मजदूरों की जगह ली रोबोट ने,जानें कितने देशों में मनाया जाता है MAY DAY

Update:2016-04-30 16:46 IST

लखनऊ: एक मई को दुनिया के कई देश मजदूर दिवस मनाते हैं। भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था। 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है। वहीं, कनाडा में मजदूर दिवस सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है। मजदूर दिवस की शुरुआत कनाडा में 1972 में हुई। ये मजदूरों के अधिकारों की मांग के लिए शुरू किया गया था।

मजदूर दिवस को उत्सव के रूप में पहली बार अमेरिका में 5 सितंबर 1882 को मनाया गया। इस अवसर पर मजदूरों ने भाषण दिए। दुनिया के कई देशों में मजदूर दिवस 'मई डे' के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत शिकागो से हुई थी। मजदूरों ने वहां मांग की कि वे सिर्फ 8 घंटे काम करेंगे। इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया, हड़ताल और प्रदर्शन भी किया। अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि लेबर डे का फाउंडर कौन था?

कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर के फाउंडर पीटर जे. मैकगुरी ने इसकी शुरुआत की थी वहीं, कुछ अन्य लोगों का मानना है कि मैथ्यु मैगुरी ने इसकी शुरुआत की। ऑस्ट्रेलिया की टेरिटरी वाले न्यू साउथ वेल्स और साउथ ऑस्ट्रेलिया में मजदूर दिवस अक्टूबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है।

इतिहास मजदूर दिवस

मजदूर दिवस जिसको मई दिवस के नाम से जाना जाता है, इसकी शुरुआत 1886 में शिकागो में उस समय शुरू हुई थी, जब मजदूर मांग कर रहे थे कि काम की अवधि 8 घंटे हो और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी हो। इस हड़ताल के दौरान एक व्यक्ति ने बम फोड़ दिया और बाद में पुलिस फायरिंग में कुछ मजदूरों की मौत हो गई और कुछ पुलिस अफसर भी मारे गए।

इसके बाद 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए, उसी वक्त से दुनिया के 80 देशों में मई दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा।

1923 से इंडिया में हुई शुरुआत

यहां 1923 से मई डे को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में समाजवाद की आवाज कम ही सुनाई देती है। ऐसे हालात में मई दिवस की हालत क्या होगी, ये सवाल प्रासंगिक हो गया है। हम ऐतिहासिक दृष्टि से दुनिया के मजदूरों एक हो के नारे को देखें तो पता चलेगा कि उस वक्त भी दुनिया के लोग दो खेमों में बंटे हुए थे। अमीर और गरीब देशों के बीच फर्क था और आज भी है। सारे देशों में कुशल और अकुशल श्रमिक एक साथ ट्रेड यूनियन में भागीदार नहीं होते थे।

दूसरे विश्व दिवस ने बदली मजदूरों की दशा

प्रथम विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सारे श्रमिक संगठन और इसके नेता अपने देश के झंडे के नीचे आ गए। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब सोवियत संघ संकट में था तब वहां ये नारा दिया गया कि मजदूर और समाजवाद अपनी-अपनी पैतृक भूमि को बचाएं। इसके बाद पश्चिमी देशों में कल्याणकारी राज्य आया और मई दिवस का पुनर्जागरण हुआ।

अब दुनिया बदल चुकी है। सोवियत संघ के टूटने के साथ ही पूंजीवाद का विकल्प दुनिया में खो गया। औद्योगिक उत्पादन का तरीका बदल गया। औद्योगिक उत्पादन तंत्र का विस्तार पूरी दुनिया में हो गया। एक साथ काम करना और एक जगह करना । महज एक सपना रह गया। आजकल किताबें लिखी जा रही है 'काम का खात्मा।'

तकनीकी ने ले ली मजदूरों की जगह

दुनिया में सबसे बड़ा परिवर्तन ये आया है कि जो काम पहले 100 मजदूर मिलकर करते थे। वह काम अब एक रोबोट कर लेता है। उदाहरण के लिए टाटा की नैनो फैक्टरी में 4 करोड़ रु. के निवेश पर एक नौकरी निकलती है। यह काम भी मजदूर के लिए नहीं बल्कि तकनीकी रूप से उच्च शिक्षित लोगों के लिए है। सिंगुर या नंदीग्राम में प्रदर्शन क्यों होता है? क्योंकि स्थानीय लोगों ये पता है कि हमारे लिए या हमारे बच्चों के लिए कुछ नहीं है। तकनीक ने लोगों की आवश्यकता को कम कर दिया। इससे साधारण लोगों की जमीन खिसक गई है। लोग बेरोजगार हैं, जिनके पास रोजगार है उसको ये डर सताता है कि कल ये कहीं छीन न जाए।

 

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