सरकार के कामकाज की समीक्षा का अगर कोई भी 'टूल’ नौकरशाही को माना जाये तो कहा जा सकता है, कि उत्तर प्रदेश में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे मुख्य सचिव राहुल भटनागर की कार्यशैली और उनके कामकाज सरकार की मंशा पर ही सवाल खड़े करते हैं। सरकार के अब तक के फैसले बताते हैं, कि उसकी राजकाज में समझ कमजोर हो रही है। अफसरों की तैनाती से लेकर सरकारी योजनाओं को अमल में लाने की कोशिश यह चुगली करती है। अकेले मुख्य सचिव के पास शीर्ष के छह पद हैं।
पुलिस महकमे में डीआईजी की कमी की भरपाई के लिए आईजी और एडीजी को फील्ड में भेजने के सरकारी फैसले में भी अनियमितताओं की भरमार है। पिछली सरकार के कामकाज के समयबद्ध जांच के इस सरकार के दावे पर पलीता लग रहा है। कई जांचों की अवधि भी खत्म हो गई पर अभी भी नतीजा आना दूर की कौड़ी है।
मुख्य सचिव राहुल भटनागर के पास इतना काम है कि कोई एक अधिकारी लगातार 24 घंटे काम करके आधा काम भी नहीं निपटा सकता है। बीते 30 तारीख को कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) प्रदीप भटनागर सेवानिवृत्त हुए। नये एपीसी की नियुक्ति की जगह यह चार्ज भी मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने ले लिया। जबकि इससे पहले उनके पास पिकप और यूपी एसआईडीसी के चेयरमैन के पद के साथ-साथ औद्योगिक विकास आयुक्त (आईआईडीसी) के पद पहले से बने हुए हैं।
आमतौर पर एपीसी के सेवानिवृत्ति के दिन ही नये एपीसी की नियुक्ति का चलन रहा है। पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। इन भारी भरकम कुर्सियों के अलावा प्रमुख सचिव गन्ना और चीनी उद्योग का पद भी मुख्य सचिव ने अपने पास रख रखा है। ऐसा उत्तर प्रदेश में कभी नहीं हुआ जब आईएएस संवर्ग का कोई बड़ा अफसर नीचे के पद अपने पास रखे। इससे पहले यह काम अपने बैच के टॉपर प्रदीप शुक्ल ने किया था।
मुख्यमंत्री ने सरकार बनते ही सेवानिवृत्त अधिकारियों को हटाने का तत्काल फरमान जारी किया था, लेकिन इस पर अमल खुद मुख्य सचिव के कार्यालय में नहीं हो पाया है। उनके कार्यालय में आरडी पॉलीवाल और एसएन श्रीवास्तव उनके सहयोगी के तौर पर सेवानिवृत्ति के बाद इस सरकार में भी काम कर रहे हैं। अफसरों को लेकर उनकी पसंद इसी से जाहिर होती है कि उन्होंने पहला तबादला कुमार कमलेश का किया था। कानून व्यवस्था को लेकर राज्य की स्थिति इस सरकार की अपेक्षाओं के मुताबिक नहीं है। बीते 50 दिनों में 100 हत्याएं हो चुकी हैं। लेकिन कानून व्यवस्था को कसने के लिए पुलिस महकमे में जो परिवर्तन किये गये वे व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
एडीजी कानून व्यवस्था के पद पर 1989 बैच के आदित्य मिश्रा की तैनाती की गई है, जबकि एडीजी वाराणसी, बरेली और मेरठ के पद पर जिन विश्वजीत महापात्रा, बृजराज मीना, आनन्द कुमार को भेजा गया है, वे आदित्य मिश्रा से सीनियर हैं। विश्वजीत 1987, मीना और आनंद कुमार 1988 बैच के अफसर हैं। लखनऊ में जिस अभय कुमार प्रसाद की तैनाती दी गई है। वह आदित्य मिश्रा से दो बैच जूनियर हैं। यही नहीं, कानपुर में आईजी जोन के पद पर 1996 बैच के जकी अहमद पहले से तैनात हैं।
जबकि 1995 बैच के आलोक सिंह को डीआईजी रेंज बना दिया गया है। यही नहीं, वाराणसी में जोन मुख्यालय है। वहां 2002 बैच के अधिकारी जवाहर को डीआईजी रेंज वाराणसी बना दिया गया है। इस तरह की तमाम अनियमितताएं अफसरों की तैनाती में साफ देखी जा सकती हैं। हद तो यह है कि आईआईडीसी के चेयरमैन पद पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का नाम भेजा गया, तो उसे राहुल भटनागर ने आगे बढ़ाने से हाथ खड़े कर दिये।
यही नहीं, बीते दिनों नीति आयोग की जब टीम लखनऊ आई थी तो राज्य में नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद पर तैनाती के लिए आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त ने आलोक रंजन के नाम का जिक्र किया, तो मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने यह कहकर इस प्रस्ताव को किनारे लगाने की कोशिश शुरू कर दी कि इस पद पर कोई अर्थशास्त्री होना चाहिए। गौरतलब है कि अभी तक इस पद पर सेवानिवृत्त अधिकारी रहे हैं। आलोक रंजन उन अफसरों में हैं जिन्हें सूबे की हर बड़ी कुर्सी पर काम करने का अनुभव है। अखिलेश यादव के 'काम बोलता है’ का श्रेय उन्हें जाता है।