अयोध्या में मंदिर मसले पर अदालत में सुनवाई जारी रहते अध्यादेश लाने में कानूनी बाधा नहीं
1993 में नरसिम्हाराव भी कोर्ट में विचाराधीन रहते लाए थे अध्यादेश
योगेश मिश्र
लखनऊ : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अगर केंद्र सरकार सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान कोई अध्यादेश लाती है तो वह विधिक रूप से गलत नहीं होगा। संवैधानिक रूप से उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए अयोध्या में अध्यादेश के मार्फत मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किये जाने की अटकलों को बल मिलता है।
उम्मीद जतायी जा सकती है कि मकर संक्रांति के आसपास सूर्य जब उत्तरायण में होगा तब राममंदिर निर्माण की बाधाएं हटाई जा चुकी होंगी।
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गौरतलब है कि 1993 में नरसिंम्हाराव सरकार ने ढांचा विध्वंस के बाद मुकदमा कोर्ट में बने रहने के दौरान ही अध्यादेश लाकर विवादित स्थल पर 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था। हालांकि मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ सर्वोच्च अदालत भी गया था परन्तु सुन्नी वक्फ बोर्ड के पक्षकार जफरयाब जिलानी की मानें तो सर्वोच्च अदालत ने अध्यादेश के मार्फत हुए अधिग्रहण को जायज ठहराते हुए यह कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में जो मुकदमे चल रहे हैं उन पर अधिग्रहण का कोई असर नहीं होगा।
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भाजपा नेता और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अजय अग्रवाल कहते हैं कि जब कांग्रेस सरकार अदालत में मुकदमा होते हुए अध्यादेश ला सकती है तब नरेन्द्र मोदी सरकार को नसीहत देने की जरूरत क्या है। हां अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद के दोनो सदनों से पास कराना होता है।
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मोदी की राजनीतिक शैली के जानकारों की मानें तो अगर जनवरी में मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश आता है और उसे सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी जाती है तो भी मोदी को ही लाभ होगा। मोदी अध्यादेश पर संसद की मोहर के नाम पर अपना चुनाव अभियान चलाएंगे और उन्हें पहले से ज्यादा जनसमर्थन हासिल होगा।
गौरतलब है कि मंदिर निर्माण की बात खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी कह रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने जनता को मंदिर निर्माण के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत पहले ही राम मंदिर पर कानून लाए जाने की इच्छा जता चुके हैं। भाजपा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपने हालिया ट्विट में कहा है कि सरकार के पास कानून बनाने की शक्ति है।