स्वतंत्र भारत का पहला बजट क्यों घिर गया था विवादों में

Update: 2020-01-27 09:04 GMT

लियाकत अली खान का बजट

आजादी से पहले भारत में अंतरिम सरकार बनी थी जिसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग शामिल थी। जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में यह सरकार बनी थी। उनकी कैबिनेट में सरदार पटेल, बाबू जगजीवन राम जैसे नेता भी शामिल थे। मुस्लिम लीग की ओर से लियाकत अली खान अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री बने। लियाकत अली खान ने 2 फरवरी 1946 को लेजिस्लेटिव असेंबली भवन (जिसे आज हम संसद भवन के नाम से जानते हैं) में पेश किया था।

लियाकत ने इस बजट को पुअर मैन बजट नाम दिया गया। लियाकत अली खान ने अपने बजट प्रस्तावों को ‘सोशलिस्ट बजट’ कहा था। लेकिन बजट को लेकर इंडस्ट्री की ओर से आलोचना झेलनी पड़ी थी।

बीबीसी की एक खबर के अनुसार सोशलिस्ट बजट पेश करने का दावा करने के बाद लियाकत अली पर यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने एक प्रकार से 'हिंदू विरोधी बजट' पेश किया है। उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपए के कुल मुनाफे पर 25 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था और कॉरपोरेट टैक्स को दोगुना कर दिया था। अपने विवादास्पद बजट प्रस्तावों में लियाकत अली खान ने टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के इरादे से एक आयोग बनाने का भी वादा किया। कांग्रेस में सोशलिस्ट मन के नेताओं ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया. लेकिन, सरदार पटेल की राय थी कि लियाकत अली खान घनश्याम दास बिड़ला, जमनालाल बजाज और वालचंद जैसे हिंदू व्यापारियों के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं। ये सभी उद्योगपति कांग्रेस से जुड़े थे।

लियाकत अली खान का परिवार अंग्रेजों से अच्छे संबंध थी। सन 1951 में रावलपिंडी में इनका क़त्ल हो गया था। इनके कत्ल की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है। ये अलग बात है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी के डिक्लासीफाइड दस्तावेज यह बताते हैं कि इनके कत्ल के पीछे अमेरिका का हाथ था। पुलिस ने लियाकत अली खान के हत्यारे को तुरंत ही गोली मार दी थी। उसका नाम साद अकबर बाबर था। वह एक अफ़ग़ान था।

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