गोरखपुर से पूर्णिमा श्रीवास्तव, रायबरेली से नरेंद्र सिंह की स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ: देश के 201 जिले शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मामले में पिछड़े और बदहाल हैं। इन जिलों में 25 फीसदी जिले अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। उसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का नंबर है। पोषण, गरीबी से पीडि़त बचपन, शिक्षा और युवा व रोजगार पर भारत के यंग लाइव्स लांजीट्यूडिनल सर्वे के प्रारंभिक निष्कर्ष को जारी करते हुए आयोग ने कहा कि अगर देश के 201 जिलों को देखें, जहां हम असफल हैं तो उनमें से 53 उत्तर प्रदेश में, 36 बिहार में और 18 मध्य प्रदेश में है। उत्तरप्रदेश के हालात बहुत बदतर दिख रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, सभी में यह प्रदेश फिसड्डी ही नजर आ रहा है। यह तब है जब इस प्रदेश ने ही हमेशा से देश की राजनीति को दिशा दी है और उसकी दशा में भी बदलाव किया है। यह स्थिति चिंतनीय है।
वीवीआईपी जिला गोरखपुर
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर संसदीय सीट से पांच मर्तवा परचम लहरा चुके हैं।इससे पहले भी योगी जी के गुरु महंत अवेद्यनाथ ही यहां के सांसद रहे हैं। प्रदेश की भाजपा सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे और आज की तारीख में केन्द्र वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला भी गोरखपुर विधानसभा सीट से तीन बार जीत हासिल कर चुके हैं। पिछले चार टर्म से डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल विधानसभा पहुंच रहे हैं।
इसी जिले की विधानसभा सीटों से जीतकर फतेह बहादुर सिंह, जितेन्द्र जायसवाल उर्फ पप्पू भईया, पंडित हरिशंकर तिवारी, राजेश तिवारी विभिन्न सरकारों में मंत्री रहे।
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अतीत में देखें तो कांग्रेसी नेता वीर बहादुर सिंह सूबे के मुख्यमंत्री रहे तो महावीर प्रसाद कांग्रेस सरकारों में कैबिनेट मंत्री। इसके बाद भी जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर औद्योगिक विकास में कोई सुधार नहीं आया। वर्ष 2005 में इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों का रिकार्ड टूटा तो केन्द्र की यूपीए सरकार ने पेयजल, अस्पतालों में सुविधाएं देने के लिए 2200 करोड़ का बजट जारी किया।
अस्पतालों से लेकर पेयजल की बदहाल स्थिति को देखकर साफ है कि इस रकम की जमकर बंदरबांट हुई। नगर विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल का कहना है कि विहार, नेपाल से लेकर पूर्वांचल के जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं का भार गोरखपुर पर है। स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार किया जा रहा है। नीति आयोग के आकड़ों के बाद स्वास्थ्य सेवाओं में और तेजी से सुधार करने की जरूरत है।
गोरखपुर जिले के दो सांसद और विधानसभा की नौ सीटों पर जीते विधायक अपनी निधियों को खर्च करने में अव्वल दिखते हैं। बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ अपनी निधि का 95 फीसदी रकम खर्च कर चुके हैं। वहीं वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से पूर्व सभी नौ विधायकों ने अपनी निधि खपा दी थी। किसी के निधि में 500 रुपये तो किसी में 23 हजार रुपये ही बचे थे।
सुविधाएं बढ़ीं लेकिन कम नहीं हुई बीमारी
चिकित्सकीय सुविधाओं के लिहाज से गोरखपुर पूर्वांचल का सबसे अहम केन्द्र हैं। सरकारी ही नहीं निजी चिकित्सकों की भारी भरकम फौज नजर आती है लेकिन मौतों का आकड़ा और लुटते मरीजों की व्यथा तस्दीक करती है कि यहां के डाक्टरों की नजर मरीजों की नब्ज के बजाए उनकी जेब पर होती है।
गोरखपुर में मेडिकल कॉलेज के अलावा जिला अस्पताल और महिला अस्पताल की सुविधा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए 23 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 18 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित हो रहे हैं। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में 54 एडिशनल पीएचसी भी संचालित हो रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में 24 अर्बन हेल्थ पोस्ट भी संचालित हो रहे हैं। इतना ही नहीं पूर्वोत्तर रेलवे का ललित नारायण मिश्र चिकित्सालय, डाक विभाग और नगर निगम का 10 बेड का संक्रामक रोग अस्पताल की संचालित हो रहा है। अस्पतालों की लंबी श्रृंखला के बाद भी चिकित्सकों की भारी कमी दिखती है। डाक्टरों की तैनाती वर्ष 1995 के मानक के मुताबिक भी पूरी नहीं हो सकी है।
वर्ष 1995 के मानक के मुताबिक जिले में 280 डाक्टरों के पद सृजित हैं लेकिन तैनाती महज 190 की है। पूरी चिकित्सकीय व्यवस्था निजी अस्पतालों और चिकित्सकों पर निर्भर है। गोरखपुर में छोटे-बड़े 500 से अधिक अस्पतालों में 600 से अधिक चिकित्सक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। गोरखपुर और इंसेफेलाइटिस एक-दूसरे के प्रर्याय बन चुके हैं। वर्ष 1978 से अभी तक सिर्फ गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 20 हजार से अधिक मासूम इंसेफेलाटिस के चलते दम तोड़़ चुके हैं। जबकि मासूमों के लिए 100 बेड का अतिरिक्त वार्ड मेडिकल कॉलेज में बन चुका है और गोरखपुर-बस्ती मंडल के सभी जिला अस्पतालों में दस-दस बेड की आईसीयू की व्यवस्था भी की गई है।
देश के कुपोषित 100 में से 29 जिले यूपी के
नीति आयोग ने कुपोषण से प्रभावित देश के 100 जिलों की सूची जारी की है, जिनमें 29 जिले सिर्फ उत्तर प्रदेश के हैं। यही नहीं टॉप थ्री शहरों में भी उत्तर प्रदेश के ही जिले शामिल हैं। इस लिस्ट में सर्वाधिक कुपोषित बच्चों के मामले में बलरामपुर जिला पहले पायदान पर है। इसके बाद श्रावस्ती और बहराइच है। नीति आयोग ने मानवीय विकास, गरीबी में कमी तथा आर्थिक विकास के लिहाज से पोषण को महत्वपूर्ण करार दिया है। इसी क्रम में नीति आयोग ने राष्ट्रीय विकास एजेंडा में इसको ऊपर रखने का सुझाव दिया है। आयोग ने इस संबंध में राष्ट्रीय पोषण रणनीति पर एक रिपोर्ट भी जारी की है, जिसमें उन शहरों को शामिल किया गया है जहां कुपोषण के शिकार सर्वाधिक बच्चे हैं।
इस रिपोर्ट ने यूपी सरकार के उन दावों की पोल खोल दी है, जिसमें कुपोषण को दूर करने के दावे किये जाते हैं। यूपी के जो जिले कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित हैं, वे तराई और पूर्वांचल के जिले हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर के अलावा, कानपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, गोरखपुर, शाहजहांपुर, आजमगढ़, सोनभद्र, झांसी, वाराणसी, इलाहाबाद समेत अन्य जिले शामिल हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता लगता है कि लगभग 82 हजार बच्चे यहां कुपोषित और अति कुपोषित है। लेकिन अप्रैल 2015 में जिला स्तर पर शुरु किए गए पोषण पुनर्वास केन्द्र में ढाई वर्षो में महज 275 कुपोषित बच्चे ही पाए गए हैं।
देवरिया: स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल
देवरिया जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं तो हैं लेकिन सफेद हाथी की तर्ज पर। 230 बेड वाले जिला अस्पताल में मरीजों की तो भीड़ दिखती है लेकिन डॉक्टर नजर नहीं आते हैं। यहां न तो कार्डियोलॉजिस्ट हैं न ही चर्म रोग के चिकित्सक। एक सर्जन हैं तो वह नसबंदी का ही टॉरगेट पूरा करने में मशगूल नजर आते हैं। चिकित्सकों की कमी को लेकर मुख्य चिकित्साधिकारी शासन को पत्र लिख कर अपनी जिम्मेदारी निभा देते हैं।
बिहार से जुड़ा जिला होने के चलते यहां मरीजों की संख्या अन्य जिलों से कही अधिक है। कहने को यहां 16 सामुदायिक अस्पताल और 73 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। सरकार के आकड़े ही तस्दीक कर रहे हैं कि 73 में से सिर्फ 10 पर चिकित्सकों की तैनाती है। शेष रामभरोसे चल रहे हैं। पूरे जिले में नर्सिंग होम को संजाल तेजी से फैल रहा है, लेकिन यहां भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है। 200 से अधिक छोटे-बड़े नर्सिंग होम में करोड़ों का कारोबार होता है। सरकारी अस्पतालों की ही तरह शुरूआती इलाज में ही हजारों रुपये वसूल कर नर्सिंग होम संचालक मरीजों को गोरखपुर या लखनऊ रेफर कर देते हैं। सडक़ोंं के मामले भी देवरिया का बुरा हाल है।
पूर्वांचल के जिलों में सडक़ों की खस्ताहाली पर देवरिया अव्वल नजर आता है। राजनीतिक दृष्टि से देवरिया देश के सबसे जागरूक जिलों में शुमार है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले यूपी विधानसभा में चुनाव अभियान का आगाज देवरिया से ही किया था। प्रदेश की कमोवेश सभी सरकारों में देवरिया जिले से निर्वाचित विधायक मंत्री बने हैं। चाहे सूर्यप्रताप शाही हों, या शाकिर अली। भाजपा के दिग्गज कलराज मिश्रा मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे। योगी सरकार में भी जयप्रकाश निषाद को मंत्री पद मिला हुआ है। समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्रा और मोहन सिंह ने भी देवरिया को ही अपनी कर्मभूमि बनाई। वहीं कांग्रेसी दिग्गज अखिलेश सिंह भी रूद्रपुर से विधायक चुने गए। चीनी मिलें देवरिया की आर्थिक समृद्धि की रीढ रही हैं।
वर्ष 1903 में एशिया की सबसे पहली चीनी मिल देवरिया में ही चालू हुई। एक समय था जब देवरिया में 14 चीनी मिलें संचालित हो रही थीं लेकिन आज सिर्फ प्रतापपुर चीनी मिल चालू हाल में है। देवरिया में विधानसभा की सात और दो संसदीय सीटों पर निधियों के खर्च को लेकर आरोप लगते रहे हैं। जिले के सातों विधायक निधि खर्च करने को लेकर अभी योजना ही बना रहे हैं। सीडीओ के मुताबिक विधायकों द्वारा जो प्रस्ताव मिले हैं, उन्हें धीरे-धीरे पूरा किया जा रहा है।
महराजगंज: सिर्फ नेताओं का विकास हुआ
भारत-नेपाल सीमा से लगे जिले महराजगंज में विकास की किरण आजादी के सात दशक पूरी होने के बाद भी नहीं पहुंची है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद शिब्बन लाल सक्सेना के कार्यकाल को छोड़ दें तो महराजगंज की धरती का नेताओं ने सिर्फ अपने उत्थान के लिए इस्तेमाल किया है। शिब्बन लाल सक्सेना के कार्यकाल में महराजगंज में शैक्षणिक क्रान्ति हुई तो नहरों का संजाल बिछा। वर्ष 1989 में गोरखपुर से अलग होकर स्वतंत्र जिला होने का गौरव पाने वाला महराजगंज अभी भी अपनी पहचान को लेकर जददोजहद कर रहा है।
स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर महराजगंज पूरी तरह कंगाल नजर आता है। कहने को यहां जिला अस्पताल के साथ 14 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 42 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं लेकिन सभी सिर्फ रेफरल केन्द्र बनकर रह गए हैं। नतीजा यह है कि प्रदेश में जहां डेथ रेट 7 .7 फीसदी है तो वहीं महराजगंज में यह दर 9 .6 फीसदी है। प्राइवेट अस्पतालों के मामले में भी जिले की बुरी स्थिति है। पिछले दिनों अस्तित्व में आए 100 बेड वाले केएमसी डिजीटल हास्पिटल पर लोगों को निर्भरता बढ़ी है। विकास के मामले में भी जिला पूरी तरह बदहाल नजर आता है।
भाजपा के टिकट पर पांच बार सांसद बन चुके पंकज चौधरी की पहचान उद्योगपति की है, लेकिन उन्होंने भी एक उद्योग लगाने की कोशिश नहीं की। सिसवा से विधायक शिवेन्द्र सिंह, फरेंदा विधायक बजरंग बहादुर सिंह उर्फ बजरंगी, पनियरा विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह तीन बार या इससे अधिक मर्तवा विधायक रह चुके हैं बावजूद विकास के मामले में इनका योगदान सिफर ही नजर आता है।
जिला मुख्यालय तक रेलवे लाइन, औद्योगिक विकास और बदहाल सडक़ें यहां के प्रमुख मुददे हैं। सांसद पंकज चैधरी कहते हैं कि पूर्व में कांग्रेसी सरकारों में औद्योगिक विकास के साथ रेलवे लाइन बिछाने को लेकर प्रयास किये गए। अब भाजपा की सरकार है। फरेंदा चीनी मिल को नये सिरे से शुरू करने की कोशिश हो रही है, रेलवे लाइन का बजट पास हो गया है।
वीवीआईपी जिला रायबरेली
यह देश की सबसे ताकतवर महिला सोनिया गांधी संसदीय क्षेत्र है। वर्ष 2014 से पहले तक केंद्र में उन्ही की सरकार थी। प्रदेश में भी जो सरकार रहीं उनसे उनके रिश्ते अच्छे थे। लेकिन यह अजीब लगता है कि इतना विशिष्ट क्षेत्रा होकर भी राय बरेली जिला कुपोषित और अत्यंत पिछड़े जिलों की नीति आयोग की सूची में है। आइये नजर डालते हैं इस जिले के कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों पर -
जिले की कुल जनसंख्या और इसमें लिंगानुपात
जनपद की कुल जनसंख्या 3405559 (चौतीस लाख पाँच हजार पांच सौ उनसठ)
पुरुष- 1752452 (सत्रह लाख बावन हजार चार सौ बावन)
महिला- 1653017 (सोलह लाख तिरपन हजार सत्रह)
जन्म एवं मृत्यु दर
जन्मदर 22.2 (प्रति एक हजार )
मृत्युदर 8.9 (प्रति एक हजार )
साक्षरता 62 प्रतिशत
स्वास्थ्य सुविधाएं और बिमारियों की स्थिति
जनपद में अत्याधुनिक एक जिला अस्पताल पुरुष और महिला और साथ ही 51 पीएचसी 18 सीएचसी है जिनमे सरकारी डाक्टर व नर्स तैनात है इसके अलावा जनपद में 55 प्राइवेट नर्सिंगहोम भी संचालित है।
इसके अलावा एम्स निर्माणाधीन है जो कि कछुए की चाल से निर्मित हो रहा है। अभीतक यंहा पर ओपीडी नहीं चालू हो पाई है जिसकी वजह से यंहा के गम्भीर मरीज लखनऊ के लिए रिफर किये जाते है। रही बात बीमारियों कि तो सामान्यत: सभी बीमारियों का इलाज यंहा होता है कोइ विशेष बीमारी नहीं है जिसकी वजह से जनता परेशान होती हो।
जिले के प्रमुख जनप्रतिनिधि-सांसद व विधायक
सांसद- सोनिया गांधी (राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस )
सांसद राजयसभा- दिनेश प्रताप सिंह (कांग्रेस )
विधायक विधानसभावार
1- सदर- अदिति सिंह (कांग्रेस )
2- बछरावां- रामनरेश रावत (भाजपा )
3- हरचंदपुर- राकेश सिंह (कांग्रेस )
4- ऊंचाहार- मनोज कुमार पाण्डेय (सपा )
5- सरेनी- धीरेन्द्र सिंह (भाजपा )
6- सलोन- दलबहादुर कोरी (भाजपा )
सांसद और विधायक निधियों की स्थिति
सांसद- सोनिया गांधी - 2016 से अब तक मिले पांच करोड़ खर्च के बाद बचे एक करोड़ सत्तर लाख सैतीस हजार रुपये।
विधायक
1- सदर- अदिति सिंह (कांग्रेस)
2- बछरावां- रामनरेश रावत (भाजपा)
3- हरचंदपुर- राकेश सिंह (कांग्रेस)
4- ऊंचाहार- मनोज कुमार पाण्डेय (सपा)
5- सरेनी- धीरेन्द्र सिंह (भाजपा)
6- सलोन- दलबहादुर कोरी (भाजपा)
सभी विधानसभा में विधायकों की निधि आ गयी है लेकिन अभी खर्च का ब्योरा उपलब्ध नहीं है। वर्ष समाप्त होने के उपरान्त मिलेगा।
जिले में कौन-कौन से प्रमुख राजनेता हुए
वर्तमान सांसद
श्रीमती सोनिया गांधी लगातार तीसरी बार
पूर्व सांसद
कैप्टन सतीश शर्मा (कांग्रेस)
स्वर्गीय अशोक सिंह (भाजपा)
वर्तमान विधायक
सदर
अदिति सिंह (कांग्रेस)
सरेनी
धीरेंद्र बहादुर सिंह (भाजपा)
बछरावां
रामनरेश रावत (भाजपा)
सलोन
दल बहादुर कोरी (भाजपा)
ऊंचाहार
मनोज पांडेय (सपा)
हरचंदपुर
राकेश प्रताप सिंह (कांग्रेस)
पूर्व में विधायक
सदर
अखिलेश सिंह लगातार पांच बार
सरेनी
देवेंद्र प्रताप सिंह (सपा)
अशोक सिंह (कांग्रेस)
अशोक सिंह (सपा)
ऊंचाहार
मनोज पांडेय (सपा)
अजय पाल सिंह (कांग्रेस)
स्वामी प्रसाद मौर्य (बसपा)
सलोन
अशकिशोर (सपा)
शिवबालक पासी (कांग्रेस)
अशकिशोर (सपा)
बन्छरावा
राम लाल अकेला (सपा)
राजाराम त्यागी (कांग्रेस)
रामलाल अकेला (सपा)
हरचंदपुर
सुरेंद्र विक्रम सिंह (सपा)
शिव गणेश लोधी (कांग्रेस)
सुरेंद्र विक्रम सिंह (बसपा)
मुद्दा जो कभी हल नहीं किया जा सका
जनपद से रोजगार के लिए पलायन एक बड़ी समस्या रही जिसका स्थायी समाधान का वादा सभी दलों ने किया अवश्य पर उसे पूरा करने की दिशा में किसी जनप्रतिनिधि या दल ने गम्भीर प्रयास नहीं किया, जिस कारण ग्रामीण इलाकों से दिल्ली, मुम्बाई, लुधियाना, कोलकाता के लिए लगातार पलायन बेरोजगारों की बड़ी समस्या के रूप में है। खेती पर आधारित जनपद में किसानों के लिए खाद बीज बिजली व सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था कोई सरकार या जनप्रतिनिधि वादे के बाद भी नही कर पाए बैसवारा में पुरवा माइनर तक टेल तक पानी पिछले तीस वर्षों में नहीं पहुंच पाया जिसके लिए किसानों ने आंदोलन भी किया पर समाधान से किसान वंचित है।
पीने योग्य पानी में फ्लोराइड की अधिकता से फील पाव जैसे असाध्य रोग से सरेनी इलाका पीडि़त है, लेकिन इस तरफ किसी पर्तनिधि ने वादे के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया। समस्याओं से ग्रसित जनपद की राजनीति में आजादी के बाद से नेहरू परिवार का वर्चस्व रहा यहां से संसद में नेहरू के दामाद फिरोज गांधी, राजा दिनेश प्रताप सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू, अशोक सिंह, कैप्टन सतीश शर्मा व अब सोनिया गांधी प्रतिनिधित्व कर रही है।
मेरा विचार है कि जब तक आप इन इलाकों का नाम लेकर उन्हें शर्म नहीं दिलाएंगे, तब तक भारत के लिए विकास करना काफी मुश्किल होगा। सुशासन को अच्छी राजनीति बनाना चाहिए। कांत ने पहले कहा था कि पूर्वी भारत के 7 से 8 राज्य हैं जो देश के पीछे खींच रहे हैं, इसलिए इन राज्यों को नाम लेकर शर्म दिलाने की जरूरत है। दक्षिण भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। पश्चिम भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। यह केवल पूर्वी भारत के साथ है, वहां के सात राज्यों और 201 जिलों की समस्या है। जब तक आप इन्हें नहीं बदलते, भारत में कभी बदलाव नहीं आ सकता। कांत ने कहा कि वास्तविक समय के डेटा की उपलब्धता, सार्वजनिक डोमेन में बहुत नजदीकी से निगरानी और राज्यों की रैंकिंग से ही यह समस्या दूर होगी। उनका नाम जाहिर कर उन्हें शर्म दिलाना चाहिए। क्योंकि नेता और सरकारी अधिकारी को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें दंडित किया जाएगा।
अमिताभ कांत,
मुख्य कार्यकारी अधिकारी,
नीति आयोग, भारत सरकार