कविता: क्यों, आखिर क्यों? ... हो गई क्या हमसे

Update:2018-08-25 13:10 IST

कन्हैयालाल नन्दन

हो गई क्या हमसे

कोई भूल?

बहके-बहके लगने लगे फूल!

 

अपनी समझ में तो

कुछ नहीं किया,

अधरों पर उठ रही शिकायतें

सिया, फूँक-फूँक कदम रखे,

चले साथ-साथ,

मगरतन पर क्यों उग रहे बबूल?

 

नजऱों में पनप गई

शंका की बेल,

हाथों में थमी कोई अजनबी नकेल!

आस्था का अटल सेतुबंध

लडख़ड़ाता है हिलती है एक-एक चूल!

 

रफू गलतफहमियाँ

जीते हैं दिन!

रातों को चूभते हैं

यादों के पिन

पतझर में भोर हुई

शाम हुई पतझर में

कब होगी मधुऋतु

अनुकूल

तन पर...

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