श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: आदर्श आचार संहिता का मामला इन दिनों बहुत गरमाया हुआ है। वजह है तमाम नेताओं और प्रत्याशियों द्वारा ऊटपटांग, अभद्र और आपत्तिजनक बयान देना व अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना। ऐसे ही बयानों के कारण चुनाव आयोग ने मायावती, आजम खान, मेनका गांधी और योगी आदित्यनाथ पर कार्रवाई की है। ये कार्रवाई भी तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को जमकर लताड़ लगाई। पहले तो आयोग के वकील कोर्ट में लाचारी जता रहे थे कि आयोग के पास कोई ताकत ही नहीं है, लेकिन जब कोर्ट ने फटकारा और सख्त टिप्पणियां कीं तो आनन-फानन में आयोग को अपनी ताकत का अहसास हो गया और कुछ ही घंटों में मायावती, योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी और आजम खान पर कार्रवाई हो गई।
चुनाव आयोग ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और आजम खां पर चुनाव प्रचार के लिए रोक लगाई थी। इस बार तो इस तरह की बयानबाजी होने लगी कि सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। ऐसा नहीं कि आयोग पहले कार्रवाई नहीं कर सकता था पर यह उसकी अनदेखी थी। आयोग के पास असीमित अधिकार हैं। वह किसी प्रत्याशी पर चुनाव लडऩे से प्रतिबंध लगा सकता है, नामांकन तक खारिज कर सकता है। हाल ही में चुनाव आयोग ने करीब 11 करोड़ रुपए नकद बरामद होने के बाद तमिलनाडु की वेल्लोर सीट पर चुनाव रद कर दिया। जो नकदी बरामद हुई थी उसे वोटरों में बांटा जाना था। तमिलनाडु में नोट के बदले वोट कोई नई बात नहीं है। पहले भी कई बार चुनाव रद हुए हैं, लेकिन किसी प्रत्याशी के चुनाव लडऩे पर आयोग रोक नहीं लगा पाया है जबकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार है।
नोटिसें और केस दफन हो जाते हैं फाइलों में
चुनाव आयोग हर चुनाव में कार्रवाई करता है। हजारों-लाखों नोटिसें जारी करता है। मुकदमे दर्ज करवाता है। ये बात अलग है कि चुनावों के बाद न तो इन नोटिसों का कोई पता चलता है और न ही मुकदमों का। मिसाल के तौर पर २०१४ के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने देश भर में कुल ४,२६,०७७ नोटिसें जारी कीं। १६०४८ एफआईआर दर्ज हुईं जिनमें ११६४ तो यूपी में ही दर्ज की गई थीं। इनका अंजाम क्या हुआ, यह किसी को नहीं पता। असल में चुनाव आयोग चुनाव खत्म होने के बाद किसी नोटिस या मामले का फालोअप नहीं करता है। कोई कार्रवाई कभी होती भी है तो सिर्फ कोर्ट के हस्तक्षेप पर ही।
असीमित अधिकार
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग दोनों को भारत के संविधान से शक्तियां मिली हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर मामले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत चुनाव आयोग को असीमित शक्तियां मिली हुई हैं। सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट भी संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करता है तो फिर चुनाव आयोग अनुच्छेद-324 के तहत अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के बारे में क्यों भ्रमित है? 2019 का आम चुनाव सभी पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया के जरिए भी लड़ा जा रहा है। सभी बड़ी पार्टियों ने आईटी सेल बना रखे हैं। तकनीकी के नए दौर में चुनाव आयोग ने अधिकारों के इस्तेमाल की बजाय सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक ऐच्छिक कोड बना दिया है। टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से जो प्रचार हो रहा है उससे चुनाव आयोग के आदेश बेमानी हो सकते हैं।
कानून से भी मदद नहीं
आईपीसी की धारा 15३ के तहत कोई शख्स जो धार्मिक आधार पर लोगों की भावनाएं भडक़ाने का काम करता है या पूर्वाग्रहों के आधार पर सामाजिक सद्भाव बिगाडऩे की कोशिश करता हो, उसे सजा का प्रावधान है। इसके तहत अधिकतम तीन साल तक की सजा हो सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार की मंजूरी आवश्वयक है। इस वजह से दर्ज होने वाली शिकायतों में दोष सिद्ध होने का आंकड़ा काफी कम है। ऐसे हर 30 केस में से किसी एक को ही दोषी करार दिया जाता है।