महिला उम्मीदवार के उतरते ही दिलचस्प हो जाता है अमेठी का चुनाव

Update:2019-04-12 13:48 IST

असगर नकी

अमेठी: अमेठी के इतिहास का यह पहला मौका नहीं है जब देश की निगाह यहां के चुनाव पर है। यहां जब-जब महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी हैं तब अमेठी के मुकाबले पर देश की निगाह रही। अब कांग्रेस अध्यक्ष एवं अमेठी सांसद राहुल गांधी के मुकाबले पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं और इस बार टक्कर कांटे की है। इसे वक्त रहते भांप कर राहुल गांधी ने अमेठी के साथ- साथ केरल के वायनाड से भी पर्चा भर दिया।

अमेठी के इतिहास में 1984 के चुनाव में पहली बार यहां से पहली बार गांधी परिवार के नुमाइंदे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उनकी भाभी मेनका गांधी (छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी) थीं। दरअसल, अमेठी में संजय गांधी का काफी दबदबा था। बगैर किसी पद पर रहते हुए संजय गांधी ने इलाके में कई काम किए थे। नतीजतन 1980 के चुनाव में वह अमेठी से सांसद चुने गए थे। इसी साल एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद १९८१ के उपचुनाव में राजीव गांधी पहली बार सांसद चुने गए। जब 1984 का चुनाव आया तो संजय की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक बैठीं। उनको सहानुभूति वोटों का भरोसा था। इस चुनाव से पहले इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी थी और उनकी जगह राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन चुके थे। यहां की जनता ने राजीव गांधी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखने के लिए 3 लाख 65 हजार 41 वोट दे डाले। मेनका गांधी अपनी जमानत तक नहीं बचा सकीं। उन्हें मात्र 50 हजार 163 वोट ही मिले थे। इस बात से खफा मेनका फिर तब से अमेठी नहीं आईं।

ठीक डेढ़ दशक बाद 1999 का चुनाव भी राजनैतिक दृष्टिकोण से काफी अहम हो गया था। राजीव गांधी की हत्या के बाद पहली बार उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति में इंट्री की और अमेठी से चुनावी मैदान में आ गईं। उनके सामने भाजपा के टिकट पर संजय सिंह थे। संजय सिंह अमेठी रियासत का अहम चेहरा थे और रामनगर स्थित भूपति भवन के नाम से मशहूर उनकी हवेली से कभी अमेठी में कांग्रेस की रणनीति तैयार होती थी। 1998 से संजय सिंह कांग्रेस के खिलाफ बगावत पर उतरे हुए थे। 1998 के चुनाव में उन्होंने राजीव गांधी के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा को 23 हजार 290 वोट से शिकस्त दे दी थी और 1999 में वह सोनिया गांधी के सामने थे। सोनिया को लगा कि जीत आसान नहीं है सो उन्होंने कर्नाटक के बेल्लारी से भी पर्चा भर दिया था। सोनिया दोनों स्थानों से जीत दर्ज कराने में कामयाब रहीं। उन्होंने 3 लाख वोटों से संजय सिंह को हराया।

तीसरा मौका 2014 का है जब अमेठी से दो बार बड़ी जीत दर्ज कराने के बाद तीसरी जीत हासिल करने के लिए राहुल गांधी को चुनाव के दिन बूथ-बूथ जाना पड़ा था। इसके पहले ऐसी नौबत कभी नहीं आई थी। 2014 में मोदी की सुनामी पूरे देश में थी। भाजपा से स्मृति ईरानी यहां चुनाव मैदान में थीं। एक महीने से कम समय में मोदी लहर के कारण 2009 का चुनाव 3 लाख 70 हजार 198 से जीतने वाले राहुल गांधी 2014 में काफी पापड़ बेलने के बाद बमुश्किल 1 लाख 7 हजार 903 वोट से ही जीत सके। चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी ने उस गलती को नहीं दोहराया जो मेनका ने की थी। मोदी सरकार में उन्हें मंत्रालय मिला और वह अमेठी आती रहीं। जब भी आईं तो अमेठी में कुछ काम जरूर करवाया। नतीजा यह कि २०१९ के चुनाव में राहुल ने बड़े खतरे को भांप कर केरल के वायनाड से भी पर्चा भर दिया। इस तरह स्मृति ईरानी के फिर से अमेठी के चुनावी समर में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

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