लखनऊ: उत्तर रेलवे के कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मलिहाबाद से होकर कई ट्रेनें गुजरती हैं। इनमें दून एक्सप्रेस, लखनऊ मेल, एसी सुपरफास्ट, पद्मावत एक्सप्रेस, उपासना एक्सप्रेस, हरिहर एक्सप्रेस, कुंभ एक्सप्रेस, पंजाब मेल समेत दर्जनों ट्रेनें यहां से होकर गुजरती हैं।
अक्सर सुबह 9 बजे पहुंचने वाली दून एक्सप्रेस दो से ढाई घंटे लेट होकर करीब 11 से साढ़े 11 बजे तक चारबाग के प्लेटफार्म पर लगती है। इसके बाद आने वाली लखनऊ मेल जैसी ट्रेनें भी मलिहाबाद के आउटर पर खड़ी की जाती हैं। इसका कारण प्लेटफार्मों का जरूरत से ज्यादा व्यस्त होना है।
हालांकि इस रूट पर अक्सर मरम्मत का कार्य भी चलता रहता है जिसके चलते ट्रेनों को रोका जाता है। इसकी अप और डाउन लाइनों पर ट्रेनें काफी देर तक खड़ी रहती हैं। अगर प्लेटफार्म की संख्या बढ़ा दी जाए तो इस समस्या से निजात मिल सकती है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तो बदले मगर व्यवस्था नहीं
रेलवे कर्मचारी संगठन नरमू के महामंत्री अजय वर्मा ने बताया कि रेल हादसों के बाद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन जरूर बदले हैं, लेकिन रेलवे अधिकारी अपने ढर्रे पर ही चल रहे हैं। जब भी कोई रेल हादसा होता है तो छोटे कर्मचारी पर सबसे पहले कार्रवाई की जाती है।
रेल ड्राइवरों पर काम के बढ़ते दबाव को लेकर अधिकारी गंभीरता से विचार नहीं करते हैं। लंबी दूरी की ट्रेनों के ड्राइवरों को रेस्ट करने का टाइम तक नहीं दिया जाता है। केवल पुरानी पटरियों के मरम्मत के काम में थोड़ी तेजी आई है, बाकी सबकुछ अपने ढर्रे पर ही चल रहा है।
जल्द हालात बदलने की उम्मीद
उत्तर रेलवे के सीनियर डीसीएम शिवेंद्र शुक्ला ने बताया कि ट्रेनों के लेट होने के पीछे पटरियों पर बढ़ता दबाव ही प्रमुख कारण है। हम इन हालातों को बदलने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं। चारबाग स्टेशन की क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। यहां करीब 110 करोड़ के काम पेंडिंग हैं। इन्हें तेजी से पूरा किया जा रहा है।
रेलवे बोर्ड ने मानकनगर से चारबाग और चारबाग से दिलकुशा तक दो रेल लाइन बिछाने का काम कराने का निर्देश दिया है। इस पर काम शुरू हो गया है। चारबाग पर दो प्लेटफार्म भी बनने हैं। इसके लिए बजट आवंटन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जल्द ही इसका कार्य भी शुरू कर दिया जाएगा। इस काम के लिए 80 करोड़ रुपये की पहली किस्त भी आ चुकी है। अब इसके लिए टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। इसके अलावा हम सिग्नल प्रणाली की बेहतरी पर काम कर रहे हैं। रूट रिले इंटरलॉकिंग का कार्य भी कर रहे हैं।
जल्द ही हालात में तेजी से सुधार होगा। एक बार प्लेटफार्मों की संख्या बढ़ जाएगी तो काफी हद तक ट्रेनों की लेट लतीफी में सुधार हो जाएगा। इसके अलावा पटरियों के निरीक्षण का काम भी चल रहा है। जहां पर मरम्मत की आवश्यकता है, वहां ब्लाक लगाकर मरम्मत का काम चल रहा है। जहां पटरियों या उसके क्लिप बदलने की आवश्यकता है, उसे भी रूट डायवर्ट करके किया जा रहा है।
इंटीग्रेटेड कॉरिडोर ब्लॉक सिस्टम
ब्लॉक सिस्टम रेलवे के ट्रैकों के रखरखाव के लिए प्रयोग में लाया जाता है। जब भी पटरी पर अचानक किसी प्रकार की दिक्कत आती है तो इसी ब्लॉक सिस्टम के तहत ही उसे दुरुस्त किया जाता है। यह रेलवे की एक अहम कड़ी है क्योंकि अगर ब्लॉक सिस्टम को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाय तो रोजाना बढ़ रहे ट्रेनों के हादसों पर लगाम लगाई जा सकती है।
नियमानुसार ब्लॉक नियम तब काम करता है जब पटरी चटकने आदि संबंधी कोई दिक्कत आती है। ऐसी समस्या आने पर उस लाइन पर आ रही ट्रेनों को तुरंत रोक दिया जाता है। जो ट्रेन जहां रहती है उसे ट्रैक सही होने तक वहीं खड़ा कर दिया जाता है। इसके बाद जाकर ट्रैक मरम्मत का कार्य चालू होता है। शिकायत को दूर करने के बाद ही ट्रैक पर गाडिय़ों का आवागमन शुरू होता है।
ब्लॉक सिस्टम का लेखाजोखा रखना जरूरी
रेलवे के अधिकारियों का मानना है कि इंटीग्रेटेड कॉरिडोर ब्लॉक सिस्टम अगर सही तरीके से कार्य करे तो रेल हादसों को रोका जा सकता है। बेहतर सर्विस के लिए ट्रैक मेंटेनेंस के लिए मांगे जाने वाले ब्लॉक का लेखा-जोखा रखने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
इसके अलावा यह बात साफ रहनी चाहिए कि कब ब्लॉक दिया गया या नहीं दिया गया। दूसरी ओर इस बात इस बात का भी आंकड़ा स्पष्ट होना चाहिए कि ब्लॉक देने या ना देने का फैसला उचित स्तर पर हुआ है कि नहीं जिससे असुरक्षित तरीके से रेलवे ट्रैक के मेंटेनेंस का काम दोबारा ना हो।
खतौली में 19 अगस्त की रेल दुर्घटना के दौरान कमिश्नर रेलवे सेफ्टी ने पाया था कि रेलवे ने मेंटेनेंस के लिए जरूरी समय नहीं दिया। बगैर ब्लॉक लिए हुए रेल ट्रैक के मेंटेनेंस का काम किया जा रहा था और इसी वजह से खतौली रेल हादसा हुआ था।
यह है नियम
जब रेलवे ट्रैक पर दिक्कत आती है तो कॉरिडोर ब्लॉक कर दिया जाता है। नियमानुसार 4 घंटे के लिए ट्रैक ब्लॉक करना होता है। अगर ऐसा संभव नहीं है तो कम से कम ढाई घंटे के लिए ट्रैक बंद करना अनिवार्य है। पास के कंट्रोल रूम में ट्रैक मेंटनेंस की जानकारी देनी होती है।
इसके बाद कंट्रोल रूम से उस पटरी के नजदीक चल रही ट्रेनों को रोक दिया जाता है। फिर ट्रैक के मरम्मत का कार्य किया जाता है। कार्य पूरा हो जाने पर ट्रैक मैनों को पुन: कंट्रोल रूम में इसकी जानकारी देनी होती है। इसके बाद जाकर ब्लॉक कॉरिडोर को खोला जाता है। फिर जाकर उस ट्रैक पर गाडिय़ों का आवागमन शुरू होता है।
इन सुधारों की जरूरत
1-रेलवे को इंटीग्रेटेड कॉरिडोर ब्लॉक सिस्टम विकसित करना होगा।
2-कॉरिडोर ब्लॉक कम से कम 4 घंटे के लिए दिया जाना चाहिए।
3-ट्रेनों का दवाब अधिक होने पर कम से कम ढाई-ढाई घंटे के दो ब्लॉक लेने चाहिए।
4-ट्रैक के रखरखाव पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।
5-ब्लॉक का लेखा-जोखा रखने के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
6-जिम्मेदार रेलवे कर्मचारियों को यह साफ तौर पर यह पता होना चाहिए कि कब ब्लॉक दिया गया था या नहीं दिया गया था।
7-रेलवे ऐप्स की तरह रेलवे के ब्लॉक को देने या ना देने संबंधी जानकारी भी ऐप पर अपलोड होना चाहिए।
8-कंट्रोल स्टाफ को ट्रेन करना बेहद जरूरी है।