मैं कविता लिख लेता हूँ... सूखे हुए पत्तों में से

Update:2018-09-29 12:30 IST

सुखदेव

मैं कविता लिख लेता हूँ

सूखे हुए पत्तों में से

झांकती हरी लकीरों जैसी

पर जो एक सघन, सुवाहना

और हरा-भरा वृक्ष

इसमें नहीं दिखाई देता

उसका मैं क्या करूँ?

रिश्ता

मुहब्बत मोहपाश

दूरी भटकन

मैं जब भी तुझसे दूर होता हूँ

तो ये मुझे बहुत दुख देते हैं- मैंने कहा।

तू मुस्करा पड़ी

और मुझे गले से लगा कर कहा-

‘चांद बेशक कितना ही दूर हो

नदी की गोद में होता है।’

 

उस पल से मैं महसूस कर रहा हूँ

कि एक ठंडी निर्मल और शफ्फाफ नदी

मेरे अंतस में बह रही है

जिसमें हर रोज मैं

चांद बनकर चढ़ता हूँ।

याद

आज फिर

दिन भर तेरी याद

इस तरह मेरे साथ रही

जैसे काल कोठरी की

भूरी उदास खिडक़ी के पार

बसंत की सुनहरी धूप में

खिला हुआ गुलाब।

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