लखनऊ: विदेश से मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक सरोकार से जुडे़ संदीप पांडेय को अब भारत का नागरिक होना शर्म की बात लगती है। संदीप ने बीएचयू के एक स्टूडेंट भुवनेश के पत्र के जवाब में लिखा है कि भारत माता की जय या तिरंगा एक प्रतीक है जिसे देखकर कुछ लोग खुश हो सकते हैं।
संदीप के जेएनयू में 10 मार्च को छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया और भारत तेरे टुकडे़ होंगे इंशाअल्लाह नारा लगाने वाले उमर खालिद के पक्ष में दिए भाषण पर आापत्ति करते हुए भुवनेश ने पत्र लिखा था। भुवनेश के पत्र का मजमून ये था कि आपके प्रति अच्छी धारणा थी लेकिन आपके विचार के बाद सब कुछ बदला सा लगता है।
संदीप ने स्टूडेंट को पत्र में लिखा
मैं राष्ट्र के प्रति तुम्हारी भावना की कद्र करता हूं, लेकिन फिर भी कहूंगा कि यह एक कृत्रिम अवधारणा है। जिस तरह से किसी की धर्म या ईश्वर में आस्था होती है उसी तरह तुम्हारी आस्था राष्ट्र में है। राष्ट्र के प्रति यह आस्था उतनी ही अंधी है जितनी किसी की ईश्वर या धर्म के प्रति होती है।
किसानों से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं सैनिक
सीमा पर मरने वाले सैनिकों की चिंता होती है किंतु मुझे सीमा के दोनों तरफ मरने वालों की चिंता होती है सिर्फ अपनी तरफ के लिए नहीं। ये सैनिक बिना वजह मारे जा रहे हैं। तुम कहते हो कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनंद इसलिए उठा पा रहे हैं क्योंकि हमारे भारत माता को समर्पित सैनिक सीमा पर हमारी रक्षा कर रहे हैं। हम जिंदगी का आनंद उठा पाते हैं क्योंकि किसान की मेहनत से हमारे सामने खाने की मेज पर दिन में तीन-चार बार खाना आ जाता है।
पिछले 25 वर्षों में करीब तीन लाख किसानों ने इसलिए आत्महत्या कर ली है क्योंकि वे अपने ऋण अदा नहीं कर पाए, जो देश की रक्षा में मारे गए सैनिकों से कई गुना है। आखिर सैनिक से मिलने वाली सुरक्षा किसान के किस काम की है? आदमी सैनिकों के बिना भी जीवित रह सकता है लेकिन किसान के बिना कोई भी जीवित नहीं बचेगा।
तिरंगे के प्रति नाज सिर्फ भावनाएं
तुम्हें भारतीय होने पर नाज है और तिरंगा झंडा देख कर तुम अपना सर गर्व से उठा लेते हो। ये तो सिर्फ भावनाएं हैं। तुम्हें प्रतीक अच्छे लगते होंगे और तुम भ्रम में रहना पसंद करते हो, लेकिन मुझे शर्म आती है कि मैं भारत का नागरिक हूं।
संदीप ने सामाजिक असमानता की बात भी कही
संदीप ने भुवनेश को ज्ञान की घुट्टी भी पिलाई और लिखा देश का सकल घरेलू उत्पाद विकास दर अच्छी होते हुए भी उसका फायदा सिर्फ यहां का सम्पन्न वर्ग ही उठा पाता है और गरीब को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है। हमारे सामाजिक मानक दुनिया में सबसे खराब हैं। दुनिया में कुपोषित बच्चे सबसे अधिक अनुपात में हमारे देश में हैं। आधे बच्चे विद्यालय नहीं जाते। शौचालय की उपलब्धता की स्थिति भी दुनिया में सबसे खराब हमारे यहां है।
हम अंतरिक्ष संबंधी शोध करने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन हमारे यहां सफाई हेतु जिंदा इंसान को सीवर में उतारा जाता है जिनमें से कई की दम घुटने से मौत हो जाती है। सरकारी नीतियां इंसान की जरूरतों के हिसाब से नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की संभावनाओं को देखकर बनाई जाती हैं। हम पत्थर की मूर्ति पूजते हैं लेकिन जिंदा इंसान के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। जिन्हें सरकार से न्याय नहीं मिला उनसे क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि वे भी तिरंगा देखकर आपकी तरह देश के प्रति गर्व महसूस कर सकें?
संदीप को जय हिंद जय भारत से भी आपत्ति
संदीप ने भुवनेश को लिखे पत्र में कहा कि आपने अपने पत्र का समापन ’जय हिन्द, जय भारत’ के अभिवादन के साथ किया है। महान राजनीतिक संत व महात्मा गांधी के अनुयायी विनोबा भावे ने ’जय जगत’ के अभिवादन को लोकप्रिय बनाया था। पर्यावरण को बचाने की जरूरत को देखते हुए शायद अब ’जय सृष्टि’ अधिक उपयुक्त अभिवादन होगा। मानवता के हित में क्या हमें अपनी दृष्टि का विस्तार विश्व या ब्रह्माण्ड तक नहीं करना चाहिए?