Lok sabha election 2019 : अपने पुराने लड़ाकों की चुनौती से घिरे राजा
स्थान-पडरौना बाजार। तारीख-2 मई। समय-शाम के 5 बजे। जनसंपर्क के दौरान युवाओं के बीच वालीबाल खेलते यूपीए सरकार के पूर्व मंत्री और कुशीनगर से कांग्रेस प्रत्याशी कुंवर आरपीएन सिंह के चेहरे की भाव भंगिमा संकेत भी देती है, संदेश भी।
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: स्थान-पडरौना बाजार। तारीख-2 मई। समय-शाम के 5 बजे। जनसंपर्क के दौरान युवाओं के बीच वालीबाल खेलते यूपीए सरकार के पूर्व मंत्री और कुशीनगर से कांग्रेस प्रत्याशी कुंवर आरपीएन सिंह के चेहरे की भाव भंगिमा संकेत भी देती है, संदेश भी। संकेत और संदेश यह कि पांच साल पहले करीब 85 हजार वोटों से मिली हार की वजहों को वह किसी कीमत पर पास फटकने नहीं देना चाहते हैं। उनके टारगेट वोटर मुस्लिम, युवा, व्यापारी और किसान नजर आते हैं। जिसे सहेजने के लिए कभी वह वालीबाल खेलते नजर आते हैं तो हाट बाजार में जलेबी छानते दिखते हैं। कभी बुजुर्ग किसान को हाथ देकर थामने की कोशिश करते हैं तो कभी भोजपुरी में बतियाते हुए खुद को कुशीनगर का बेटा साबित करते नजर आते हैं।
गांव-गांव खाक छान रहे राजा की सियासी पैतरेबाजी कितना नफा नुकसान पहुंचाएगी, यह तो 23 मई को ही साफ होगा मगर कुशीनगर के वोटरों का मिजाज भांपने की कोशिश में इस निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि भाजपा हो या फिर गठबंधन, लड़ कांग्रेस से ही रहे हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार कुंवर आरपीएन सिंह को सिर्फ जनता ही नहीं विरोधी भी राजा कहकर पुकारते हैं। इसकी वजह है इस सीट पर गहड़वाल राजवंश का लंबे समय तक कब्जा। कुंवर आरपीएन सिंह के पिता स्व. सी.पी.एन. सिंह इस सीट से जीतकर इंदिरा गांधी की कैबिनेट में मंत्री रहे हैं। चुनावी महाभारत के कुरुक्षेत्र में अजीबोगरीब स्थिति दिख रही है। इस सीट पर कभी आरपीएन के करीबी रहे विजय दूबे भाजपा के टिकट पर तो नथुनी प्रसाद कुशवाहा बतौर गठबंधन उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।
2014 में दूसरे नंबर पर थी कांग्रेस
कुशीनगर पूर्वांचल की इकलौती सीट है जहां 2014 के मोदी लहर में कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे। जिस प्रकार गोरखपुर उपचुनाव में भाजपा की हार पर लोगों को यकीन नहीं हो रहा था, उसी तरह 2014 में विकास कार्यों की बुनियाद पर हर कोई कुंवर आरपीएन सिंह की जीत की उम्मीद कर रहा था। पांच साल पहले आरपीएन को जिन चेहरों से मुकाबला करना पड़ा था, वे बदल चुके हैं। तब आरपीएन को भाजपा के राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू से करीब 85 हजार वोटों की शिकस्त खानी पड़ी थी। कड़े टक्कर वाले चुनाव में बसपा के डॉ.संगम मिश्रा और सपा के राधेश्याम सिंह मिलकर भी कुंवर आरपीएन के बराबर वोट हासिल नहीं कर सके थे। फिलहाल, भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण की धरती के सियासी संग्राम में उलटफेर हो चुका है।
भाजपा ने उतारा है नया चेहरा
भाजपा ने सांसद राजेश पांडेय के खराब रिपोर्ट कार्ड से दिख रहे गुस्से को कम करने के लिए विजय दुबे के रूप में नया चेहरा उतार दिया है। मूल रूप से रेलवे के ठेकेदार रहे विजय दूबे की राजनीति में एंट्री योगी आदित्यनाथ के फायरब्रांड संगठन हिन्दू युवा वाहिनी से हुई। टिकट को लेकर योगी आदित्यनाथ से अनबन हुई तो विजय ने कुंवर आरपीएन सिंह का दामन थाम लिया। 2012 में खड्डा सीट से विजय दूबे कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत हासिल करने में सफल रहे।
तब आरपीएन ने विजय के लिए राहुल की सभा मैनेज की थी। विधानसभा चुनाव से चंद दिनों पहले हुए राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करने पर विजय शीर्ष नेताओं की नजर में आ गए। शीर्ष नेतृत्व का आशीर्वाद हासिल कर वह भाजपा का टिकट हासिल करने में कामयाब हुए। वहीं गठबंधन उम्मीदवार नथुनी प्रसाद कुशवाहा भी कांग्रेस में रहे हैं। नथुनी कुशवाहा कभी कुंवर आरपीएन सिंह और उनके परिवार के लिए दलित और कुशवाहा वोटों का इंतजाम करते रहे हैं। बदले सियासी परिवेश में नथुनी राजपरिवार के खिलाफ सियासी मोर्चेबंदी कर रहे हैं।
चार सीटों पर जीते हैं भाजपा विधायक
आरपीएन सिंह की गतिविधियों पर करीब से नजर रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनोज पासवान कहते हैं कि सुबह हवाई चप्पल पहनकर आरपीएन सिंह पहले राउंड का प्रचार कर लेते हैं। इसके बाद उनका प्रचार अभियान सिस्टम में आता है। कांग्रेस प्रत्याशी सिर्फ किसान और नौजवान के मुद्दे को उछालते नजर आते हैं। आरपीएन अपने भाषणों में गन्ना बकाए के मुद्दे को उछालते हैं। कहते हैं कि गन्ना किसान पर्ची लेकर भटक रहा है। गेहूं की फसल के साथ गन्ना भी खेतों में सूख रहा है।
भाजपा के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले विजय दूबे सुबह 9 बजे से ही जनसंपर्क में निकल जाते हैं। लोगों के बीच सिर्फ एक मुद्दा लेकर पहुंच रहे हैं कि फिर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने को भाजपा को वोट कीजिए। हाटा के इंटर कॉलेज में शिक्षक विनोद कुमार जायसवाल कहते हैं कि यहां विजय दूबे सिर्फ भाजपा के मुखौटा है। नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं।
कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र (खड्डा, पडरौना, कुशीनगर, हाटा और रामकोला) आते हैं। चार सीटों पर भाजपा के विधायक हैं तो रामकोला सीट से भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लडऩे वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रामानंद बौद्ध विधायक हैं। पडरौना में कोचिंग चलाने वाले दिनेश त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर की बगावत के चलते क्षेत्र में राजभर बिरादरी का गुस्सा वोट के रूप में दिखा तो भाजपा को नुकसान होगा।
गठबंधन व भाजपा के सामने अपनों को जोडऩे की चुनौती
कुशीनगर में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा और गठबंधन दोनों में आपसी कलह से जूझते नजर आ रहे हैं। भाजपा सांसद राजेश पांडेय उर्फ गुडडू और उनके चुनिंदा समर्थकों का उत्साह ठंडा दिख रहा है। सांसद रस्मी जनसंपर्क करते दिख रहे हैं। इसके साथ ही सीट से पीएन पाठक और संगम मिश्रा भी टिकट की उम्मीद में थे। नए सियासी माहौल में दोनों विजय के विजय के लिए कितना प्रयास करते हैं, यह भविष्य की गर्भ में है। उधर, गठबंधन उम्मीदवार नथुनी प्रसाद कुशवाहा को वोटरों के बीच पहुंचने से पहले अपने ही दल के दिग्गजों से जूझना पड़ रहा है। टिकट के दावेदार रहे पूर्व सांसद बालेश्वर यादव, पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी और राधेश्याम सिंह भले ही साइकिल की रफ्तार बढ़ाने का दावा करें, लेकिन उनके कार्यकर्ताओं में टिकट न मिलने का दर्द झलक ही जाता है। लक्ष्मीगंज के सपा कार्यकर्ता जितेन्द्र यादव कहते हैं कि गठबंधन उम्मीदवार के प्रति निष्ठा तो है, लेकिन नथुनी की जगह बालेश्वर या राधेश्याम होते तो तस्वीर दूसरी होती। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि कुशवाहा वोटर पिछले चुनाव में भाजपा के साथ थे, उनमें बिखराव होता है तो राजा की राह आसान होगी।
जातीय समीकरण साधने में जुटे सभी प्रत्याशी
भाजपा उम्मीदवार भाषणों में भले ही केन्द्र सरकार की योजनाओं को गिनाएं, लेकिन जनसंपर्क के दौरान वह जातिगत समीकरणों को साधने में ही जुटे दिखते हैं। कुशीनगर में हाटा और पडरौना सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। वहीं रामकोला में कुशवाहा और राजभर वोटर बहुसंख्यक हैं। वहीं लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोटरों के बाद ब्राह्मण निर्णायक स्थिति में हैं। वहीं कुशवाहा वोटरों पर सभी की नजर है। गठबंधन ने नथुनी प्रसाद कुशवाहा को टिकट कुशवाहा वोटरों को ध्यान में रखकर दिया है।
गठबंधन के रणनीतिकार मानते हैं कि कुशवाहा, मुस्लिम, दलित के साथ कुछ पिछड़े वोटों में सेंधमारी हुई तो गठबंधन उम्मीदवार को बढ़त मिल सकती है। कुशवाहा वोटरों का बैंक देख कर ही कभी बसपा के नंबर दो नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्या ने कुशीनगर का रुख किया था। वर्तमान में योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या पडरौना सीट से भाजपा के विधायक हैं। वर्तमान में स्वामी प्रसाद मौर्या उन इलाकों के व्यापक जनसंपर्क कर रहे हैं, जहां कुशवाहा वर्ग अधिक संख्या में है। वहीं बसपा के दलित वोटों में सेंधमारी के लिए भाजपा ने लोजपा के राम विलास पासवान की भी जनसभाएं कराई हैं। उधर, कांग्रेस प्रत्याशी कुंवर आरपीएन सिंह सभी जातियों में पैठ बनाने की कोशिशों में हैं। उनकी प्राथमिकता वाला टॉरगेट वोटर मुस्लिम, नौजवान और किसान है।
एक महाविद्यालय के प्रबंधक राजा श्रीवास्तव का कहना है कि आरपीएन ही भाजपा से लड़ते हुए दिख रहे हैं, ऐसे में मुस्लिम वोटरों का स्वभाविक झुकाव उनकी तरफ है। कुछ इलाकों में मुस्लिम गठबंधन की तरफ भी जाते दिख रहे हैं। राजपरिवार के राजनीतिक रसूख के चलते सभी जातियों में आरपीएन सिंह का दखल है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि त्रिपाठी कहते हैं कि भाजपा ओमप्रकाश राजभर को भले ही दरकिनार करे, लेकिन उसकी सर्वाधिक चिंताएं रामकोला विधानसभा में ही दिख रही हैं। लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के बाद इसी विधानसभा के कप्तानगंज में पीएम नरेन्द्र मोदी की जनसभा प्रस्तावित है। जाहिर है भाजपा उम्मीदवार बदलने के बाद भी परिस्थिति बदलने में नाकामयाब रही है।
मुद्दों से बच रही भाजपा, विपक्ष उन्हीं पर घेर रहा
2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर यह कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी की पडरौना में सभा के बाद ही कुशीनगर में भाजपा के जीत की राह प्रशस्त हुई थी। जनसभा में किसानों के जख्म पर हाथ रखते हुए मोदी ने पडरौना चीनी मिल को चालू कराने का वादा किया था। पांच साल बाद चीनी मिल तो नहीं चालू हुई, लेकिन गन्ना किसानों की दुश्वारियां बढ़ गईं। ढाढा चीनी मिल को छोड़ दें तो चालू अन्य चीनी मिलों पर किसानों का करोड़ों का गन्ना मूल्य बकाया है।
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छितौनी क्षेत्र के गन्ना किसान विनय कुशवाहा कहते हैं कि पिछले वर्षों का सवा दो लाख रुपये बकाया है, इस बार का भी भुगतान नहीं हुआ। गृहिणी स्मिता त्रिपाठी सवाल करती हैं कि सिद्धार्थनगर में यूनिवर्सिटी खुल सकती है तो कुशीनगर में क्यों नहीं। देवरिया में मेडिकल कॉलेज तो कुशीनगर में क्यों नहीं। वहीं कुशीनगर जिला मुख्यालय तक रेल लाइन का वादा एक बार फिर पूरा नहीं हुआ। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली को परिनिर्वाण स्थली से जोडऩे की योजना भी फाइलों में ही दबी हुई है।
सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ब्रह्माशंकर त्रिपाठी चुनावी मौसम में एअरपोर्ट की लेटलतीफी पर योगी को घेरते हैं। उनका कहना है कि कुशीनगर एयरपोर्ट को एयरपोर्ट अथॉरिटी आफ इंडिया को सौंपने और जुलाई में शुरू कराने का दावा चुनावी जुमला है। प्रदेश के बजट में जेवर व अयोध्या एयरपोर्ट के लिए 700 करोड़ की मंजूरी हुई, लेकिन कुशीनगर को फूटी कौड़ी नहीं दी। सपा की सरकार ने 199 करोड़ देकर एयरपोर्ट का निर्माण कराया है और एयरपोर्ट को सपा ही चालू कराएगी। वहीं कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू का कहना है कि पीएम ने पडरौना चीनी मिल को चालू करने और एयरपोर्ट के लोकार्पण का जुमला पिछली बार चुनावी सभा में फेंका था। लोगों के गुस्से से बचने के लिए वह कप्तानगंज में सभा कर रहे हैं।
कुशीनगर लोकसभा
कुल मतदाता- 17,36,860
पुरुष मतदाता - 9,45,418
महिला मतदाता - 7,91,305
अन्य मतदाता 137
जातीय समीकरण
मुस्लिम- 3.5 लाख
दलित- 3 लाख
राजपूत और सैथवार- 1.2 लाख
ब्राह्मण- 1.80 लाख
निषाद- 80 से 90 हजार
कुशवाहा- 2.40 लाख
राजभर- 1.20 लाख
यादव- 90 हजार
2014 लोकसभा चुनाव परिणाम
भाजपा- राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू 370051
कांग्रेस- कुंवर आरपीएन सिंह 284511
बसपा- डॉ संगम मिश्रा 132881
सपा- राधेश्याम सिंह 111256