कविता: कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा

Update: 2018-09-29 07:11 GMT

कैफ भोपाली

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा

मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

 

दिल-ए-नादाँ न धडक़ ऐ दिल-ए-नादाँ न धडक़

कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा

 

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल

तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा

 

दिल की किस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद

वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा

 

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो

आँधियो तुम ने दरख्तों को गिराया होगा

 

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे

चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा

 

‘कैफ’ परदेस में मत याद करो अपना मकाँ

अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा।

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