पेंशन ने बढ़ाई टेंशन, केजरीवाल ने दिल्ली में पुरानी पेंशन बहाली का किया एलान
अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष का एक बड़ा हथियार पुरानी पेंशन बहाली भी बनने वाला है। क्योंकि सरकारी कर्मचारियों की इस मांग ने केंद्र सरकार का सिरदर्द तो बढ़ाया ही है साथ ही राज्य सरकारों को परेशानी में डाल दिया है। यूपी समेत तीन राज्यों में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर विरोध की हवा तेज हो गई है।
लखनऊ: अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष का एक बड़ा हथियार पुरानी पेंशन बहाली भी बनने वाला है। क्योंकि सरकारी कर्मचारियों की इस मांग ने केंद्र सरकार का सिरदर्द तो बढ़ाया ही है साथ ही राज्य सरकारों को परेशानी में डाल दिया है। यूपी समेत तीन राज्यों में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर विरोध की हवा तेज हो गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के नेता केजरीवाल ने दिल्ली में पुरानी पेंशन बहाली का एलान करके सरकार की पेशानी पर बल डाल दिया है। यही नहीं, राज्यों में शासन कर रहे गैर भाजपा क्षत्रपों को पुरानी पेंशन बहाली पर राजी करने की अरविंद केजरीवाल ने जो कवायद तेज की है वह महागठबंधन से कम भारी पडऩे वाली नहीं दिख रही है। क्योंकि तकरीबन सवा दो करोड़ केंद्र और राज्य के कर्मचारी सीधे इसकी जद में हैं।
केंद्रीय कर्मचारी 7वें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम बेसिक वेतन 18 हजार रुपये से बढ़ाकर 26 हजार रुपये करने की भी मांग कर रहे हैं। फिर से सरकारी पेंशन चालू करने की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख कर्मचारियों ने हुंकार भरी जिसमें कर्मचारी नेताओं ने एलान किया कि सरकारी कर्मचारी उसी को वोट देंगे जो पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से बहाल करेगा। पेंशन का मसला कितना गरमाया हुआ है इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि रेल मंत्री पीयूष गोयल जब १६ नवंबर को लखनऊ में एक प्रोग्राम में शिरकत कर रहे थे तो रेलवे यूनियन के लोगों ने उनका भारी विरोध किया। हालत यह हो गयी कि उन्हें उल्टे पांव लौटना पड़ा।
नई स्कीम में काफी कम पैसा
देश में केंद्र व राज्य सरकारों के कुल २,१५,४७,८४५ कर्मचारी हैं। इसमें ३० लाख ८७ हजार केंद्रीय कर्मचारी हैं। सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां करीब १८ लाख सरकारी कर्मचारी हैं। हाल में रिटायर होने वाले कर्मचारियों का कहना है कि नई पेंशन स्कीम के तहत उन्हें सिर्फ ७००-८०० रुपये मिल रहे हैं जबकि पुरानी पेंशन स्कीम के तहत न्यूनतम गारंटी ९००० रुपये मासिक पेंशन की थी। ये स्कीम चूंकि वर्ष १ जनवरी २००४ को या उसके बाद नियुक्त कर्मचारियों पर लागू होती है सो ज्यादातर कर्मचारियों को इस स्कीम का लाभ प्राप्त होना बाकी है।
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और उग्र होगा कर्मचारियों का तेवर
इतने साल बाद अब इस स्कीम का विरोध किए जाने का तर्क देते हुए नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के एक नेता ने कहा कि विरोध तो शुरू से किया जा रहा था, लेकिन ये स्कीम जबरन थोपी की गई है। इस नेता ने कहा कि बड़ा आंदोलन खड़ा करने में वक्त लगता है। अब सभी कर्मचारी इस मुद्दे को लेकर आंदोलित हैं और विरोध का स्वर धीरे-धीरे तेज होता जा रहा है। लखनऊ में इस मुद्दे को लेकर राज्य कर्मचारी अपने उग्र तेवर दिखा चुके हैं। राज्य सरकार अभी तक मांगों पर सहानुभूति विचार करने का आश्वासन देकर मामले को टाल रही है मगर माना जा रहा है कि चुनाव नजदीक आने के साथ ही कर्मचारियों का तेवर आरपार की लड़ाई वाला हो जाएगा और सरकार को इस बाबत कोई न कोई फैसला लेना ही होगा। अगर फैसला कर्मचारियों के मनमुताबिक न हुआ तो सत्तारूढ़ दल को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।
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सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस का कहना है कि नई स्कीम के जरिए भाजपा और कांग्रेस सरकारें जनता के पैसे का इस्तेमाल शेयर बाजार में सट्टबाजी करने वालों की मदद करने के लिए कर रही हैं। सरकारी कर्मचारियों का एक विरोध ये भी है कि सशस्त्र सेनाओं के लोग अब भी पुरानी स्कीम के तहत हैं। इसे भेदभावपूर्ण रवैया माना जा रहा है। आंदोलन के अगले चरण में रेलवे कर्मचारी ११ दिसम्बर से वर्क टू रूल करेंगे।
दिल्ली में बहाल होगी पुरानी पेंशन योजना : केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल में घोषणा की कि उनकी सरकार पुरानी पेंशन योजना बहाल करेगी और वह अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ऐसा करने के लिए पत्र भी लिखेंगे। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने के लिए विधानसभा के विशेष सत्र में प्रस्ताव पारित किया जाएगा। इसे फिर केन्द्र के पास मंजूरी के लिया भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि वह पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों से इस संबंध में बात करेंगे। वे इन मुख्यमंत्रियों से भी अपने राज्य में ऐसा ही कदम उठाने के लिए कहेंगे। केजरीवाल ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों में देश की सरकार बदलने की ताकत है। मैं केंद्र सरकार को आगाह करना चाहता हूं कि अगर कर्मचारियों की मांग तीन महीने के अंदर पूरी नहीं की गई तो वर्ष 2019 में कयामत आएगी।
क्या है पेंशन स्कीमों में फर्क
- नई स्कीम के तहत कर्मचारी को अपने मासिक वेतन का दस फीसदी हिस्सा देना होता है और सरकार भी इतना ही पैसा देती है। दोनों हिस्से जोडक़र ये रकम इक्विटी शेयर में निवेश कर दी जाती है। इस निवेश पर जो रिटर्न बनता है वो ही रिटायरमेंट के समय पेंशन की रकम होती है।
- पुराने सिस्टम में पेंशन का पूरा पैसा सरकार वहन करती थी। जबकि जनरल प्रावीडेंट फंड में कर्मचारी के योगदान पर फिक्स रिटर्न मिलता था। रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी के अंतिम वेतन और डीए को मिला कर जो रकम बनती थी उसका ५० फीसदी बतौर पेंशन सरकार देती थी। रिटायर्ड कर्मचारी के देहांत के बाद पेंशन का भुगतान उसके आश्रित परिवारीजनों को किया जाता है।
नई पेंशन स्कीम
- नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) २००४ में लागू की गई थी। इसमें कर्मचारियों को पेंशन फंड में जमा रकम का सिर्फ 60 फीसदी हिस्सा मिलता है और उस पर भी टैक्स देना पड़ता है। बाकी 40 फीसदी लंबी अवधि के निवेश में जाता है।
- नई पेंशन के तहत पेंशन फंड के लिए अलग से खाते खुलवाए गए और फंड के निवेश के लिए फंड मैनेजर भी नियुक्त किए गए।
- यदि पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न अच्छा रहा तो प्रॉविडेंट फंड और पेंशन की पुरानी स्कीम की तुलना में नए कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय भविष्य में अच्छी धनराशि भी मिल सकती है।
- कर्मचारियों का कहना है कि पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न बेहतर ही होगा, यह कैसे संभव है। इसलिए वे पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
- नई स्कीम को सभी राज्यों द्वारा लागू किया गया है। २००९ में ये स्कीम १८ से ६० वर्ष आयुवर्ग के समस्त भारतीय नागरिकों के लिए खोल दी गई। लेकिन दस फीसदी सरकारी अंशदान सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए है।
- २०१३ में गठित पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी नई पेंशन स्कीम को रेगुलेट करता है।
पुरानी पेंशन
- पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को 2005 में खत्म कर दिया गया था। इस पेंशन योजना में पेंशन अंतिम सैलरी के आधार पर बनती थी।
- महंगाई दर बढऩे के साथ डीए (महंगाई भत्ता) भी बढ़ जाता था।
- नया वेतन आयोग लागू होने के साथ पेंशन में बढ़ोतरी होती थी।