यूपी के मेयर: आदत आरोपों की, कारोबार सपने बेचने का 

Update: 2017-10-13 12:23 GMT

महानगरों की दशा बहुत खराब है। अब उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। नए नगर प्रमुखों के चुने जाने का समय आ गया है। ऐसे में ‘न्यूज़ट्रैक’ के संवाददाताओं ने जब इन नगर प्रमुखों से बात की तो अधिकाँश ने तो अपने निगम में पिछडऩे का कारण पूर्ववर्ती प्रदेश सरकार के माथे मढ़ दिया। गोरखपुर में सफाई पर 40 करोड़ से अधिक खर्च के बाद भी जगह-जगह कूड़े का ढेर नजर आता है। सीएम सिटी में सीवर लाइन है ही नहीं। इंसेफेलाइटिस के कहर के बाद भी सुअर बाड़े शहर से बाहर नहीं किये जा सके।

नगर निगम में पॉलीथिन फ्री जोन की कवायद सिर्फ पोस्टरों तक सिमटी हुई है। विकास के जो काम शुरू हुए वह अधूरे हैं। जो पूरे हुए उसकी गुणवत्ता का हाल शहर देख रहा है। हिंसक सांड़ों ने पांच साल में 11 शहरियों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन नगर निगम पशुबाड़े के लिए जमीन नहीं तलाश सका। पहली बैठक में तय हुए कार्य भी पांच साल के कार्यकाल के बाद शुरू नहीं हो सके। मेरठ का नजारा भी इससे अलग नहीं दिखता। नगर निगम क्षेत्र के नाले नालियां करोड़ों खर्च होने के बाद भी ज्यादातर सड़ रहे हैं।

सड़कें और गलियां टूटी हैं जो बनी वो भी समय से पहले ही टूट गई। पानी आपूर्ति में सुधार के जो दावे किये गये थे, बेइंतहा पैसा खर्च होने के बाद भी वह पूरा नही हो सके। अनियोजित विकास की शिकायत सुनने के लिए महापौर नियमित रुप से नगर निगम में बैठते नही। मुरादाबाद को स्मार्टसिटी बनाने का सपना देख रहे वहां के नगर प्रमुख विनोद अग्रवाल अपने कार्यो से काफी संतुष्ट दिखे।

आगरा के मेयर हैं इन्द्रजीत आर्य। पांच साल पहले वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए। लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान पार्टी से ऐसी अनबन हुई कि समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो गए। फिर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। विधानसभा चुनाव 2017 से पूर्व पुन: भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। मेयर के चुनाव के दौरान उन्होंने जनता से अनेक लुभावने वादे किए थे। प्रस्तुत हैं ‘न्यूज़ट्रैक’ के सवाल और इन नगर प्रमुखों के जवाब -

गोरखपुर: मुख्यमंत्री के शहर की मेयर को पूर्व मुख्यमंत्री के अफसरों से शिकायत

= पांच साल के दौरान गोरखपुर नगर निगम में हुए विकास कार्यों से जनता कितनी संतुष्ट है।

-विकास कार्य से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है। नगर निगम में विकास कार्य तो सतत प्रक्रिया है। इतना जरूर है, उपलब्ध संसाधनों में जिनता कार्य संभव था कराया गया। पांच वर्षों में 200 से अधिक ट्यूबवेल लगे। शुद्ध पानी हजारों घरों में पहुंचा। कटोरेनुमा शहर के चलते जलभराव शहर की बड़ी समस्या है। इसके लिए बड़े-बड़े नालों का निर्माण कराया गया। सिवेज सिस्टम के लिए जलनिगम को डीपीआर तैयार करने के लिए 20 लाख रुपये दिये गए।

अब केन्द्र से इसके लिए रुपए जारी होने वाले हैं। राप्ती नदी पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण शुरू हुआ। रामगढ़ झील के किनारे पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए नया सवेरा योजना के तहत व्यू प्वाइंट विकसित कराया। शहर के पार्कों का सुंदरीकरण हुआ। 24 चौराहों का चैड़ीकरण और सुंदरीकरण हुआ। डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन शुरू हुआ। पॉलीथिन मुक्त महानगर के लिए शहर में जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया।

= नगर निगम बोर्ड की पहली बैठक में नये सदन के निर्माण का निर्णय हुआ। इसकी एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी। विद्युत शवदाह गृह करोड़ों खर्च के बाद अधूरा है। पॉलीथिन फ्री जोन सिर्फ पोस्टरों पर दिखता है। जो भी निर्माण कार्य हुए उसकी गुणवत्ता आप देख रहीं हैं और शहर भी।

- पांच साल पहले नगर निगम बोर्ड का गठन हुआ तो केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। वर्ष 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी। योजनाएं केन्द्र से चलीं लेकिन प्रदेश की सपा सरकार ने नगर निगम के लिए फंड ही जारी नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को गोरखपुर से ना जाने क्या खुन्नस थी कि वह गोरखपुर में विकास कार्य को देखना ही नहीं चाहते थे।

निगम में अधिकारियों, कर्मचारियों से लेकर संसाधनों की भारी कमी है। सैकड़ों पत्रों के बाद भी गोरखपुर नगर निगम के विकास की अनदेखी की गई। नये सदन के लिए मानचित्र स्वीकृत कराया। निर्माण कार्य की गति तेज हो इसके लिए पार्षदों की कमेटी बनी। लेकिन अधिकारियों ने सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव के इशारे पर शहर के विकास को बाधित किया।

= सपा सरकार की अनदेखी को लेकर आपने कोई धरना-प्रदर्शन किया!

-कोई भी एक मामला नहीं है जिसके विषय में सरकार को पत्र नहीं लिखा हो। निगम के अधिकारियों को निर्देशित नहीं किया हो। देखिये, जब तक निकायों में 74वां संशोधन लागू नहीं होगा, मेयर को कोई अधिकार नहीं मिलेगा। 10 लाख से उपर की फाइलों की स्वीकृति मेयर कर सकता है। तमाम फाइलें धूल फांक रही हैं। विकास कार्यों के अनदेखी के लिए हम सिर्फ पत्र ही तो लिख सकते हैं।

= पार्षदों का आरोप है कि आप नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी की बैठकों से भागती रहीं। पांच साल में कोरम के मुकाबले आधी बैठक भी नहीं हुई।

-यह सच है कि नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी की बैठकें कम हुई हैं। मेयर बैठकों को लेकर नगर आयुक्त का पत्र लिख सकते हैं। बैठक तो अधिकारियों को ही कराना है। अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए अधिकारी नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी की बैठकें ही नहीं होने देते थे।

-पूर्णिमा श्रीवास्तव

 

मेरठ: कौन कहता है शहर का विकास नहीं हुआ: हरिकांत अहलूवालिया

 

= अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं?

- एक नहीं कई उपलब्धियां हैं। सबसे बड़ी तो यही है कि 56 साल से शहर के लिए नासूर बने कमेले का ध्वस्तीकरण हुआ। इसके अलावा निगम बोर्ड ने पांच साल के कार्यकाल में करीब तीन सौ करोड़ के रिकार्ड विकास कार्य कराये। शहर के लोगों के लिए महत्वपूर्ण गंगाजल योजना भी पूर्ण होने वाली है। शहर की सडक़ों पर एलईडी स्ट्रीट लाइटों का लगना शुरू हो चुका है।

महानगर में जहां सडक़ों पर बस के इंतजार में खड़े होने अथवा बैठने का स्थान नहीं था। अब बीओटी से 29 स्थानों पर बस स्टॉप बनवाये गये। उधर महानगर के छह मुख्य मार्गों की लाइट, सुंदर डिवाइडर की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंपी। जिन मार्गों पर दिन छिपते ही अंधेरा रहता था, अब वहां जगमग है। सूरजकुंड पार्क का सौन्दर्यकरण किया गया। ओडियन समेत अधिकांश नालों की तली झाड़ सफाई कराई गई।

= वह कौन सा कार्य था जिसे कराना चाहते थे लेकिन हो नहीं सका। इसके पीछे क्या वजह रही?

-शहर का नाम स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल कराने के लिए य़ुद्ध स्तर पर प्रयास किये गये। लेकिन पूर्ववर्ती सपा सरकार ने मेरठ को षडयंत्र के तहत स्मार्ट शहरों की सूची से बाहर किया था। लेकिन हमारे संघर्ष से मेरठ शहर स्मार्ट सिटी में शामिल जरूर होगा।

= नगर निगम में रोज कितना कूड़ा निकलता है। कूड़ा निस्तारण की क्या व्यवस्था है।

-नगर निगम में रोजाना 900 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। कूड़ा उठाने के संसाधन 420 मीट्रिक टन हैं। कुल संग्रहण केन्द्र 44 है। कूड़े की गाड़ी छोटी-बड़ी 78 हैं। 10 जेसीबी, 6 पोर्कलेन मशीन, 12 छोटी पोर्कलेन, 2 फासी मशीन है। किला रोड पर गांवड़ी गांव में नगर निगम के कूड़े का डपिंग स्थल है।

यहां कूड़ा निस्तारण प्लांट स्थापित करने का प्रयास जारी हैं। इसके लिए सोलार महाराष्ट्र की एजेंसी से अनुबंध किया गया है। जेएनएनयूआरएम योजना के अन्तर्गत मेरठ में भोला झाल पर 343 करोड़ की लागत से गंगा जल प्रोजेक्ट पर काम हुआ। भोले की झाल से गंगा जल शहर मेन लाकर 10 एमएलडी पानी की सप्लाई शुरू की गई।

= नगर में बिजली, पानी और सफाई पर क्या विशेष काम हुआ है?

नगर में बिजली और पानी को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं है। जहां तक सफाई पर काम की बात है तो कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था के साथ ही घर-घर से कूड़ा उठाने के लिए भी काम शुरू हो गया है। इसके लिए कुछ कंपनियों से बात अंतिम चरण में है।

= स्वच्छता को लेकर आपने क्या अतिरिक्त प्रयास किए हैं।

-महानगर की आबादी करीब 20 लाख है। किंतु कूड़ा उठाने के लिए महज दो डपिंग ग्राउंड हैं। एक मेवला फाटक के पास तो दूसरा किला रोड पर गांवड़ी गांव में है। सफाई के लिए करीब 500 हजार सफाई कर्मचारियों की आवश्यकता है। लेकिन नगर निगम के पास 3342 सफाई कर्मचारी हैं।

शहर स्वच्छ रहे इसके लिए हमने संविदा पर सफाई कर्मचारी रख सफाई कर्मचारियों की कमी को पूरा करने का प्रयास किया है। स्वच्छता कार्यक्रम बिना जनता के सहयोग के सफल नहीं हो सकता है। साथ ही दूसरी निजी संस्थाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं।

-सुशील कुमार

 

झांसी: श्मशान घाटों का सौन्दर्यीकरण, गुलाम गौस खां पार्क का मलाल: किरन

= अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में आप सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानतीं हैं?

-मेयर बनने से पहले मेरे पति राजू बुकसेलर ने खुले में शव का अन्तिम संस्कार होते देखा था। तब से उनके मन में यह विचार आया था कि यदि कभी मौका मिला तो श्मशान घाट पर काम जरुर किया जाएगा। सौभाग्य से हमें यह मौका मिल भी गया। और इसके बाद हमने सर्वप्रथम प्रेमनगर थाना क्षेत्र के पुलिया नम्बर 9 के श्मशान घाट का सौन्दर्यीकरण का कार्य शुरु कराया। तब से लेकर आज तक पूरे पांच वर्ष में करीब डेढ़ दर्जन श्मशान घाटों का सौंदर्यीकरण हो चुका है।

= ऐसा कोई कार्य जो आप अपने कार्यकाल में पूर्ण नहीं करा सकीं?

-हमने नगर में खूब विकास कराया लेकिन गुलाम गौस खां पार्क का विकास तत्कालीन सपा सरकार के कुछ कद्दावर लोगों द्वारा पार्क की जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जे के चलते नहीं हो सका। यह मामला कोर्ट तक भी कब्जाधारी ले गए। और वहां उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ा, लेकिन उसका विकास न हो पाना हमारे मन को आज भी कचोटता है।

= यदि एक बार फिर पार्टी आप पर दांव लगाती है, तो आपके ड्रीम प्रोजेक्ट में क्या शामिल है?

-स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर को गंदगी मुक्त करना, खुले में लोगों को शौच से मुक्ति दिलाना, विकास की योजनाओं से लोगों को रोजगार उन्मुख बनाना मेरे ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है।

= आपके शासनकाल की विशेष उपलब्धियां क्या हैं?

-स्वच्छता को लेकर 4 जून 2017 को शहरीय विकास मंत्री ने प्रदेश में द्वितीय स्थान प्राप्त करने पर सम्मानित किया। महानगर को स्मार्ट सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ और शहर को प्रदेश में पांचवा स्थान प्राप्त हुआ।

-महेश पटेरिया

मुरादाबाद: स्मार्टसिटी का सपना: विनोद अग्रवाल

= अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं।

-2012 में कार्यकाल इस सह संगत शुरू हुआ जिसमें स्वर्गीय बीना अग्रवाल जी 2012 में नगर निगम के महापौर के पद पर आसीन हुईं और उन्होंने अपने कार्यकाल में सबसे पहला जो उनका उद्देश्य था की समस्त महानगर को स्वछ पेयजल उपलब्ध कराये उसके लिए उन्होंने लगभग 31 हजार मीटर पाइप लाइन जगह-जगह बिछवाई और उस पाइप लाइन को चालू करने के लिए 60 नलकूप लगवाए और पांच ओबर हेड टैंक जल निगम के माध्यम से बनवाकर जनता को समर्पित किये मैं यह कह सकता हूं की महानगर में किसी प्रकार से पेयजल की दिक्कत नहीं हुई। यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।

= नगर निगम में रोज कितना कूड़ा निकालता है। कूड़ा निस्तारण की क्या व्यवस्था है।

-महानगर में तीन सो टन कूड़ा प्रतिदिन निकलता है वो तीन सो टन कूड़ा उठवाकार टचिंग में डलवा रहे थे और कूड़े के निस्तारण के लिए सॉलिड मैनेजमेंट द्वारा ए-टू-जेड कम्पनी द्वारा निस्तारित का कार्य तेजी से हो रहा था। लेकिन दुर्भाग्यवश सत्ता परिवर्तन हुआ और किन्हीं कारणों से ए-टू-जेड कम्पनी कार्य करने से रोक दिया गया और वो काम छोड़ के चले गए।

तब से यह कार्य रुका हुआ था अब हमने हरी-भरी कम्पनी द्वारा यह काम दोबारा शुरू किया है और डोर-टू-डोर 15 वार्डों में कूड़ा उठाने का कार्य चल रहा है और शहर में भी इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत चल रही है अगले माह से प्लांट का कार्य शुरू हो जायगा।

= ऐसा कौन सा काम है जिसे वह अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मान रहे हैं।

-स्मार्ट सिटी मुरादाबाद बने और रिंग रोड बने जो मेरा 2012 से ड्रीम प्रोजक्ट है और मुरादाबाद के चारों तरफ रिंग रोड बनेगी इसके लिए मैं दृढ़ सकल्पित हूं।

-सागर रस्तोगी

आगरा: भाजपा छोड़ना भूल थी: इन्द्रजीत आर्य

= आपने जनता से जो वादा किया था कि आगरा को पानी की समस्या से निजात दिलाएंगे। कितने सफल हुए हैं?

-यमुना पार में पानी बिकता था, प्रति बाल्टी और मटके के हिसाब से। हमने 16 नलकूप लगवाए और स्थिति नियंत्रण में है। लोगों को पानी मिलने लगा है। इसमें अभी और सुधार की आवश्यकता है। आखिरी घर तक पानी की आपूर्ति पहुंचे, यह प्रयास है। पूर्ण विश्वास है कि बहुत जल्द गंगाजल आ जाएगा। सफलता मिलने जा रही है।

= गंगाजल लाने की बात उठाई थी, लेकिन कोई प्रगति दिखाई नहीं दे रही है।

-गंगाजल आ जाना चाहिए था, लेकिन सरकार का ढुलमुल रवैया रहा। मैं सत्तारूढ़ पार्टी में इस स्वार्थ से गया था कि शहर के लिए कुछ करूंगा।

= एमजी रोड, माल रोड, यमुना किनारे पर सफाई है, लेकिन जहां आबादी है, वहां सफाई नहीं दिखती है, इसका कारण क्या है?

-सबसे बड़ा कारण यह है कि शहर की जनता में सिविक सेंस नहीं है। बड़े-बड़े प्रोफेसर, डॉक्टर व पढ़े-लिखे लोग गंदगी फैला रहे हैं। हम स्वयं गंदगी फैलाते हैं। मैं कई देशों में गया हूं, लेकिन मैंने सिगरेट की राख तक सडक़ पर डालते नहीं देखा है। जब तक लाखों छात्र-छात्राएं खड़े नहीं होंगे, तब तक जनता में जागरुकता नहीं आएगी। जनता में जागरुकता आ गई, तो सफाई हो जाएगी।

= आप ने बीच में भाजपा छोड़ दी थी, दोबारा क्यों आए?

-भाजपा मेरी जननी है। मैंने संघ से प्रेरणा और ज्ञान लेकर सामाजिक काम शुरू किया है। बाल्यकाल से संघ का कार्यकर्ता हूं। अच्छे कार्य किए होंगे, तभी मुझे मेयर बनाया है। धर्म जागरण विभाग और सेवा भारती के माध्यम से काम करके युवाओं को शाखा से जोड़ा। व्यक्ति निर्माण का अद्वितीय कार्य संघ करता है, उसमें मैंने सहयोग किया है। मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता हूं। पार्टी छोड़ना मेरी भूल थी, मैं भूल स्वीकार करता हूं।

-मानवेंद्र मल्होत्रा

कानपुर: कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनकर गुजार दिए पांच साल

प्रदेश के सबसे बड़े ओद्यौगिक नगर की हालत अद्भुत है। कानपुर नगर के महापौर जगतवीर सिंह द्रोण अपने रिजर्व नेचर की वजह से इन पांच साल में कभी भी जनता के बीच नहीं रहे है। शहर में नगर निगम के 110 वार्ड हैं यह वार्ड अपने आप में 6 विधानसभाओं और डेढ़ लोक सभा क्षेत्र को कवर्ड किए है। महापौर ने कभी भी अपनी तरफ से किसी नई योजनाओं के लिए कदम नहीं बढ़ाये। वह खुद शहर की बिजली, पानी, सडक़ की व्यवस्थाओं की लिए अधिकारियों पर ही निर्भर रहे हैं।

शहर के महापौर जगतवीर सिंह द्रोण बीजेपी के टिकट से जीत कर मेयर बने थे। जब वह मेयर बने, उस वक्त प्रदेश में सपा की सरकार थी। लेकिन उन्होंने अपने पांच साल के कार्याकाल में सिर्फ सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि की भूमिका ही निभाते रहे। आगे बढ़ कर उन्होंने किसी भी काम का संकल्प नहीं लिया। शहर के 110 वार्डों के पार्षदों की समस्या हो या फिर वार्डों से जुड़े कामकाज या उनके विकास की बातें हो उन्होंने उदासीन रवैया ही अपनाए रखा।

आपको बता दें कि क्षेत्रफल की दृष्टि से कानपुर शहर बहुत बड़ा है, जिसकी आबादी भी अधिक है इन हालातों में शहर की सबसे बड़ी समस्या सडक़, पानी और बिजली है। लेकिन मेयर का कभी भी इन मुद्दों पर खुल कर नहीं बोले, नगर निगम के सदन पर कई बार पार्षदों ने जमकर हंगामा भी किया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिला। सबसे खास बात यह है कि इनका सीयूजी फोन तो कभी रिसीव होता ही नहीं है।

कार्यालय पर जाकर मिलना चाहे तो उसके लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ेगा। आगामी निकाय चुनाव पर उन पर यह भी आरोप लगे है कि प्रदेश सरकार के दबाव में टिकटों पर आरक्षण किया जा रहा है द्य इस बात को लेकर तीन दर्जन से अधिक पार्षदों में उनके खिलाफ आक्रोश व्याप्त है।

-सुमित शर्मा

 

सहारनपुर: मेयर के इंतजार में पथरा गईं आंखें

सहारनपुर शहर को नगर निगम का दर्जा मिले एक अरसा गुजर गया है, लेकिन आज तक सहारनपुरवासियों को न तो मेयर मिल सका और न ही शहर का वह विकास हो सका है, जो नगर निगम बनने के बाद होता है। हालात जस के तस बने हुए हैं। मलिन बस्ती और छोटे मोहल्लों की बात न करें तो शहर की पाश कालोनियों में भी कोई विकास नहीं हो सका है। हर साल सरकार की ओर से करोड़ों रुपये का बजट नगर निगम को प्रदान किया जाता है, यह पैसा विकास कार्य में तो लगाया जाता हैं, लेकिन योजनाबद्ध तरीके से नहीं।

प्रदेश में जिस वक्त बसपा की सरकार बनी थी, उस समय बसपा सरकार ने सहारनपुर जनपद को कई उपहार प्रदान किए थे। पहला उपहार था यहां पर स्पोट्र्स कालेज का निर्माण, दूसरा सहारनपुर में मेडिकल कालेज की स्थापना और तीसरा सहारनपुर शहर को नगर निगम का दर्जा देना। बसपा सरकार ने अपने कार्यकाल में स्पोट्र्स कालेज और मेडिकल कालेज का निर्माण तो करा दिया था, लेकिन नगर पालिका सहारनपुर को नगर निगम का दर्जा दिए जाने के बावजूद नगर निगम के चुनाव नहीं कराए जा सके थे।

कारण नगर निगम की सीमा का विस्तार और आप पास के गांवों को नगर निगम में शामिल करना। बसपा सरकार के अंतिम समय में नगर निगम की सीमा का विस्तार करने के लिए सीमा विस्तार का कार्य प्रारंभ कर दिया गया था। लेकिन इससे पहले बसपा सरकार के कार्यकाल में नगर निगम का चुनाव कराया जाता। बसपा सरकार सत्ता से बाहर हो गई।

सहारनपुर नगर निगम का गठन हुए करीब आठ साल का समय बीत चुका है। इस दौरान पिछले पांच साल तक प्रदेश में सपा की सरकार रही। सपा की सरकार में नगर निकायों के चुनाव संपन्न हुए। सहारनपुर के नगर निगम को छोडक़र शेष सभी निकायों के चुनाव कराये गए, लेकिन सपा सरकार सहारनपुर नगर निगम के चुनाव कराने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। इसका कारण था कि सहारनपुर की विधानसभा सीटों पर बसपा के विधायक और शहर सीट पर भाजपा के विधायक का होना।

सपा ने नगर निगम का चुनाव इसलिए नहीं कराया, क्योंकि उसे डर था कि यदि नगर निगम का चुनाव करा दिया गया तो सहारनपुर में मेयर भी भाजपा अथवा बसपा का बन जाएगा। राजनीतिक दलों और सत्ता की इस कशमकश में सहारनपुरवासी पिछले आठ साल से अपने मेयर का चुनाव करने को बेताब तो जरूर नजर आ रहे हैं। प्रदेश में सपा की सरकार और अब भाजपा की सरकार आने तक सहारनपुर नगर निगम में दो नगर आयुक्त रहे। सपा सरकार आने पर नीरज शुक्ला को यहां का नगर आयुक्त बनाया गया था। जिनके बाद अब भाजपा सरकार में गौरव वर्मा नगर आयुक्त हैं।

गौरव वर्मा को सहारनपुर का नगरायुक्त बने अभी मुश्किल से दो ही माह हुए है। लेकिन इससे पहले यहां नगरायुक्त रहे नीरज शुक्ला नगर के विकास के लिए कोई खास काम नहीं करा सके। उनके समय में सरकार की ओर से जो धनराशि आवंटित हुई, उसका योजनाबद्ध तरीके से प्रयोग नहीं हो सका। इस कारण आज भी सहारनपुर शहर नगर निगम होते हुए भी काफी पिछड़ा हुआ है।

इस बाबत नगरायुक्त गौरव वर्मा से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि सहारनपुर नगर निगम को लेकर सबसे बड़ा कार्य था सहारनपुर को स्मार्ट सिटी में शामिल कराना। इस बाबत पूर्व में नगरायुक्त रहे नीरज शुक्ला की ओर से अथक प्रयास किए गए, लेकिन इसके बावजूद यह शहर स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल नहीं हो सका। अभी भी इस योजना पर कार्य चल रहा है।

गौरव वर्मा ने बताया कि उन्हें सहारनपुर का नगर आयुक्त बने अभी दो माह का ही समय हुआ है, लेकिन उनका प्रयास यह है कि यह शहर स्वच्छ शहर बने और प्रदेश ही नहीं देश में इस शहर की मिसाल दी जाए। इसके लिए सहारनपुर शहर को स्वच्छ शहर बनाने की दिशा में योजना बनाकर कार्य किया जा रहा है।

गली मोहल्लों और कालोनियों में जहां कूड़ेदानों की संख्या बढ़ाई गई है, वहीं कचरा सडक़ों पर न फैले इस बाबत लोगों को जागरूक किया जा रहा है। बिजली के लिए शहर के हर गली मोहल्लों और कालोनियों में एलईडी स्ट्रीट लाइट लगाई जा रही है। निकाय चुनाव को लेकर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनका कहना था कि वह चाहते हैं कि सहारनपुर शहर दूसरे मेट्रो सिटी की तरह ही चमके।

-महेश कुमार शिवा

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