रजनीश मिश्र
गाजीपुर /बलिया: बलिया संसदीय सीट को राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का नाम जुड़ा रहा है और वे छह बार यहां से सांसद चुने गए। इस बार इस सीट से भाजपा हाईकमान ने मौजूदा सांसद भरत सिंह का टिकट काटकर वीरेन्द्र सिंह मस्त को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछले दिनों टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर बलिया के सांसद भरत सिंह की रोती हुई तस्वीर आई थी। यह तस्वीर बता रही थी कि टिकट कटने से वह कितने आहत थे। मस्त के भाजपा पत्याशी घोषित किए जाने के साथ ही भरत सिंह के समर्थकों के विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें सामने आई थीं। यह दोनों तस्वीरें यह बताने को काफी हैं कि इस बार बलिया में भरत सिंह की नाराजगी भाजपा की खेल बिगाड़ सकती है।
1879 में जिला बना बलिया
बहरहाल सियासत की बात करने से पहले बलिया का धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक परिपेक्ष्य जान लेना आवश्यक है। ब्रिटिश इंडिया में गाजीपुर जनपद की तहसील रहे बलिया को तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर जनरल ने 1879 में गाजीपुर से अलग कर स्वतंत्र जिले का दर्जा दिया था। यदि हम बात करें प्राचीन भारत में बलिया के महत्व की यह स्थान ऋषि जमदग्नि, वाल्मीकि, भृगु और दुर्वासा की तपोभूमि रहा है। बलिया का धार्मिक एवं राजनैतिक उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किया है। 1857 के क्रांति के महानायक मंगल पांडे और महान क्रांतिकारी चीतू पांडे के नाम को कौन नहीं जानता है।
सामाजिक तानाबाना
राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बलिया में करीब 93 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है, जबकि 6.60 प्रतिशत मुस्लिम और चार हजार से अधिक इसाइयों की आबादी है। 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति के लोगों की आबादी 938 है।
साक्षरता दर की बात करें तो 81 प्रतिशत पुरुष और 60 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। बलिया जिले की कुल आबादी 32 लाख से अधिक है जो उत्तर प्रदेश का 29वां सबसे अधिक आबादी वाला जिला है। कुल आबादी में 81 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 3 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है।
छह बार जीते चंद्रशेखर
बलिया संसदीय सीट से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर छह बार सांसद रहे। 1977 में बलिया से जीत कर चंद्रशेखर पहली बार संसद पहुंचे थे। लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में वह जगन्नाथ चौधरी से चुनाव हार गए। चंद्रशेखर ने जगन्नाथ चौधरी को चार बार (1980, 1989, 1991 और 1996) हराया।
1990 में वह प्रधानमंत्री बने, लेकिन 7 माह बाद ही 21 जून 1991 को उनकी सरकार गिर गई। जुलाई 2007 में चंद्रशेखर ने निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे नीरज शेखर सांसद बने। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा के भरत सिंह से 139434 मतों के अंतर से हार गए।
भरत सिंह ने खोला भाजपा का खाता
2014 में चुनाव जीत कर भरत सिंह पहली बार लोकसभा पहुंचे। उनकी उपस्थिति भी 8 जनवरी 2019 तक 94 प्रतिशत रही। 2016 के बजट सत्र के दूसरे चरण में उनकी मौजूदगी 64 प्रतिशत रही जो निराशाजनक थी। उन्होंने 91 बहस में हिस्सा लिया और 425 सवाल भी पूछे। यहीं नहीं 2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी का खाता खोलने वाले भरत सिंह का 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट काटने का फैसला सभी को हैरान करने वाला है।
इसलिए कटा भरत सिंह का टिकट
आमजन ही बल्कि पार्टी कार्यकर्ता भी भरत सिंह पर क्षेत्र में दौरा न करने आरोप लगाते रहें हैं। उनका कहना है कि सांसद भरत सिंह का क्षेत्र केवल बलिया तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें गाजीपुर जिले के भी दो विधानसभा क्षेत्र आते हैं। भरत सिंह शायद ही अपने दोनों क्षेत्रों में कभी गए हों। अगर यहां आते भी थे तो केवल अपने प्रतिनिध के पास ही रुकते थे, विकास तो दूर की बात है।
बलिया भाजपा के वरिष्ठ नेता नागेंद्र पांडे ने सांसद भरत सिंह पर नाराजगी जताते हुए कहा कि पार्टी नेतृत्व ने सोच समझकर ही फैसला लिया है। बैरिया से लेकर मोहम्मदाबाद तक के कार्यकर्ता उनसे नाराज थे। उन्होंने कहा कि भरत सिंह ने अपने गोद लिए गांवों तक का विकास नहीं कराया है। इन्हीं गांवों में से एक गांव आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का गांव ओझवलिया भी है। अगर इस गांव में भी उन्होंने कुछ करवाया है तो बताएं। वैसे पार्टी में कोई मतभेद नहीं है। सभी नए प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त के साथ हैं।
पांच विधानसभा के वोटर करते हैं मतदान
बलिया संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें फेफना, बलिया सदर, बैरिया, जहुराबाद और मोहम्मदाबाद शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि जहुराबाद और मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र गाजीपुर जनपद के अधीन आते हैं। इन पांच विधानसभा सीटों में चार पर भाजपा और एक पर भाजपा समर्थित भासपा के विधायक चुनाव जीते हैं।