कवि गोपाल दास नीरज की वो '4 गजलें' जो हिला के रख देती हैं

Update:2018-07-19 20:53 IST

लखनऊ: हिंदी साहित्यकार, शिक्षक, कवि और गीत लेखक गोपाल दास नीरज का गुरूवार को 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए

जिस की ख़ुश्बू से महक जाए पड़ोसी का भी घर

फूल इस क़िस्म का हर सम्त खिलाया जाए

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी

कोई बतलाए कहाँ जा के नहाया जाए

प्यार का ख़ून हुआ क्यूँ ये समझने के लिए

हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा

मैं रहूँ भूका तो तुझ से भी खाया जाए

जिस्म दो हो के भी दिल एक हों अपने ऐसे

मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए

गीत उन्मन है ग़ज़ल चुप है रुबाई है दुखी

ऐसे माहौल में 'नीरज' को बुलाया जाए

हाथ मिलें और दिल न मिलें

ऐसे में नुक़सान रहेगा

जब तक मंदिर और मस्जिद हैं

मुश्किल में इंसान रहेगा

'नीरज' तू कल यहाँ न होगा

उस का गीत विधान रहेगा

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा

वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा

ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया

किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा

मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी

कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा

बड़ा छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है

सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा

ज़बाँ है और बयाँ और उस का मतलब और

अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा

लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे

उन्होंने आज जो संतों का आचरन देखा

जो सादगी है कुहन में हमारे 'नीरज'

किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए

जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए

रोज़ जो चेहरे बदलते हैं लिबासों की तरह

अब जनाज़ा ज़ोर से उन का निकलना चाहिए

अब भी कुछ लोगो ने बेची है अपनी आत्मा

ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए

फूल बन कर जो जिया है वो यहाँ मसला गया

ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए

छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो

आँख से आँसू नहीं शो'ला निकलना चाहिए

दिल जवाँ सपने जवाँ मौसम जवाँ शब भी जवाँ

तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए

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