Election 2019: अम्बेडकर नगर में बीजेपी का पलड़ा भारी!
फिर 2002 में हुए उपचुनाव में बसपा के ही त्रिभुवन दत्त जीत हासिल कर संसद पहुंचे। इसके 2 साल बाद 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में मायावती फिर से चुनावी मैदान में उतरीं और जीत अपने नाम की।;
धनंजय सिंह
लखनऊ: यूपी की अम्बेडकरनगर सीट अस्तित्व में आने के बाद यहाँ से बसपा और भाजपा का दबदबा बना हुआ है। इस सीट पर पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति की बाहुल्यता होने के बावजूद पिछले दो लोकसभा चुनाव से सवर्ण जाति के प्रतिनिधि जीतता रहा है। पहले यह सीट अकबरपुर (सु) हुआ करती थी।
अकबरपुर (सु) सीट से चार बार बसपा सुप्रीमो मायावती सांसद चुनी जा चुकी है। छह बार कांग्रेस का कब्ज़ा रहा। 1991 में राम के लहर के बावजूद बीजेपी महज 153 वोटों से चुनाव हार गयी थी, लकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में त्रिकोडिय मुकाबले में शानदार जीत दर्ज की। कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन निरस्त होने के बाद अब गठबंधन और बीजेपी की आमने-सामने की लड़ाई है। बीजेपी ने अंबेडकर नगर से मुकुट विहारी वर्मा को टिकट दिया है जो यूपी के सहकारिता मंत्री हैं। सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से विधायक रीतेश पांडेय चुनाव मैदान में हैं।
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2014 में इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी। 2019 में यहाँ परिस्थितियां अलग है। इस बार सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से विधायक रीतेश पांडेय और प्रदेश सरकार में सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा के बीच सीधे मुकाबला है। जातीय आंकड़ों को देखा जाय तो इस सीट पर 4.50 दलित ( 2.50 लाख दलित और 2 लाख अतिदलित) 2 .56 लाख मुस्लिम, 2.50 लाख कुर्मी, 1.45 लाख ब्राह्मण, 1.50 लाख ठाकुर, 1.45 लाख यादव, 1.15 लाख निषाद, 1.30 लाख राजभर, 50 हजार बनिया, 60 हजार मौर्या, 25 हजार नाइ और अन्य 50 हजार हैं।
जातीय आंकड़ों को देखा जाए तो कही न कही बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी का पर्चा नहीं ख़ारिज हुआ होता तो , इस सीट की तस्वीर कुछ अलग होती। कांग्रेस प्रत्याशी के मैदान में आने से नुकसान बीजेपी का होना तय था। कांग्रेस प्रत्याशी उम्मीद निषाद के मैदान में रहने से निषाद और राजभर वोट अधिक मात्रा में अपने पाले में ले जाने सफल होते, लेकिन अब वह मतदाता सीधे तौर पर बीजेपी के साथ जाते हुए दिख रहे है। निषाद और राजभर मतदाता बीजेपीके साथ आने से अब मुकुट बिहारी वर्मा और रितेश पांडेय के बीच मुकाबला दिलचस्प हो गया है। आज शाम से इस सीट पर चुनाव प्रचार समाप्त हो गया है। 12 मई को अम्बेडकरनगर के मतदाता प्रत्याशियो का भविष्य तय केर देंगे।
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अंबेडकर नगर के संसदीय क्षेत्र बनने से पहले यह अकबरपुर सु संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता था और यहीं से जीत हासिल कर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती 3 बार लोकसभा में पहुंची थीं। 29 सितंबर, 1995 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इसका ऐलान करते हुए अंबेडकर नगर को उत्तर प्रदेश के नए जिले के रूप में स्थापना की। अंबेडकर नगर को फैजाबाद से अलग कर नए जिले के रूप में स्थापित किया गया और इसका मुख्यालय अकबरपुर को बनाया गया, जिसमे 5 तहसील और 10 ब्लाक में बंटे अंबेडकर नगर का कुल क्षेत्रफल 2,350 वर्ग किमी है।
अंबेडकर नगर अयोध्या मंडल के तहत आता है। इसका जिला मुख्यालय अकबरपुर का संबंध मुगल काल से माना जाता है। 1566 में मुगल सम्राट अकबर के यहां आने के दौरान इस शहर की स्थापना हुई। अपनी यात्रा के दौरान अकबर जिस जगह ठहरे उसे तहसील तिराहे के नाम से जाना जाता है। उन्होंने एक बस्ती भी बसाई जिसे अकबरपुर कहा जाता है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
2009 के परिसीमन में अकबरपुर सु सीट अम्बेडकरनगर नाम से बनी। 2009 के चुनाव में बसपा के राकेश पांडे ने समाजवादी पार्टी (सपा) के शंखलाल मांझी को हराया था। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की और बसपा से यह सीट छीन ली। बीजेपी के हरिओम पांडे ने बसपा के उम्मीदवार राकेश पांडे को हराया था। इससे पूर्व इस सीट पर बीजेपी का कभी कब्ज़ा नहीं था। 1991 राम के लहर में बीजेपी 153 वोट से कांग्रेस के उम्मीदवार रामअवध से हार गयी थी।
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1952 में यह फैजाबाद जिला (नॉर्थ-वेस्ट) के तहत आता था और यहां से कांग्रेस के पन्ना लाल ने चुनाव जीतकर क्षेत्र के पहले सांसद बने। 1957 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट बनी जहां से पन्ना लाल ने फिर जीत हासिल की थी। 1962 में पन्नालाल तीसरी बार सांसद बने।1967-71 और 1971-77 तक रामजी राम दो बार कांग्रेस से चुने गए। 1977-80 में जनता पार्टी से विशारद मंगलदेव चुने गए। 1980-84 में राम अवध जनता पार्टी सेक्युलर से चुने गए। 1984-89 में कांग्रेस ने कब्ज़ा जमाते हुए रामप्यारे सुमन विजयी हुए। 1989-1991 में बसपा सुप्रीमो मायावती पहली बार विजयी हुई।
1991-96 में रामअवध जनता दल से दुबारा संसद में पहुंचे। 1996-98 में बसपा से घनश्याम चंद्र खरवार चुने गए। यह सीट मायावती के संसदीय क्षेत्र के रूप में जानी जाती है। मायावती ने यहां से 4 बार लोकसभा चुनाव (अकबरपुर) में जीत हासिल की है। सबसे पहले वह 1989 में चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं। इसके बाद उन्होंने 1998 और 1999 में जीत हासिल की। लेकिन 2002 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी।
फिर 2002 में हुए उपचुनाव में बसपा के ही त्रिभुवन दत्त जीत हासिल कर संसद पहुंचे। इसके 2 साल बाद 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में मायावती फिर से चुनावी मैदान में उतरीं और जीत अपने नाम की। 2007 में फिर से राज्य की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देकर राज्य की राजनीति में लौट आईं और मुख्यमंत्री बनीं।
सामाजिक ताना-बाना
2011 की जनगणना के अनुसार, अंबेडकर नगर की आबादी 24 लाख है और यहां पर 12.1 लाख (51%) पुरुष और 11.9 लाख (49%) महिलाएं रहती हैं जिसमें 75% आबादी सामान्य वर्ग और 25% आबादी अनूसूचित जाति की है। धर्म के आधार पर 83% आबादी हिंदुओं और 17% मुस्लिमों की है. जिले की साक्षरता 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रति हजार पुरुषों को 978 महिलाएं हैं। यहां की साक्षरता दर 72% है जिसमें 82% पुरुष और 63% महिलाएं शिक्षित हैं।
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मायावती के गढ़ वाला इस अंबेडकर नगर संसदीय सीट के तहत गोसाईगंज, कटेहरी, टांडा, जलालपुर और अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं और इन 5 में से 3 पर बहुजन समाज पार्टी और 2 पर बीजेपी का कब्जा है।
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 17,18,774 मतदाता थे जिसमें 9,23,553 पुरुष और 7,95,221 महिला मतदाताएं शामिल थे। 5 साल पहले यहां 60.2% यानी 10,34,404 वोटिंग हुई थी. इसमें 7,422 (0.4%) लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया।
लोकसभा चुनाव में 14 उम्मीदवार मैदान में थे जिसमें मुख्य मुकाबला बीजेपी के हरिओम पांडे और बसपा के राकेश पांडे के बीच रहा। हरिओम को चुनाव में 432,104 (41.8%) वोट मिले जबकि राकेश पांडे को 292,67 (28.3%)मिले। इस तरह से हरिओम ने यह चुनाव 139,429 (13.5%) के अंतर से जीत लिया। सपा के राममूर्ति वर्मा तीसरे और कांग्रेस के अशोक सिंह चौथे स्थान पर रहे।