लखनऊः अखिलेश यादव की सरकार के दौरान यूपी में महिलाएं ज्यादा असुरक्षित हो गई हैं। रेप की घटनाएं करीब 45 फीसदी बढ़ गई हैं। सीएजी की रिपोर्ट ये खुलासा करती है। साथ ही सपा सरकार पर इस मामले में लगने वाले विपक्ष के आरोपों की तस्दीक भी ये रिपोर्ट करती है। यूपी उन राज्यों में शामिल हो गया है, जहां साल 2014 में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हुए हैं।
पुलिस में कम दर्ज हुईं शिकायतें
सीएजी रिपोर्ट का चौंका देने वाला तथ्य ये भी है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध के 0.16 फीसदी से भी कम को शामिल करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 में हिंसा पीड़ित महिलाओं की स्टडी की गई। इससे पता चला कि शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं में सिर्फ 2.1 फीसदी ने ही पुलिस से मदद मांगी।
साल दर साल महिलाएं हुईं असुरक्षित
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक अखिलेश ने जब कमान संभाली तो उस साल यानी 2012-13 में रेप की 2058 घटनाएं यूपी में हुईं। साल 2014-15 में ये बढ़कर 2945 हो गईं। शील भंग की घटनाएं भी 4106 से बढ़कर 7972 तक पहुंच गईं। लड़कियों को अगवा करने के मामले 2012-13 में 7057 थे, ये घटनाएं 2014-15 में 8964 हो गईं। कुल मिलाकर 2012-13 में महिलाओं के खिलाफ 24652 अपराध की घटनाएं हुई थीं। ये साल 2014-15 में बढ़कर 33694 तक जा पहुंचीं।
लखनऊ में भी रेप की ज्यादा घटनाएं
रिपोर्ट कहती है कि 2010 से 2015 के बीच सबसे ज्यादा रेप की घटनाओं वाले शहरों में राजधानी लखनऊ भी शामिल है। पांच बड़े शहरों में लखनऊ में इस दौरान 328, आगरा में 328, अलीगढ़ में 392, मुरादाबाद में 377, इलाहाबाद में 348 और मेरठ में 346 रेप की घटनाएं दर्ज की गईं। लखनऊ में रेप के तमाम मामलों में गौर करने की बात यही है कि पूरी सरकार यहीं से चलती है। सीएम यहीं रहते हैं और डीजीपी का दफ्तर और वीमेन पावर लाइन भी राजधानी में ही हैं।
पुलिस की है बड़ी कमी
यूपी में पुलिस की तादाद भी आपराधिक वारदातों की बड़ी वजह बन रही है। यहां हर एक लाख लोगों पर महज 81 पुलिसकर्मी हैं। ये संख्या राष्ट्रीय औसत 136.22 और संयुक्त राष्ट्र के मानक 222 से आधे से भी कम है। महिला पुलिस की बात करें तो सूबे में सिर्फ 7404 ही पुलिसकर्मी हैं। जो पुलिस बल का सिर्फ 4.55 फीसदी ही है। जाहिर है, जब महिला पुलिसकर्मी ही नहीं होंगी तो भला महिलाएं थाने में रिपोर्ट लिखाने क्यों जाएंगी।
बालिकाओं के खिलाफ भी माहौल
महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बाढ़ यूपी में आई है तो बालिकाओं के खिलाफ भी माहौल कम नहीं है। सीएजी रिपोर्ट कहती है कि सूबे के 58 फीसदी अल्ट्रासोनोग्राफी केंद्रों में भ्रूण का लिंग परीक्षण होता है। 20 जिलों में 1652 केंद्रों की जांच के बाद ये बात कही गई है। मशीनों में 24 घंटे से ज्यादा की मेमोरी न होने से भी ये अवैध काम फल-फूल रहा है। केंद्रों की मॉनीटरिंग भी नहीं होती। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की कमी, सीएचसी और पीएचसी की कम संख्या का भी जिक्र रिपोर्ट में है।
बच्चों के बारे में रिपोर्ट में क्या?
सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि यूपी के कुल बच्चों में 42 फीसदी कम वजन और 15 फीसदी क्षय रोग ग्रस्त हैं। अतिकुपोषित बच्चों की संख्या साल 2010-11 में 0.28 लाख से पांच गुना बढ़कर साल 2014-15 में 1.46 लाख हो गई है। रिपोर्ट बताती है कि स्कूल पूर्व शिक्षा न लेने वाली बालिकाओं की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। साल 2010-11 में ऐसी बालिकाएं तीन फीसदी थीं, जो 2014-15 में बढ़कर 33 फीसदी हो गई हैं।