रोशनी अंधेरा ओढ़े खड़ी है।
उम्मीदे जमीन पर पड़ी है।।
कदम पीछे की ओर पड़ रहे हैं।
भयानक साए आगे बढ़ रहे हैं।।
काल के पंजों में परिंदा फंसा है।
उडऩे की आस पर पंख बंधे हैं।।
काल के हाथों ये दम तोड़ जाएगा।
मन से हारा हुआ जान कैसे बचाएगा।।
तन से हारा तो फिर भी उठ जाएगा।
मन से हारा खुद से ही मात खायेगा।।