लोकसभा 2019: अमेठी के लिए खास भी होगा और नया इतिहास भी लिखेगा, ये है वजह

उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से देश की निगाह अमेठी लोकसभा सीट पर टिकी है। महज दो दिन बाद यहां वोट पड़ने हैं। जब कांग्रेस की पारम्परिक सीट पर गांधी-नेहरू परिवार की विरासत संभाल रहे राहुल गांधी और टीवी सीरियल शो छोड़कर अमेठी की सियासी पिच से देश की मीडिया की सुर्खियों में बनी बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी का भाग्य ईवीएम में बंद होगा।

Update:2019-05-04 18:41 IST
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अमेठी: उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से देश की निगाह अमेठी लोकसभा सीट पर टिकी है। महज दो दिन बाद यहां वोट पड़ने हैं। जब कांग्रेस की पारम्परिक सीट पर गांधी-नेहरू परिवार की विरासत संभाल रहे राहुल गांधी और टीवी सीरियल शो छोड़कर अमेठी की सियासी पिच से देश की मीडिया की सुर्खियों में बनी बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी का भाग्य ईवीएम में बंद होगा। लेकिन 2019 का लोकसभा अमेठी के लिए ख़ास भी होगा और यहां की जमीन का नया इतिहास लिख जाएगा।

उसकी बड़ी वजह ये है कि इससे पहले के चुनाव में इतने स्टार प्रचारकों का उड़न खटोला अमेठी में नहीं उतरा होगा। ख़ासकर कांग्रेस के स्टार प्रचार को। पिछले दो दशक में महज़ प्रियंका गांधी के हाथों में यहां की पूरी चुनावी कमान होती थी। इस बार यहां की चुनावी बयार ही अलग है। संजय गांधी के श्रमदान से अमेठी में सींची गई गई कांग्रेसी जमीन पर स्वयं उन्होंने और उनके बाद राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी ने इमारत खड़ी की थी उसे डेढ़ दशक में राहुल गांधी संजो नहीं सके। नतीजा ये हुआ कि अब नींव में जब दरार आई तो जिस प्रियंका ने अमेठी में कांग्रेस की एक कुशल मिस्त्री बन 2004 में राहुल की इमारत खड़ी कराई थी अब अकेले उनसे ये इमारत नहीं संभली।

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परिणाम ये हुआ के 2014 में इमारत के अंदर आई दरार को देखकर अनसुना कर दिया गया और फिर पांच साल के अंदर सियासत में लगी वोटों की ईंटे कांग्रेस से अलग-थलग हो गई। जैसे ही 2019 के चुनावी समर का आगाज हुआ और नामांकन के समय कांग्रेस-बीजेपी का शक्ति प्रदर्शन हुआ तो इसका साफ असर देखने को भी मिला। पांच साल तक सियासी इमारत पर धन की पुताई के चलते बीजेपी के ईंट सरीखे सपोर्ट पुख्ता दिखे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के सपोर्ट खोखली ईंट के मानिंद। ख़ैर कांग्रेसी इमारत की पुरानी मिस्त्री प्रियंका ने इसे भांप लिया।

ताबड़तोड़ दौरे कर जहां उन्होंने रिपेयरिंग का काम शुरू किया वहीं काम अधिक होने और जल्दी पूरा कर इमारत को फिर से उसी कंडीशन मे लाने के लिए बतौर स्टार प्रचारक बाहर से भी मिस्त्री लाईं। सीएम भूपेश बघेल, नवजोत सिंह सिद्धू, हार्दिक पटेल, ग़ुलाम नबी आजाद, नदीम जावेद के अलावा प्रमोद तिवारी, आदिति सिंह, आराधना मिश्रा, रमाकांत यादव आदि की टोली आग फेंकती और शरीर को जलाती गर्मी में काम पर लग गई। इससे कुछ हद तक डैमेज इमारत व्यवस्थित हो गई।

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हालांकि बीजेपी उम्मीदवार ने पांच साल तक अपनी सियासी इमारत पर ताला नहीं लगाया। गाहे-बगाहे आईं, कुछ अलग लाकर इसमें लगाया और ढिंढोरा भी जमकर पीटा। आवाज तेज थी और उसको दूर तक पहुंचाने के लिए मीडिया जैसी सीमेंट। फिर क्या था दूर से चमकती हुई इमारत को देखता कौन नहीं चाहे उस इमारत पर पहुंचने के बाद मदद मिले या न मिले। कुछ ऐसा ही हुआ। इसका अंदाजा किसी को था या नहीं स्मृति ईरानी को बखूबी था। वो नामांकन फाइल कर यहीं पड़ गई और अपनी इमारत को मजबूत करने के लिए जिस गली और जिस कस्बे से जो मटेरियल मिल सकता था उसे लाने का भरसक प्रयास किया। अंत में जब सामने वाली इमारत वालों से कम्पटीशन बढ़ा तो उन्होंने भी वही किया जो सामने वाले कर रहे थे, यानी की वो भी सियासी इमारत के कुशल मिस्त्री ले आई।

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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, डिप्टी सीएम केशव मौर्य, स्वामी प्रसाद मौर्य, सांसद मनोज तिवारी, निरहुवा, राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह आदि-आदि। इन सबके साथ मिलकर खुद उन्होंने भी जमकर मेहनत की। अब आलम ये है के सियासी जमीन पर खड़ी दोनो इमारतो मे कोई किसी से कम नही, जो 6 मई को अमेठी की सियासी प्रदर्शनी में देखने योग्य होगी। अंत मे 23 मई को परिणाम सामने आएगा के लाखो वोटर्स मे किसने किस इमारत को कितना पसंद किया।

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