कविता: तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

Update: 2018-08-10 11:00 GMT

कैसर-उल जाफरी

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे

तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो

कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे

वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब

ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे

न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में

वो मुँह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे

तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर

कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

तुम आँख मूँद के पी जाओ जिंदगी ‘कैसर’

कि एक घूँट में मुमकिन है बद-मज़ा न लगे

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