गज़ल सी मिली वो मिरी जिंदगी से
मुझे प्यार होने लगा शायरी से ।।
मिला है वफा का मुझे चांद जब से
नहीं अब शिकायत रही चांदनी से ।।
जमाना उसे क्यों न ठोकर लगाये
मिली चोट जिसको यहाँ मुफलिसी से।।
कभी फेर ली थी किसी ने निगाहें
वही आज मिलने लगा है खुशी से ।।
जिसे मय पिलायें तुम्हारी निगाहें
रखे वास्ता क्यों भला मयकशी से।।
खतावार हो गर नहीं तुम कहीं तो
सुनो ‘आरती’ तुम न डरना किसी से ।।