वर्तमान से लेकर पूर्व तक सब हैं दौड़ में, कौन बनेगा तुरूप का इक्का?

राज बब्बर को इस लोकसभा चुनाव में केवल उनके क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया हैं। एक तरह से यहभी कह सकते हैं कि कांग्रेस ने इनको चुनावी मैदान में उतार कर इनको अपने क्षेत्र तक ही सीमित रखा है।

Update:2019-05-17 19:20 IST

धनंजय सिंह

17वीं लोकसभा के लिए हो रहा यह चुनाव कांग्रेस के लिए कई मायनों में खास है। पहला यह कि प्रियंका की धमाकेदार एंट्री हुई। दूसरे प्रियंका ने पहली बार अमेठी रायबरेली से बाहर निकलकर धुआंधार दौरे करके और अपने फायरिंग अंदाज से हाशिये में सिमट गई पार्टी को फिर से खड़ा करके मुकाबले पर ला दिया।

इन सब के बाद कांग्रेस में भी टिकट के लिए हलचल मची जिसमें कई ऐसे दिग्गज कांग्रेसी भी मैदान में दिखायी दिये जिन्हें पार्टी ने मैदान से बाहर बैठा रखा था। जब ये सज संवर कर सामने आए तो पता चला कि इनमें छह नेता ऐसे हैं जो प्रदेश कांग्रेस को अपना नेतृत्व भी दे चुके हैं। अब चुनाव की अग्नि परीक्षा यदि ये पास कर जाते हैं तो सितारों का चमकना तय है, वरना फिर गर्दिशों के दौर का मारा हूं दोस्तों.... वाली कहानी रह जाएगी।

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सूबे की सियासी बिसात पर कांग्रेस के आधा दर्जन प्रदेश अध्यक्ष चुनावी मैदान में जोर कसे हुए हैं, कभी संगठन के बल पर विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में पार्टी को अच्छे मुकाम पर ले जाने वाले ये नेता आज खुद संसद में पहुंचने को आतुर हैं। यह पुरनिया अध्यक्ष भले ही चुनावी मैदान में पार्टी का झंडा बुलंद कर रहे हों किन्तु पार्टी ने इन नेताओं को उनके लोकसभा क्षेत्र तक ही सीमित रखा है।

2019 के लोकसभा के चुनावी मैदान में कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर, निर्मल खत्री, श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद, जगदम्बिका पाल और रीता बहुगुणा जोशी किस्मत आजमा रही है, जबकि जगदम्बिका पाल और रीता बहुगुणा जोशी भाजपा के टिकट पर अपना किस्मत अजमा रही है। इनमें सलमान खुर्शीद और श्रीप्रकाश जायसवाल यूपीए सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

जगदम्बिका पाल बस्ती सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने इनको 2004 में यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौपी थी। इनकी अध्य्क्षता में 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा गया, 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज पांच सीट मिल पायी थी, उसके बाद वह प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिए गए।

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उन्होंने लोकतान्त्रिक कांग्रेस पार्टी बना कर एक दिन के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी बनाया। उसके बाद दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए, 2009 में डुमरियागंज से सांसद चुने गए। 2014 में भाजपा में शामिल हो गए और फिर डुमरियागंज से सांसद बने। अब तीसरी बार डुमरियागंज से सांसद बनने के लिए भाजपा से दोबारा किस्मत आजमाने चुनावी मैदान में उतरे हैं।

सलमान खुर्शीद को यूपी की राजनीति में एक मुस्लिम नेता के रूप में प्रदेश अधयक्ष की जिम्मेदारी सौपी गयी थी। सलमान खुर्शीद दो बार प्रदेश अध्यक्ष बने, एक बार 1998 से 2001 और दुबारा 2004 से 2007 तक रहे। इनके कार्यकाल में 1999 का लोकसभा का चुनाव लड़ा गया। इस लोकसभा के चुनाव में भी कांग्रेस को महज 5 सीट ही मिलीं। सलमान खुर्शीद 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत के संसद पहुंचे। वह केंद्र में यूपीए सरकार में कानून मंत्री बने। इस बार फिर खुर्शीद फर्रुखाबाद से चुनावी मैदान में हैं।

श्रीप्रकाश जायसवाल 2001 से 2002 के बीच प्रदेश अध्यक्ष रहे, इनके कार्यकाल में यूपी के विधान सभा का चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस विधानसभा के चुनाव में 32 सीट जीत पायी थी। श्रीप्रकाश जायसवाल 2009 के लोकसभा के चुनाव में कानपुर से सांसद चुने गए थे, जो केंद्र की यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। 2014 में वह कानपुर में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से चुनाव हार गए , 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस से मैदान में हैं।

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उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्षों में रीता बहुगुणा जोशी को कार्यकर्ताओं का प्रदेश अध्यक्ष कहा जाता था। अपनी ईमानदार छवि और बेबाक व जुझारू शैली की राजनीति के लिए मशहूर रही,इनका सबसे अधिक कार्यकाल प्रदेश अध्यक्ष के रूप में रहा। रीता बहुगुणा जोशी का कार्यकाल 2007 से 2012 तक रहा। इनके कार्यकाल में 2009 लोकसभा चुनाव लड़ा गया था। 2009 में कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थी, बाद में एक सीट कांग्रेस ने उपचुनाव में जीता था।

इनके कार्यकाल में 2012 का विधानसभा का चुनाव हुआ था, जिसमे कांग्रेस 29 सीटें जीती थी। प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटने के बाद कई मौकों पर यह कयास लगाये जाते रहे कि पार्टी अपने इस जुझारू नेता को कही न कही मौका देगी लेकिन पार्टी में नजरअंदाज किये जाने पर वह भाजपा में शामिल हो गयी। यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 2019 के लोकसभा के चुनाव में रीता बहुगुणा जोशी इलाहाबाद अब प्रयागराज संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।

यूथ संगठन से कांग्रेस की राजनीति की पारी खेलने वाले निर्मल खत्री को प्रदेश की जिम्मेदारी सौपी गयी। संगठन में अच्छी पकड़ रखने वाले निर्मल खत्री ने प्रदेश के संगठन में अहम् बदलाव किये। उन्होंने संगठन के लोगो को तरजीह दी। वह 2012 से 2017 तक प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। खत्री ने अपने कार्यकाल में जनहित से जुड़े कई मुद्दों पर आंदोलनों का नेतृत्व किया। 2009 के लोकसभा चुनाव में खत्री फैज़ाबाद से सांसद बने, जो 2014 में हार गए। इसबार फिर चुनावी मैदान में हैं।

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निर्मल खत्री के बाद यूपी की जिम्मेदारी सिने स्टार राजबब्बर को सौंपी गयी। राजबब्बर की अध्यक्षता में 2017 का विधान सभा का चुनाव लड़ा गया, कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन के बावजूद महज 7 सीटें जीत पायी थी, इस बार लोकसभा का चुनाव भी इन्ही की अध्यक्षता में लड़ा जा रहा हैं। राज बब्बर खुद फतेहपुर सीकरी के मैदान में हैं।

राज बब्बर भले ही प्रदेश अध्यक्ष हो किन्तु चुनावी कमान कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी बाड्रा के हाथ में हैं। राज बब्बर को इस लोकसभा चुनाव में केवल उनके क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया हैं। एक तरह से यहभी कह सकते हैं कि कांग्रेस ने इनको चुनावी मैदान में उतार कर इनको अपने क्षेत्र तक ही सीमित रखा है।

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