उज्जैन: पूरे शरीर पर भभूत, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथों में त्रिशूल। कुछ ऐसा ही होता है नागा साधुओं का रूप । उज्जैन में आपको ऐसे कई साधु मिल जाऐंगे, जिन्हें देखकर आपके मन में कई प्रश्न उठते होंगे कि आखिर ये किस दुनिया के लोग हैं और कहां से आए हैं । जहां कुछ लोग इन्हें भगवान और आस्था का रूप मानते हैं तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इनके रंग रूप और साधना विधि को देखकर डर जाते हैं ।
नागा करते थे मंदिरों और मठों की सुरक्षा
पुराने समय में नागा साधु मंदिरों और मठों की सुरक्षा करते थे और जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा के लिए लड़ाइयां भी लड़ते थे, लेकिन नागा साधू बनना आसान नही होता था। इसके लिए उन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना होता था।
लिंग-भंग: एक रहस्यमय प्रथा
सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ हैरत और रहस्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है। ब्रह्मचर्य की शपथ नागा साधु बनने की पहली शर्त है। इसके लिए साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है। पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त होने वाले साधक ही नागा साधु बन पाते हैं। लिंग-भंग भी नागा साधुओं की एक रहस्यमय प्रथा है, जिसका प्रयोजन पूर्ण ब्रह्मचर्य है।
भभूत एक मात्र वस्त्र
नागा बनने के लिए साधुओं को अपने वस्त्रों का त्याग करना पड़ता है किसी भी मौसम में वो वस्त्र नहीं पहन सकते हैं । वस्त्र का त्याग इस बात का प्रतीकार्थ है कि जीवन में वह ईश्वर के प्रति इतने लीन हो गए हैं कि उन्हें और किसी भी वस्तु का कोई मोह नहीं है। ऐसे में नागा साधू केवल भभूत को अपना वस्त्र मानते हैं।
धरती का पलंग
नागा साधु केवल धरती पर ही सो सकते हैं। वे पलंग, खाट, चौकी आदि का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वे सोने के लिए मोटे बिस्तर यानी गादी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
नीचे स्लाइड्स में देखिए नागा साधुओं की फोटोज
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