Election 2019: लोकसभा चुनाव में फीका है भगवा का चटक रंग

यूपी में लोकसभा का चुनावी उफान है लेकिन भगवा का चटक रंग फीका है। अशोक सिंघल के निधन के बाद विश्व हिन्दू परिषद शांत है, बजरंगदल निष्क्रिय है और भाजपा ने हिन्दुत्ववादी रुख से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है।

Update:2019-04-08 20:00 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: यूपी में लोकसभा का चुनावी उफान है लेकिन भगवा का चटक रंग फीका है। अशोक सिंघल के निधन के बाद विश्व हिन्दू परिषद शांत है, बजरंगदल निष्क्रिय है और भाजपा ने हिन्दुत्ववादी रुख से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है।

अयोध्या के अधिकतर संत अपने आश्रमों में धर्म-कर्म में लीन है तो मंदिर आंदोलन से जुडे़ रहे भाजपा नेताओं ने अपनी दिशा अब बदल ली है।

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उन्नाव से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे साक्षी महराज ही ऐसे नेता हैं जो यदाकदा अपने बयानों से भगवा रंग को चटक करने की कोशिश करते रहते है। ऐसा ही कुछ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी साथ है, जो भगवा राजनीति को चटकारने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन सूबे की बड़ी जिम्मेदारी के चलते उनके बयां अब बहुत ही सधे हुए आते हैं।

जबकि भगवा चोले वाले अन्य नेताओं ने चुप्पी चुप्पी साध रखी है।

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भाजपा ने अकेले अपने दम पर 1991 में यूपी की सत्ता हासिल की थी

90 के दशक में कल्याण सिंह, उमाभारमी, साध्वी ऋतम्भरा, विनय कटियार, स्वामी चिन्मयानन्द, स्वामी सुरेशानंद , रामविलास वेदान्ती, कौशलेंद्र गिरि की पहचान ‘भगवा राजनीति’ करने वालों की ही श्रेणी में हुआ करती थी। मंदिर आंदोलन के कारण ही भाजपा ने अकेले अपने दम पर 1991 में यूपी की सत्ता हासिल की थी।

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लालकृष्ण आडवानी,कल्याण सिंह हो या विनय कटियार, या उमा भारती हों । देश में इनकी पहचान भगवा के इसी चटक रंग के सहारे बनी। इस दौर में उमाभारती और साध्वी ऋतम्भरा के भाषण के कैसटों की धूम हुआ करती थी। यह बात अलग है कि उमाभारती केन्द्र में मंत्री होने के साथ इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रही हैं। और ऋतम्भरा राजनीति से किनारा कर मथुरा के पास अपना वात्सल्य आश्रम चला रही हैं।

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हांलाकि साध्वी निरंजन ज्योति आंदोलन की मुख्य धारा में नहीं थी लेकिन केन्द्र में मंत्री बनने तक का सफर भगवा के इसी चटक रंग के सहारे उन्होंने तय किया। साध्वी सावित्री बाई फूले ने भाजपा के टिकट पर पहले विधायक और बाद में सांसद बनी। हांलाकि उन्होंने अब भाजपा छोड़ दी है और इस बार वह लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहीं हैं।

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भाजपा के फायरब्रांड नेता कहे जाने वाले विनय कटियार की धार अब कमजोर हो चुकी है। मंदिर आंदोलन के कारण ही वह बजरंग दल से भाजपा में शामिल होकर फैजाबाद से तीन बार सांसद बने।

वह इन दिनों में सक्रिय राजनीति में तो हैं परन्तु ‘भगवा राजनीति’ से लगभग किनारा कर चुके हैं। स्वामी कौशलेन्द्र गिरि को जब 2007 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वह जनता दाल से चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचे।

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अब वह भी परिदृश्य से पूरी तरह बाहर हो चुके हैं। मंदिर आंदोलन से जुडे़ रहे स्वामी चिन्मयानन्द तो भगवा राजनीति करते करते केन्द्र में गृह राज्य मंत्री तक बने। लेकिन अब शायद नई पीढ़ी स्वामी चिन्मयानन्द के बारे में जानती भी न हो।

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