UP: HC ने सरकार-निगम से पूछा- किस आदेश के तहत बंद कराई जा रही है मीट की दुकानें

Update:2017-03-28 01:01 IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राजधानी में मीट की दुकानों के लाइसेंसों का नवीनीकरण न किए जाने और विचाराधीन रहने के दौरान बिना किसी आदेश के दुकानें खुली रहने पर राज्य सरकार और नगर निगम से जवाब-तलब किया है।

कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि उक्त प्रकरण में उसका रुख क्या है? साथ ही नगर निगम को 3 दिन में बताने को कहा है कि मीट दुकानों के लाइसेंसों का नवीनीकरण क्यों नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने नगर निगम से यह भी पूछा कि बिना किसी प्रशासनिक या कार्यकारी आदेश के मीट की दुकानों को किस नियम के तहत बंद कराया जा रहा है। कोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगम को 3 अप्रैल तक अपना जवाब पेश करने का आदेश दिया है।

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यह आदेश जस्टिस एपी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने शहाबुद्दीन सहित 9 अन्य दुकानदारों की ओर से साल 2015 में दायर एक विचाराधीन याचिका पर पारित किया।

बिना आदेश के बंद करवा रहे दुकानें

याचिका में एक अर्जी देकर नगर निगम पर आरोप लगाया गया कि दुकानदारों को पूर्व में लाइसेंस जारी था। जिसकी समयावधि 2015 में समाप्त हो गई थी। जिसके बाद याची दुकानदारों ने लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए अर्जी दी थी, जिस पर नगर निगम ने अभी तक निर्णय नहीं लिया है। इस बीच दुकानें जबरन बंद कराई जा रही हैं। इसके लिए कोई आदेश भी सक्षम अधिकारियों की ओर से नहीं पारित किया गया है।

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नगर निगम ने ये दिया था तर्क

याचियों के वकील गिरीश चंद्र सिन्हा के मुताबिक, 'याची दुकानदारों ने नगर निगम से कई बार अपने दुकानों के लाइसेंसों के नवीनीकरण के लिए अनुरोध किया। लेकिन निगम ने यह कहते हुए मना कर दिया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के दिशा-निर्देशों के अनुसार निगम के पास स्लाटर हाउस नहीं हैं। लिहाजा मीट की दुकानों के लाइसेंसों का भी नवीनीकरण नहीं किया जा सकता।'

कहा- निगम अधिकारी मांगते हैं रिश्वत

याची दुकानदारों का तर्क था कि निगम के पास यदि नियमों के मुताबिक स्लाटर हाउस नहीं हैं, तो इसमें याचियों की क्या गलती? उनका आरोप है कि नगर निगम के अधिकारी रिश्वत लेकर दुकान चलवाते हैं। यदि उनके लाइसेंसों का नवीनीकरण हो जाए तो उन्हें निगम के अधिकारियों को रिश्वत देने की जरूरत नहीं होगी।

2015 में दायर की थी याचिका

इस पर याची के वकील गिरीश सिन्हा ने कहा कि मामले में याचियों ने अप्रैल 2015 में ही याचिका दाखिल की थी, जिस पर कोर्ट ने नगर निगम को जवाब देने का आदेश दिया था, परंतु अब तक जवाब नहीं दाखिल किया है।

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