असगर नकी
सुल्तानपुर: लोकसभा चुनाव के इतिहास में इस जिले में अभी तक किसी महिला प्रत्याशी को विजय नहीं मिल सकी है। ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार एवं केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के सामने इस मिथक को तोडऩा मुश्किल नहीं लेकिन आसान भी नहीं है। इस चुनाव में यहां के राजनीतिक समीकरण में मुकाबला त्रिकोणीय है, कांग्रेस और गठबंधन उम्मीदवार मेनका को सीधी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि हर बार के चुनाव में यहां प्रत्याशियों की हार-जीत का गुणा-गणित ब्राह्मïण, दलित और मुस्लिम मतदाताओं ने तय किया है। इस बार ब्राह्मïण और दलित मतदाता बड़ी संख्या में बीजेपी के पाले में जाता दिख रहा है जबकि मुस्लिम वोटर कांग्रेस और गठबंधन में बंटा हुआ है।
गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर जिले में पांच विधानसभा सीटें - इसौली, सुल्तानपुर, सदर, कादीपुर (सुरक्षित) और लम्भुआ - आती हैं। मौजूदा समय में इसौली को छोड़ चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। इसौली सपा के कब्जे में है लेकिन यहां के विधायक अबरार अहमद पार्टी के निर्णय से नाराज होकर गठबंधन प्रत्याशी का खुला विरोध कर रहे हैं। वहीं बसपा से निष्कासित पूर्व मंत्री विनोद सिंह और सपा से निष्कासित जिला पंचायत अध्यक्ष के पति शिवकुमार सिंह ने मेनका गांधी को समर्थन देकर गठबंधन की नींद उड़ा रखी है। बसपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व प्रमुख राजमणि वर्मा ने कांग्रेस ज्वाइन कर पार्टी की मुश्किल बढ़ा दी है। २०११ की जनगणना के मुताबिक सुल्तानपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या 23,52,034 है। इसमें 93.75 फीसदी ग्रामीण और 6.25 फीसदी शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 21.29 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी .02 फीसदी है। मुस्लिम, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं के अलावा ओबीसी की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाती रही है। यह जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है।
यह भी पढ़ें : मनोहर सरकार ने हरियाणा को गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार से मुक्ति दी: अमित शाह
सुल्तानपुर लोकसभा सीट की खासियत है कि बीजेपी के विश्वनाथ शास्त्री को छोड़ कर कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस सीट पर दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहा हो। यही वजह रही कि इस सीट पर किसी एक नेता का कभी दबदबा नहीं रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस यहां आठ बार जीती लेकिन हर बार चेहरे अलग रहे। यहां बसपा दो बार जीती और दोनों बार विजेता अलग-अलग रहे।
२०१४ का चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार वरुण गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 1 लाख 78 हजार 902 वोटों से मात दी थी। वरुण को 4,10,348 वोट, बसपा के पवन पांडेय को 2,31,446, सपा के शकील अहमद को 2,28,144 तथा कांग्रेस की अमिता सिंह को 41,983 वोट मिले थे।
हाल-ए-सांसद
वरुण गांधी पांच साल चले सदन के 321 दिन में 239 दिन उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने 416 सवाल उठाए और 16 बहसों में हिस्सा लिया। वरुण गांधी नौ बार निजी विधेयक लेकर आए। उन्होंने पांच साल में सांसद निधि में मिले 25 करोड़ में से 21.36 करोड़ रुपए विकास कार्यों पर खर्च किए।
सुल्तानपुर और अमेठी संसदीय क्षेत्र (1957 तक मुसाफिरखाना संसदीय क्षेत्र) का सफर
1952 -काजिम अली (कांग्रेस)
1957-गोविंद मालवीय (कांग्रेस)
1960 उपचुनाव-बाबू गनपत सहाय (निर्दलीय)
1962-कुंवर कृष्ण वर्मा (कांग्रेस)
1967-बाबू गनपत सहाय (कांग्रेस)
1969 उपचुनाव श्रीपति मिश्र (भारतीय क्रांति दल)
1970 उपचुनाव व १९७१ - केदार नाथ सिंह (कांग्रेस)
1977-जुल्फिकार उल्ला (जनतापार्टी)
1980-गिरिराज सिंह (कांग्रेस)
1984-राजकरन सिंह (कांग्रेस)
1989-राम सिंह (जनता दल)
1991-विश्वनाथदास शास्त्री (भाजपा)
1996 व १९९८ -डी बी राय (भाजपा)
1999-जय भद्र सिंह (बसपा)
2004-मो. ताहिर खान (बसपा)
2009-डा. संजय सिंह (कांग्रेस)
2014-फिरोज वरुण गांधी (भाजपा)