अमेठी में BJP से पार पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं, गठबंधन प्रत्याशी उतरा तो डूब सकती है लुटिया

कांग्रेस को अपनी दबदबे वाली अमेठी सीट पर इस बार बीजेपी से पार पाना आसान नहीं होगा। 2014 में हार के बाद भी स्मृति ईरानी का अमेठी में डटा रहना क्या कम घातक था? उस पर गठबंधन की ओर से प्रत्याशी उतारे जाने की खबरों ने कांग्रेस नेताओं की नींद उड़ा कर रख दी है।

Update:2019-03-15 15:10 IST

अमेठी: कांग्रेस को अपनी दबदबे वाली अमेठी सीट पर इस बार बीजेपी से पार पाना आसान नहीं होगा। 2014 में हार के बाद भी स्मृति ईरानी का अमेठी में डटा रहना क्या कम घातक था? उस पर गठबंधन की ओर से प्रत्याशी उतारे जाने की खबरों ने कांग्रेस नेताओं की नींद उड़ा कर रख दी है।

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बता दें कि 2014 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से महज 1,07,000 वोट से शिकस्त पाने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अमेठी से अपना नाता बनाए रखा। इसका बड़ा फायदा यह हुआ के यहां लोग उनसे जुड़ते गए। वहीं क्षेत्र में कम आना-जाना और क्षेत्र की उपेक्षा के चलते यहां के लोगों का राहुल से मोह भंग होता गया। खुद राहुल गांधी इधर जब-जब अमेठी आए उनके खिलाफ सड़कों पर जमकर प्रदर्शन हुआ। जबकि स्मृति ईरानी ने हर बार यहां आकर सौगातों की बौछार की। फिलहाल आलम यह है कि गठबंधन का प्रत्याशी मैदान में उतरने की भी सुगबुगाहट है। ऐसे में राहुल के लिए 2019 में अमेठी से जीत का ताज कांटों से भरा है।

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वैसे अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और 2 उपचुनाव में कांग्रेस ने 16 बार यहां जीत का परचम लहराया है। सिर्फ दो बार उसे हार का सामना करना पड़ा। 1977 में भारतीय लोकदल और 1998 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। बात अगर 2014 के चुनाव की करें तो इस चुनाव में राहुल गांधी को 4 लाख 8 हजार 651 वोट मिले थे। वहीं स्मृति ईरानी को 3 लाख 748 वोट और बीएसपी के धर्मेन्द्र प्रताप सिंह को 57 हजार 716 व आप के कुमार विश्वास को 25 हजार 527 वोट मिले थे।

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2014 में राहुल गांधी की सबसे कम वोट की जीत थी। वर्ष 2009 के चुनाव की अगर बात करें तो राहुल ने 3 लाख 50 हजार से भी ज्यादा के अंतर से चुनाव जीता था। उन्हें जहां 4 लाख 64 हजार 195 वोट मिले थे वहीं दूसरे पायदान पर रहे बीजेपी के प्रदीप कुमार को 37 हजार 570 वोट मिले थे। जबकि पहली बार 2004 में राहुल गांधी ने बसपा प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मिश्रा को 2,90, 853 वोटों के अंतर से हराया था।

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