सरकार की मंशा पर सवाल: दस गुना दाम देकर सजवाया मंच

Update: 2017-09-22 08:43 GMT

राजकुमार उपाध्याय की स्पेशल रिपोर्ट

लखनऊ: सतर्कता आयुक्त की गाइडलाइन को पंचायतीराज महकमे में बलाए ताक रख दिया गया। गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी टेंडर में सबसे कम दर (एल-1) कोट करने वाली कम्पनी को ही निविदा (टेंडर) देने का प्रावधान है, पर विभाग की तरफ से पंचायतीराज दिवस मनाने के आयोजन के लिए जो निविदा निकाली गई, उसमें उस कम्पनी को काम दिया गया जिसने टेंडर में एल-1 से दस गुना अधिक दर कोट की थी।

महकमे का यह हाल तब है जब राज्य सरकार ई-टेंडरिंग की मुनादी पीटते हुए पारदर्शिता की दुहाई दे रही है। शाहजहांपुर और एटा में बतौर जिलाधिकारी जनता की वाहवाही लूट चुके आईएएस अफसर विजय किरन आनन्द इन दिनों विभाग के सर्वेसर्वा हैं। फिलहाल एल-1 कम्पनी ने जब इसकी शिकायत की तो इस मामले का खुलासा हुआ। विशेष सचिव पंचायतीराज सुशील कुमार मौर्या की जांच में गड़बड़ी भी उजागर हुई मगर भ्रष्टों पर कार्रवाई के बजाय जांच रिपोर्ट गुम सी हो गई है।

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विजय किरन के पंचायतीराज महकमे का निदेशक बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि महकमे के भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसेगी, पर यह उम्मीद परवान चढ़ती उसके पहले ही आनन्द विभाग में सक्रिय भ्रष्ट अधिकारियों की लॉबी के कुचक्र में फंस गए। बीते 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के आयोजन में हुई हेराफेरी से यह उजागर भी हुआ। लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में मंच सज्जा और जलपान के लिए टेंडर मांगे गए थे।

जांच में सामने आया है कि टेंडर में एक फर्म की तरफ से 4.41 लाख रुपये (टैक्स सहित) की दर दी गयी थी। फिर उसकी निविदा अस्वीकृत कर दी गई। उसकी जगह दूसरी फर्म को काम का जिम्मा सौंप दिया गया। उस फर्म ने टैक्स के अतिरिक्त 45.43 लाख की दरें निविदा में कोट की थी।

दरों में था ज्यादा अंतर

सुशील कुमार ने अपनी जांच आख्या में कहा कि पहली और दूसरी फर्म के टेंडर की दरों में ज्यादा अंतर था। फिर भी इसका संज्ञान नहीं लिया गया। टेंडर के साथ प्रकाशित शर्तों के अतिरिक्त अन्य शर्तों के आधार पर निविदा का मूल्यांकन किया गया जिसका कोई आधार नहीं है। विशेष तौर पर मंच सज्जा के लिए स्वीकृत निविदा की दरें न्यूनतम दरों से बहुत अधिक थीं। मंच की सजावट के लिए जिस फर्म को टेंडर दिया गया उसकी दरें सबसे ज्यादा थीं।

सर्विस टैक्स का भुगतान अतिरिक्त है। सबसे कम दर पर टेंडर डालने वाली फर्म ने टैक्स सहित अपनी दरें दर्ज की थीं। बहरहाल, जांच रिपोर्ट में निविदा के मूल शर्तों के विपरीत लिए गए निर्णय में गड़बड़ी बताई गयी है। बता दें कि टेंडर के जरिए आयोजन के कामों को पूरा करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था।

निविदा कमेटी का तर्क

जांच में निविदा तय करने के लिए गठित कमेटी का भी मत लिय गया तो कमेटी ने तर्क दिया कि कार्यक्रम में अति विशिष्ट लोगों यानी मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और मंत्रिपरिषद के सदस्यों के साथ देश के सभी राज्यों के प्रतिभागियों को शामिल होना था। इसे देखते हुए 4.41 लाख रुपये कोट करने वाली फर्म की दरें व्यावहारिक नहीं पायी गईं। इसलिए मंच सज्जा के लिए न्यूनतम दर वाली फर्म की निविदा को स्वीकार नहीं किया गया।

भोजन-जलपान की दर भी अधिक

विभाग के घोटालेबाज अफसर यही नहीं रुके। उन्होंने कार्यक्रम में भोजन और जलपान के टेंडर में भी वही खेल किया जो खेल मंच की सजावट में हुआ था। इसमें भी कम दरों पर टेंडर डालने वाली फर्म को बाहर का रास्ता दिखाया गया। अनुभव को लेकर फर्म पर निशाना साधा गया। कहा गया कि टेंडर में कम दर कोट करने वाली कम्पनी के पास मुख्यमंत्री के कार्यक्रम कराने का अनुभव नहीं था। तर्क दिया गया कि अति विशिष्ट लोगों के कार्यक्रम में होने की वजह से इन दरों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन और जलपान दिया जाना व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता है।

शर्तों से खेल

जांच आख्या में साफ कहा गया है कि टेंडर की शर्तों के मुताबिक निविदादाता को किसी भी सरकारी विभाग में टेंडर के जरिये काम करने का एक वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है पर उसमें इस तरह की कोई शर्त नहीं रखी गई थी कि अतिविशिष्ट लोगों के कार्यक्रमों के आयोजन का अनुभव होना आवश्यक है।

यह भी घपला हुआ

सूत्रों के मुताबिक आयोजन में शामिल होने के लिए प्रदेश भर से ग्राम प्रधानों को भी बुलाया गया था। उनके राजधानी आने-जाने और ठहरने की जिम्मेदारी अपर मुख्य अधिकारियों को दी गई थी। घोटालेबाज अफसरों ने इसे भी भुना लिया। उनके ठहरने और अन्य इंताजामात की एवज में भी लाखों का भुगतान करा लिया गया।

निदेशक पर भी उठ रहे सवाल

योगी सरकार बनने के बाद विजय किरन आनंद को पंचायतीराज विभाग का निदेशक बनाया गया। उनके आसपास उन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों की फौज मंडराने लगी जो पिछली सरकारों में निदेशालय में अपने भ्रष्ट कारनामों को लेकर बदनाम रहे हैं। इधर सिलसिलेवार विभागीय घोटालों की पोल खुल रही है, उधर बतौर प्रशासनिक अधिकारी विजय किरन चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसे में उन पर सवाल उठना भी लाजिमी है।

अफसरों ने निकाला कमाई का रास्ता

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी कार्यक्रमों में आने वालों को बुके भेंट करने की परम्परा पर रोक लगाई मगर अफसर पहले ही कमाई का नायाब फार्मूला ईजाद कर चुके हैं। कार्यक्रमों में महानुभावों को फूल की कली पेश की जाती है पर मंच बगीचे की शक्ल में होता है। हाल के दिनों में हुए ऐसे तमाम आयोजनों की तस्वीरें इसकी तस्दीक करती हैं।

टेंडर के लिए गठित की गई थी यह समिति

राष्ट्रीय पंचायत दिवस के आयोजन में विभाग की तरफ से 13 अप्रैल को टेंडर की कार्यवाही पूरी की गई। इसके लिए अपर निदेशक शिव कुमार पटेल (पं.) की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय समिति गठित की गई थी। केशव सिंह, मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी को सदस्य/सचिव, एसएसन सिंह, उपनिदेशक (पं.) और गिरीश चन्द्र रजक, उपनिदेशक (पं.) को सदस्य बनाया गया था। समिति ने कार्यक्रम के आयोजन पर आने वाले खर्च के लिए बजट की व्यवस्था व कामों के टेंडर तय किए थे। विभागीय जानकारों के मुताबिक निदेशक पंचायतीराज ने इस पर सहमति दी थी और उनकी सहमति के बाद ही भुगतान हुआ था।

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