मतदाताओं की शीर्ष दस प्राथमिकताओं में सरकार का प्रदर्शन औसत से कम

नेशनल इलेक्शन वाच ने चुनाव से पहले अखिल भारतीय भारतीय सर्वे कराया है जिसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं पर सरकार का प्रदर्शन औसत से कम सामने आया है। यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि सरकार के प्रदर्शन से मतदाता असंतुष्ट हैं।

Update:2019-03-25 19:20 IST

लखनऊ : नेशनल इलेक्शन वाच ने चुनाव से पहले अखिल भारतीय भारतीय सर्वे कराया है जिसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं पर सरकार का प्रदर्शन औसत से कम सामने आया है। यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि सरकार के प्रदर्शन से मतदाता असंतुष्ट हैं।

31 सूचीबद्ध मुद्दे

सर्वेक्षण में 31 सूचीबद्ध मुद्दों जैसे पेयजल, बिजली, सड़कें, भोजन, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन इत्यादि पर मतदाताओं की प्राथमिकताओं पर प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके सम्बंधित क्षेत्र में उनके जीने की स्थिति को बेहतर बनाने में इनकी क्षमता, शासन और विशिष्ट भूमिका के अनुसार तय किये गए थे।

पांच तीन और एक अंक देने थे

मतदाताओं से उनकी पाँच शीर्ष प्राथमिकताओं की सूची बनाने को कहा गया। मतदाताओं की इन प्राथमिकताओं का विश्लेषण, मतदाताओं के अनुभव के अनुसार, उन मुद्दों पर सरकार के प्रदर्शन के सम्बन्ध में किया गया। एक त्रि-स्तरीय पैमाने - 'अच्छा', 'औसत' और 'बुरा' - का प्रयोग किया गया, जहाँ 'अच्छा' को 5, 'औसत' को 3 और 'बुरा' को 1 अंक दिए गए।

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रोजगार और मूलभूत सुविधाएं सबसे ऊपर

सर्वे के नतीजों में बताया गया कि मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं से यह पूर्णतया स्पष्ट है कि भारतीय मतदाता रोज़गार और मूलभूत सुविधाओं (जैसे स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, बेहतर सड़कें इत्यादि) को सभी शासकीय मुद्दों से ऊपर प्राथमिकता देते हैं।

मूलभूत अधिकारों से वंचित हो रहा है मतदाता

निर्विवाद रूप से, इन क्षेत्रों में प्रचलित शासन की कमी के नतीजे के रूप में सामने आया है। इससे स्पष्ट होता है कि आम भारतीय मतदाता को उसके मूल अधिकारों, जैसे कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में सन्निहित सम्मान के साथ जीने के अधिकार, से वंचित रख रहा है। समावेशी एवं न्यायसंगत विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि यह मूलभूत सेवाएं समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे क्योंकि यह मानवीय क्षमताओं के विकास की कुंजी है।

मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं पर सरकार का प्रदर्शन औसत से कम सामने आया है। यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि सरकार के प्रदर्शन से मतदाता असंतुष्ट हैं। अत: सरकार को चाहिए कि वह विशेषकर इन क्षेत्रों को प्राथमिकता दे और इनमें निवेश करे।

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शीर्ष प्राथमिकताओं में सबसे खराब रेटिंग

रोज़गार के बेहतर अवसर, जो कि मतदाताओं की शीर्ष प्राथमिकता है, पर सरकार के प्रदर्शन को सबसे ख़राब में से एक (5 के पैमाने पर 2.15) रेटिंग मिली है। राज्यों एवं केंद्र- शासित प्रदेशों जैसे ओडिशा, कर्नाटक एवं दमन और दीव में मतदाताओं की शीर्ष प्राथमिकता पेयजल है।

मतदाताओं की प्राथमिकताएं एवं सरकार का प्रदर्शन

अखिल भारतीय सर्वे रिपोर्ट 2018 के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर मतदाताओं की शीर्ष तीन प्राथमिकताएं रोजगार के बेहतर अवसर (46.80%), बेहतर अस्पताल/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (34.60%) और पेयजल (30.50%) हैं, इसके बाद बेहतर सड़कें (28.34%) और बेहतर सार्वजनिक परिवहन (27.35%) क्रमशः चौथे एवं पांचवे स्थान पर हैं।

ग्रामीण अंचल में कृषि है शीर्ष प्राथमिकता

सर्वे में कहा गया है कि इस पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि अखिल भारतीय स्तर पर मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में कृषि से सम्बंधित मुद्दे विशेष रूप से सामने आये, उदाहरणार्थ कृषि के लिए जल की उपलब्धता (26.40%) छठे स्थान पर, कृषि ऋण की उपलब्धता (25.62%) सातवें स्थान पर, कृषि उत्पादों के लिए अधिक मूल्यों की प्राप्ति (25.41%) आठवें स्थान परऔर बीजों / उर्वरकों के लिए कृषि सब्सिडी (25.06%) नवें स्थान पर दिखाई दिए हैं।

अस्पताल और पेयजल के मामले में भी नीचे

मतदाताओं की अन्य दो शीर्ष प्राथमिकताओं, बेहतर अस्पताल/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (2.35) और पेयजल (2.52) पर भी औसत से कम रेटिंग मिली। बेहतर अस्पताल/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सातवां और पेयजल को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ।

किसी एक बिंदु पर भी सरकार अव्वल नहीं

यह गंभीर चिंता का विषय है कि मतदाताओं की 31 सूचीबद्ध प्राथमिकताओं में से किसी एक पर भी सरकार का प्रदर्शन औसत या इससे अधिक नहीं रहा।

सरकार का सबसे खराब प्रदर्शन

मतदाताओं के मूल्यांकन के हिसाब से सार्वजनिक भूमि, झीलों इत्यादि का अतिक्रमण, आतंकवाद, नौकरी के लिए प्रशिक्षण, शक्तिशाली सेना / रक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन, उपभोक्ताओं के लिए कम खाद्य मूल्य और खनन/उत्खनन मुद्दों पर सरकार का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा।

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दो वर्षों की रेटिंग का तुलनात्मक अध्ययन

अखिल भारतीय मध्यावधि सर्वेक्षण 2017 और अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2018 के तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि मतदाताओं की शीर्ष दो प्राथमिकताएं (रोजगार के बेहतर अवसर और बेहतर अस्पताल / प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) शीर्ष पर ही बनी हुई हैं।

और खराब हुआ सरकार का प्रदर्शन

मतदाताओं की शीर्ष प्राथमिकता के रूप में रोजगार के बेहतर अवसर की महत्ता 2017 में 30% के मुकाबले 2018 में 47% हो गयी। इस प्रकार इसमें 56.67% की वृद्धि हुई है। इतने ही समय में, इस मुद्दे पर सरकार का प्रदर्शन 3.17 (5 के पैमाने पर) से घटकर 2.15 रह गया है।

मतदाताओं की शीर्ष दूसरी प्राथमिकता के रूप में बेहतर अस्पताल/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की महत्ता 2017 में 25% के मुकाबले 2018 में 35% हो गयी। इस प्रकार इसमें 40% की वृद्धि हुई है। इतने ही समय में, इस मुद्दे पर सरकार का प्रदर्शन 3.36 (5 के पैमाने पर) से घटकर 2.35 रह गया है।

पेयजल में भी स्थिति खराब हुई

मतदाताओं की प्राथमिकता के रूप में पेयजल की महत्ता 2017 में 12% के मुकाबले 2018 में 30% हो गयी। इस प्रकार इसमें 150% की वृद्धि हुई है। इतने ही समय में, इस मुद्दे पर सरकार का प्रदर्शन 2.79 (5 के पैमाने पर) से घटकर 2.52 रह गया है।

सड़क भी नहीं दे पाई सरकार

मतदाताओं की प्राथमिकता के रूप में बेहतर सड़क की महत्ता 2017 में 14% के मुकाबले 2018 में 28% हो गयी। इस प्रकार इसमें 100% की वृद्धि हुई है। इतने ही समय में, इस मुद्दे पर सरकार का प्रदर्शन 3.1 (5 के पैमाने पर) से घटकर 2.41 रह गया है।

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सर्वेक्षण किये गए 32 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 में मतदाताओं ने उनकी शीर्ष 3 प्राथमिकताओं पर सरकार के प्रदर्शन को राज्य स्तर पर औसत से कम रेटिंग दी है। दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव एवं पुड्डुचेरी इससे अलग हैं।

सात राज्यों में सर्वोच्च प्राथमिकता रोजगार

सशक्त कार्य समूह (Empowered Action Group) वाले सभी 8 राज्य, जो कि सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक पिछड़े माने जाते हैं, में से 7 राज्यों (बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) में मतदाताओं की सर्वोच्च प्राथमिकता रोज़गार के बेहतर अवसर है।

तीन राज्यों एवं केंद्र- शासित प्रदेशों जैसे ओडिशा, कर्नाटक एवं दमन और दीव में मतदाताओं की शीर्ष प्राथमिकता पेयजल है।

मुख्यमंत्री को देखकर करते हैं वोट

अखिल भारतीय सर्वे 2018 के अनुसार, 75.11% मतदाताओं के लिए मुख्यमंत्री प्रत्याशी सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है जिसके हिसाब से मतदाता किसी चुनाव में किसी प्रत्याशी के लिए वोट करते हैं, इसके बाद प्रत्याशी की पार्टी (71.32%) और स्वयं प्रत्याशी (68.03%) आते हैं।

नकद धन शराब और उपहार वोट के लिए महत्वपूर्ण

हमारे लोकतंत्र की विडम्बना है कि 41.34% मतदाताओं के लिए नकद धन, शराब और उपहार इत्यादि का वितरण किसी चुनाव में किसी विशेष प्रत्याशी को वोट करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

आपराधिक छवि को प्रत्याशी को अनजाने में या जानबूझकर वोट करते हैं

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों को वोट करने के सम्बन्ध में अधिकतम मतदाताओं (36.67%) को यह लगता है कि लोग ऐसे प्रत्याशियों को इसलिए वोट करते हैं क्योंकि उन्हें उन प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी नहीं होती है। 35.89% मतदाता आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी को भी वोट देने की इच्छा रखते हैं यदि प्रत्याशी ने पूर्व में अच्छा काम किया हो।

यद्यपि 97.86% मतदाताओं को लगता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों को संसद या विधानसभाओं में नहीं होना चाहिए, सिर्फ 35.20% मतदाताओं को पता था कि वह प्रत्याशी के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी पा सकते हैं।

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एडीआर का किसी भी देश में सबसे बड़ा सर्वे

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने किसी भी देश में अभी तक का संभवतः सबसे बड़ा मतदाता सर्वेक्षण कराया। यह सर्वेक्षण, लोकसभा 2019 के आम चुनावों से पहले, अक्टूबर 2018 और दिसंबर 2018 के बीच किया गया। इस सर्वेक्षण में 534 लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया, जिसमें विभिन्न जनसांख्यिकी के 2,73,479 मतदाताओं ने भाग लिया। इस सर्वेक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य, निम्न का पहचान करना थे : (i) शासन के विशिष्ट मुद्दों पर मतदाताओं की प्राथमिकताएं, (ii) उन मुद्दों पर सरकार के प्रदर्शन की मतदाताओं द्वारा रेटिंग, और (iii) मतदान के व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक।

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