लखनऊ: साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। निर्जला एकादशी व्रत को करते समय श्रद्धालु लोग भोजन ही नहीं, बल्कि पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं।
लाभ: जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है। उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता हैं।
इस साल 2016 में निर्जला एकादशी का व्रत 16 जून को है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था। इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पडा। इस एकादशी के दिन व्रत और उपवास करने का विधान है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु, मोक्ष की प्राप्ति होती है। निर्जला मतलब जल के बिना रहना इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है ये एक कठिन व्रत होता है, इस व्रत में जल का सेवन भी नहीं किया जाता।
इस एकादशी को करने से साल की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है। ये व्रत करने के बाद द्वादशी तिथि में ब्रह्म बेला में उठकर स्नान,दान और ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए। इस दिन ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करके गौदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है। महाभारत काल में भीमसेन ने व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं। मैं बिना काया कलेश की ही फल प्राप्त करना चाहता हूं अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें।
इस पर वेद व्यास जी भीमसेन से कहते हैं कि हे भीम अगर तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो, तो दोनों एकादशियों का व्रत बिना भोजन ग्रहण किए करो, क्योंकि ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है। व्यास जी की आज्ञा के अनुसार भीमसेन ने ये व्रत किया और वे पाप मुक्त हो गए।
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
मिथुन संक्रान्ति के मध्य ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जल व्रत किया जाता है। सूर्योदय से व्रत का आरंभ हो जाता है। इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए। ये व्रत सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नहीं होता है। यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, तप और दान करता है, उसे करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है।