पीने के पानी को तरस रहा बुंदेलखंड, बच्‍चों ने किताब की जगह थामा घड़ा

Update: 2016-04-22 06:27 GMT

झांसीः बुन्देलखंड की दुर्दशा आखिर कब सुधरेगी यह जवाब शायद किसी के पास नहीं है। पहले सूखे के कारण और अब गहराते पानी के संकट ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। पानी की तलाश में लोगों को कोसों दूर जाना पड़ता है।

सरकार पानी की आपूर्ति के लिए टैंकर तो भेज रही है लेकिन वह सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह जाते हैं आलम यह हो गया है कि जिन हाथों में किताब होनी चाहिए आज वो बच्‍चे पानी के डिब्‍बे ढोने को मजबूर हैं।

सूखा पड़ा हैंडपाइप

बुंदेलखंड सूखे का संकट

कई वर्षों से लगातार बारिश न होने के कारण बुन्देलखंड में सूखे का संकट तो गहराया ही था। साथ ही अब पानी का संकट भी गहराने लगा है। नदी, तालाब और नहरे तो पहले ही सूख गए थे, अब तो कुएं और नलों ने भी साथ छोड़ दिया है। आलम यह है कि जिन स्थानों पर भगवान भरोसे नल पानी दे रहे हैं तो वहां पानी को लेकर मारा-मारी होती है।

कागजों और निर्देशों में सिमट तक रह गया प्रशासन

ऐसा नहीं है कि इस समस्या को लेकर केंद्र में बैठी मोदी सरकार और प्रदेश में बैठी अखिलेश सरकार परिचित न हो। इसके बाद भी अभी तक इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई भी ठोस रास्ता नहीं निकाला गया है। प्रशासन की बात करें तो वह केवल कागजों और निर्देशों तक सिमट कर रह गया। हकीकत में पानी की समस्या ज्यों कि त्यों बनी हुर्इ है।

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स्कूली बस्तों की जगह बच्चों के कंधे पर पानी के भारी डिब्बे

सूखे और पेयजल के इस संकट से जूझ रहे ग्रामीणों के जिन बच्चों के कंधे पर स्कूल के बस्ते होने चाहिए आज उन कंधों पर बस्तों की जगह भारी-भारी पानी के भरे डिब्बे होते हैं। इन्हें यह पानी नजदीक से नहीं बल्कि किलोमीटरों दूर से लाना पड़ता है।

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सर पर घड़ा रखकर पानी लेने जाते बच्चे

उनका दर्द कोई भी समझने वाला नहीं है। जब मऊरानीपुर के खिसनी बुर्जग में रहने वाले रतिराम और राजू से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि वे भी पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन जब जिंदा ही नहीं रहेंगे तो पढ़ेंगे कैसे। जिंदा रहने के लिए पानी की जरूरत होती है वह उनके गांव में नहीं है । इसलिए उन्हे पीने का पानी दूर से लाना पड़ता है।

शहर के बीचों-बीच भी बनी समस्या

हम झांसी शहर की ही बात करें तो शहर के बीचों-बीच कई ऐसे इलाके हैं जहां पानी को लेकर लोगों को टैंकरों के पीछे दौड़ते हुए देखा जाता है। एक-एक व्यक्ति आठ-दस डिब्बों को लेकर टैंकरों के पीछे भागता हुआ देखा जाता है। जब शहर के बीचों-बीच यह आलम है तो आस-पास के इलाकों का क्या हाल होगा इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।

सूखा पड़ा तालाब

जेवरात से ज्‍यादा जरूरी है परेशानी

बुंदेलखंड में झांसी के बबीना ब्लॉक के ग्राम बमेर, राजापुर, अमरपुर, रमपुरा, इमिलिया, मऊरानीपुर तहसील के खिसनी बुर्जुग, मेढ़की, आदि एक दर्जन गांव में जाकर देखा तो वहां के हालत बद से बत्तर हैं। गांवों में कुएं सूख पड़े हैं और सरकारी नलों ने पानी देना छोड़ दिया है। इतना ही नहीं लोगों को पीने का पानी खरीदते हुए देखा जाता है। यह लोग पीने के पानी को जेवरात और जायदाद से भी अधिक संभाल कर रखते है।

पानी की आस में घर के बाहर खड़ी महिला

कागजों पर दौड़ रहे टैंकर

प्रशासन से जब इस भीषण समस्या से जानकारी ली जाती है तो वे क्या जवाब देते हैं। उसके बारे में भी बताते चलें। उनका जवाब होता कि वह जिन गांवों में पानी की समस्या है वहां टैंकरों से पानी की समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन दफ्तरों में बैठे अधिकारियों से कौन बताए कि टैंकर तो केवल कागजों में चल रहे है हकीकत में जो टैंकर जा रहे हैं वह प्राईवेट में जा रहे हैं और वे उन ग्रामीणों से पानी के बदले पैसें ले रहे हैं।

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