हो रहा है।


2009 के लोकसभा चुनाव में जहां उसका वोट प्रतिशत 6.17 प्रतिशत था और उसने 21 सीटों पर विजय हासिल की थी वहीं 2014 में मोदी लहर के चलते उसे एक भी सीट नहीं मिल सकी। जबकि वोट प्रतिशत घटकर 4.19 प्रतिशत हो गया। इसके अगले बार हुए लोकसभा चुनाव यानी 2019 में सीटें तो 10 जीती लेकिन वोट प्रतिशत और कम हो गया। जबकि उसका वोट प्रतिशत 3.66 रहा। इस चुनाव में तो बसपा की बुरी स्थिति बद से बदत्तर हो गयी। एक तो उसे कोई लोकसभा की सीट भी हासिल नहीं हुई और वोट प्रतिशत भी घटकर 2.04 प्रतिशत हो गया।आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद संसद पहुंचने से मायावती को समझ में आ गया कि दलित पॉलिटिक्स चन्द्रशेखर के रूप में प्रदेश को युवा नेतृत्व मिल चुका है। इस लिए अब मायावती को लगता है कि यदि आकाश आनंद के लिए खुला मैदान छोड़ दिया जाए तो वे चंद्रशेखर का विकल्प बन सकते हैं।


वैसे तो बसपा में मायावती के बाद सांसद सतीश चन्द्र मिश्र का ही नाम आता है लेकिन अब मायावती अपने उत्तराधिकारी के साथ ही आकाश को इसलिए भी आगे किए हुए है कि वे यूपी में न सिर्फ दलित पालिटिक्स का बड़ा चेहरा होंगे बल्कि पार्टी को सक्रिय रखेगे। दलित मूवमेंट को आगे बढ़ाने वाले नेताओं को या स्वयं पार्टी छोड़ गये या फिर उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बसपा के संस्थापक कांशीराम और उनसे जुड़े सारे लोग अब दूसरे दलों में है।


बसपा में रहे कई कद्दावर नेता इस समय समाजवादी पार्टी में सांसद और विधायक है। बसपा का गठन 14 अप्रैल 1980 को हुआ था। अपने गठन से अब तक पार्टी को प्रदेश में एक बार अकेले दम पर पूर्णबहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला तो तीन बार भाजपा और एक बार सपा के साथ सरकार चलाने का मौका मिला।

Tags:    

Similar News